सूरदास की झोपड़ी NCERT Solutions for Class 12 Hindi Chapter 1 Surdas Ki Jhopri Antral
1.'चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता?' नायकराम के इस कथन में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
Ans-नायकराम के कथन "चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता?" में व्यंग्य और गहरा भाव छिपा हुआ है। इसका अर्थ यह है कि सूरदास ने अपनी झोपड़ी जलने दी लेकिन दुश्मनों के सामने हार नहीं मानी। अगर सूरदास ने अपना चूल्हा ठंडा कर दिया होता (यानि आत्मसमर्पण कर लिया होता), तो उनके विरोधी (गांव के दबंग लोग) अपनी मंशा में सफल हो जाते और उनकी खुशी का ठिकाना न रहता।
यह कथन सूरदास के आत्मसम्मान और संघर्षशीलता को व्यक्त करता है। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी अपने स्वाभिमान और हौसले को बनाए रखा। नायकराम यहां यह संदेश देना चाहते हैं कि अपने अधिकार और स्वाभिमान की रक्षा के लिए संघर्ष करना ही सच्चा साहस है।
2.भैरों ने सूरदास की झोपड़ी क्यों जलाई ?
Ans-भैरों सूरदास से बहुत नाराज़ था।जब भैरों और उसकी पत्नी सुभागी के बीच झगड़ा हुआ, तो नाराज़ होकर सुभागी सूरदास के घर रहने चली गई। भैरों को यह बात अच्छी नहीं लगी। सूरदास सुभागी को बेसहारा नहीं छोड़ना चाहता था, इसलिए उसने उसे अपने घर में रहने दिया। लेकिन भैरों को सूरदास का यह व्यवहार अपमानजनक लगा, जिससे उसकी नाराज़गी और बढ़ गई।
3.' यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी । ' संदर्भ सहित विवेचन कीजिए।
Ans-सूरदास एक अंधा भिखारी था।उसकी संपत्ति में बस एक छोटी सी झोपड़ी, थोड़ी सी जमीन और जीवनभर की जमा पूंजी थी। यही सब उसके जीवन का सहारा था। उसकी जमीन पर गाँव के जानवर चरते थे, लेकिन फिर भी वह उसी में खुश था। जब उसकी झोपड़ी जल गई, तो वह दोबारा बनाई जा सकती थी, लेकिन आग में उसकी सारी जमा पूंजी भी जलकर राख हो गई। यही बात सूरदास के लिए सबसे बड़ा दुख थी।
4.जगधर के मन में किस तरह का ईर्ष्या - भाव जगा और क्यों?
Ans-जब जगधर भैरों के घर यह पता करने पहुँचा कि सूरदास की झोपड़ी में आग किसने लगाई थी,तो उसे भैरों की साजिश का पता चला। भैरों ने ही सूरदास की झोपड़ी में आग लगाई थी और साथ ही उसकी जीवनभर की जमा पूंजी भी चुरा ली थी। यह राशि पाँच सौ रुपये से अधिक थी, जिससे सूरदास ने कई योजनाएँ पूरी करने का सपना देखा था।
भैरों के पास इतने रुपए देखकर जगधर को अच्छा नहीं लगा। उसे एहसास हुआ कि इतनी बड़ी राशि से भैरों की जिंदगी की सारी परेशानियाँ खत्म हो सकती थीं। लेकिन यह धन गलत तरीके से हासिल किया गया था, जिससे जगधर के मन में ईर्ष्या और असंतोष का भाव जाग उठा। उसे यह बात भीतर ही भीतर कचोटने लगी कि इतनी बड़ी रकम भैरों के हाथ लग गई, जबकि उसने स्वयं जीवनभर कड़ी मेहनत की, फिर भी ऐसा मौका उसे कभी नहीं मिला।
5.सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त क्यों रखना चाहता था ?
