मीराबाई का जीवन परिचय Biography of Mirabai in Hindi
नाम-मीराबाई
जन्म-1498 ई
जन्म स्थान-कूड़की गाँव
पिता-राठौर रतन
जन्म-1498 ई
जन्म स्थान-कूड़की गाँव
पिता-राठौर रतन
पितामाह-राव दूदा
पति-राणा भोजराज
भाषा-ब्रजभाषा
आराध्य-श्रीकृष्ण
मीराबाई जीवन परिचय Biography of Miraba
मीराबाई हिन्दी कविता के क्षेत्र में कृष्णभक्त कवयित्री के रूप में ख्यात हैं। उनका सम्पुर्ण जीवन अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित रहा जबकि इसको लेकर अपने जीवन में उन्हें कितने ही अत्याचारों को सहना पड़ा बावजूद इसके अपने आराध्य के प्रति उनकी भक्ति-भावना में कमी नहीं आयी तभी तो अपने प्रभु की कृपा से वे सदैव प्रतिकूल परिस्थितियों से उबरती रहीं।
मीराबाई का जन्म-
मीराबाई का जन्म राजस्थान राज्य जोधपुर के जिलान्तर्गत मेड़ाता के निकटस्थ कूड़की गाँव में राव जोधाजी के कुल में सन् 1498 में हुआ था। राव दूदा उनके दादा (पितामाह) थे और राव जोधाजी उनके प्रपितामह थे। उनके पिता का नाम राठौर रतन सिंह था जिन्हें कुड़कि गाँव जागीर में प्राप्त था। ध्यातव्य है कि उनके प्रपितामह राव जोधाजी ने ही जोधपुर को बसाया था।
मीराबाई का जन्म राजस्थान राज्य जोधपुर के जिलान्तर्गत मेड़ाता के निकटस्थ कूड़की गाँव में राव जोधाजी के कुल में सन् 1498 में हुआ था। राव दूदा उनके दादा (पितामाह) थे और राव जोधाजी उनके प्रपितामह थे। उनके पिता का नाम राठौर रतन सिंह था जिन्हें कुड़कि गाँव जागीर में प्राप्त था। ध्यातव्य है कि उनके प्रपितामह राव जोधाजी ने ही जोधपुर को बसाया था।
मीराबाई का विवाह-
मीराबाई का विवाह बाल्यस्था में ही कर दिया गया था। उनके पति का नाम राणा भोजराज था। जो मेवाड़ा के महाराणा सांगा पुत्र थे। राणा भोजराज और देवर रत्नसिंह की मृत्यु से मीरा का जीवन दु:खों से भर गया था। अपने पति राणा भोजराज के असमय निधन से वैधव्य गहरा आघात लगा। उनके लिए वैधव्य का दारूण अत्यंत असहय हो गया। मइरबाई की वैराग्योन्मुखता का कारण उनका दु:खपूर्ण जीवन रहा है। अतिशय दु:ख को सहते-सहते वह आखिरकर चालीस वर्ष की अवस्था में गृह -त्याग कर वृन्दावन और द्वारिका में रहीं। उनकी पूरी जीवन द्वारिका के राणछोड़जी के मंदिर में व्यतीत हुआ जहाँ वे दिवंगत हो गयीं।
मीराबाई का विवाह बाल्यस्था में ही कर दिया गया था। उनके पति का नाम राणा भोजराज था। जो मेवाड़ा के महाराणा सांगा पुत्र थे। राणा भोजराज और देवर रत्नसिंह की मृत्यु से मीरा का जीवन दु:खों से भर गया था। अपने पति राणा भोजराज के असमय निधन से वैधव्य गहरा आघात लगा। उनके लिए वैधव्य का दारूण अत्यंत असहय हो गया। मइरबाई की वैराग्योन्मुखता का कारण उनका दु:खपूर्ण जीवन रहा है। अतिशय दु:ख को सहते-सहते वह आखिरकर चालीस वर्ष की अवस्था में गृह -त्याग कर वृन्दावन और द्वारिका में रहीं। उनकी पूरी जीवन द्वारिका के राणछोड़जी के मंदिर में व्यतीत हुआ जहाँ वे दिवंगत हो गयीं।
मीराबाई की मृत्यु-
मीराबाई की मौत एक रहस्य ही है क्योंकि इतिहास में इनकी मृत्यु के कोई प्रमाण नहीं मिली है। उनकी मृत्यु को लेकर बड़े-बड़े विद्वानों के अलग-अलग मत है। इसलिए कहाँ नहीं जा सकता मीराबाई की मृत्यु कब हुई थी।
मीराबाई की भक्ति-भावना-
मीराबाई भक्तिकाल की कृष्ण-भक्त कवयित्री हैं। ईनकी उपासना माधुर्य भाव का था। वे अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण की भावना पति के रूप में करती थी। कवयित्री की भक्ति वै वैष्णव-परम्परा की होती हुई भी निर्गुण सम्प्रदाय से प्रभावित है। मीरा की कविता में त्रिकुटि, अनहदनाद, सुरत-निरत, ज्ञान-दीपक, सुषुम्ना की सेज, सुत्र महल, हंस और अगम देश की चर्चा होने पर भी रहस्य-भावना गौण है, क्योंकि उनके गीतों का प्रेरक ब्रज का छलिया नागर कृष्ण था। मीरा निर्गुण ब्रह्म की अनुभूति से कंटकित होती है तथा स्मृति के दीपक में मन को बत्ती जलाकर देखना चाहती है।
मीराबाई भक्तिकाल की कृष्ण-भक्त कवयित्री हैं। ईनकी उपासना माधुर्य भाव का था। वे अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण की भावना पति के रूप में करती थी। कवयित्री की भक्ति वै वैष्णव-परम्परा की होती हुई भी निर्गुण सम्प्रदाय से प्रभावित है। मीरा की कविता में त्रिकुटि, अनहदनाद, सुरत-निरत, ज्ञान-दीपक, सुषुम्ना की सेज, सुत्र महल, हंस और अगम देश की चर्चा होने पर भी रहस्य-भावना गौण है, क्योंकि उनके गीतों का प्रेरक ब्रज का छलिया नागर कृष्ण था। मीरा निर्गुण ब्रह्म की अनुभूति से कंटकित होती है तथा स्मृति के दीपक में मन को बत्ती जलाकर देखना चाहती है।
मीराबाई द्वारा रचित ग्रंथ-
बरसी का मायरा
गीत गोविंद टीका
राग गोविंद
राग सोरठा के पद
गीत गोविंद टीका
राग गोविंद
राग सोरठा के पद
मीराबाई की रचनाएं-
नहिं भावै थांरो देसड़लो जी रंगरुड़ो/ मीराबाई
हरि तुम हरो जन की भीर/मीराबाई
नैना निपट बंकट छबि अटके/मीराबाई
मोती मुँगे उतार बनमाला पोइ/मीराबाई
पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो/मीराबाई
पग घूँघरु बाँध मीरा नाची रे/मीराबाई
श्याम मोसुँ ऐंडो डोलै हो/मीराबाई
हरि तुम हरो जन की भीर/मीराबाई
नैना निपट बंकट छबि अटके/मीराबाई
मोती मुँगे उतार बनमाला पोइ/मीराबाई
पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो/मीराबाई
पग घूँघरु बाँध मीरा नाची रे/मीराबाई
श्याम मोसुँ ऐंडो डोलै हो/मीराबाई
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