Ans-सूरदास एक अंधा भिखारी था, जो लोगों के दान पर जीवन यापन करता था। उसके पास इतनी बड़ी रकम होना लोगों के लिए आश्चर्य की बात हो सकती थी। यदि यह बात लोगों को पता चल जाती, तो वे उस पर शक कर सकते थे कि एक भिखारी के पास इतना धन कहाँ से आया।
सूरदास को यह एहसास था कि एक भिखारी के लिए धन इकट्ठा करके रखना उचित नहीं माना जाता। अगर लोग यह जान जाते, तो उसके बारे में तरह-तरह की बातें करते और उस पर संदेह करने लगते। यही कारण था कि सूरदास ने अपनी जमा पूंजी को छिपाकर रखा था, ताकि किसी को उस पर शक न हो और वह किसी परेशानी में न फँसे।
सूरदास की झोपड़ी NCERT Solutions for Class 12 Hindi Chapter 1 Surdas Ki Jhopri Antral
6.'सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय - गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा।'इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन कीजिए ।
Ans-सूरदास को अपनी झोपड़ी के जलने का उतना दुख नहीं था, जितना अपनी पोटली के खोने का था। उसकी सारी योजनाएँ और सपने टूट चुके थे। वह दुख, ग्लानि और निराशा में डूबा हुआ था और राख के सामने बैठकर रो रहा था। तभी उसे घीसू की आवाज सुनाई दी –"खेल में रोते हो?"
सूरदास जो निराशा और दुख के सागर में डूबा हुआ था, घीसू की इस बात को सुनकर सचेत हो गया। उसे महसूस हुआ कि जीवन संघर्ष का नाम है, जिसमें हार-जीत लगी रहती है। जीवन में धक्कों और कठिनाइयों से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उनका डटकर सामना करना चाहिए। उसे लगा जैसे किसी ने उसका हाथ पकड़कर उसे निराशा से बाहर निकाल दिया हो।
सूरदास ने सोचा कि खेल में लड़के भी रोने वाले को चिढ़ाते हैं, सच्चे खिलाड़ी कभी रोते नहीं, चाहे कितनी भी बार हार क्यों न हो, वे मैदान में डटे रहते हैं। जीवन रोने के लिए नहीं, बल्कि हँसने के लिए है। यह विचार आते ही सूरदास का आत्मविश्वास लौट आया। वह अपने दुख पर विजय पाने की खुशी में राख के ढेर को प्रसन्नता से दोनों हाथों से उड़ाने लगा। सच में, सूरदास की जीने की इच्छा (जिजीविषा) ने उसके दुख और निराशा को हरा दिया। उसकी संघर्षशीलता और मनुष्यता की जीत हो गई थी।
7.' तो हम सौ लाख बार बनाएँगे' इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन कीजिए।
(1) दृढ़ निश्चयी:
सूरदास एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति था। जब उसकी जीवनभर की जमा पूंजी जल गई, तो वह कुछ समय के लिए दुखी जरूर हुआ, लेकिन बच्चों की बातों ने उसे हिम्मत दी। उसे एहसास हुआ कि **मेहनती इंसान दोबारा खड़ा हो सकता है।** इस विश्वास ने उसे फिर से आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
(2) परिश्रमी:
सूरदास भाग्य के भरोसे रहने वाला व्यक्ति नहीं था। उसे अपने परिश्रम पर भरोसा था। विपरीत परिस्थितियों में भी उसने हार नहीं मानी और परिश्रम करने के लिए तत्पर हो गया। वह जानता था कि मेहनत से हर मुश्किल को हराया जा सकता है।
(3) बहादुर:
सूरदास शारीरिक रूप से अपंग होने के बावजूद बहादुर और साहसी था। वह मुसीबतों का सामना करना जानता था। कठिन परिस्थितियों में भी उसने किसी सहारे की जरूरत महसूस नहीं की और अपने साहस से हालात को संभाल लिया। उसका यह गुण उसे संघर्षशील और आत्मनिर्भर बनाता है।
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