प्राचीन भारत के प्रमुख वंश एवं शासक

प्राचीन भारत के प्रमुख वंश एवं शासक



मगध साम्राज्य के प्रारम्भिक राजवंशी राजवंशों का परिचय

1.वृहद्रथ वंश:मगध पर शासन करने वाला प्राचीनतम ज्ञात राजवंश 'वृहद्रथ-वंश' था। महाभारत व पुराणों से ज्ञात होता है कि प्रागौतिहासिक काल में चेदिराज वसु के पुत्र वृहद्रथ ने गिरिव्रज को राजधानी बनाकर मगध में स्वतन्त्र राज्य स्थापित किया था। वृहद्रथ द्वारा स्थापित राजवंश को वृहद्रथ वंश कहा जाता है। इस वंश का सबसे प्रतापी शासक राजसंध था, जो वृहद्रथ का पुत्र था।                                                   

2.हर्यक वंश: बिम्बिसार (544 ई. पु.-492 ई.पू.)हर्यक वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था। इसे मगध साम्राज्य की महत्ता का वास्ताविक संस्थापक माना जाता है। इसकी राजधानी गिरिव्रज (राजगृह) थी। बिम्बिसार ने ही मगध में पहली बार एक सुदृढ़ शासन व्यवस्था की नींव डाली थी। बिम्बिसार के पश्चात् उसका पुत्र अजातशत्रु (492-460 ई.पू.)मगध का शासक बना। तत्पश्चात् अजातशत्रु का पुत्र उदयिन हर्यक वंश का शासक बना। 

3.शिशुनाग वंश: हर्यक वंश के एक अमात्य शिशुनाग ने हर्यक वंश के अन्तिम शासक नागदशक को पदच्युत कर शिशुनाग वंश की नींव डाली। उसने अवन्ति तथा वत्स पर अधिकार कर उन्हें मगध साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था।शिशुनाग के पश्चात् उसका पुत्र कालाशोक मगध का शासक बना, जिसने पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया। इस वंश का अंतिम शासक नंदिवध्र्दन था। 

4.नंद वश: महापद्मनन्द नामक व्यक्ति ने शिशुनाग वंश का अन्त कर न्दन वंश की नींव डाली। इस वंश का अंतिम शासक धननन्द, सिकन्दर का सकालीन था। 323.ई.पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य की सहायता से धननन्द की हत्या कर मौर्य वंश की नींव डाली थी।धननन्द की हत्या कर मौर्य वंश की नींव डाली थी। मौर्य वंश (323 ई. पू.-184 ई. पू. ):

5.चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई. पू.-298 ई. पू.): चन्द्रगुप्त मौर्य चाणक्य की सहायता से अंतिम नंदवंशीय शासक धननन्द को पराजित कर 25 वर्ष की आयु में (322 ई. पू.) मगध के सिंहासन पर आसानी हुआ और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। चन्द्रगुप्त मौर्य ने व्यापक विजय करके प्रथम अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की। वृध्दावस्था में चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन मुनि भद्रबाहु से जैन दीक्षा ली थी और श्रवणबेलगोला में 298 ई. पू. में उपवास द्वारा शरीर त्याग दिया था। 

6.बिंदुसार (298 ई. पू.-273 ई. पू.): चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बिंदुसार (298-273 ई. पू.)उसका उत्तराधिकारी बना।बिंदुसार की मृत्यु 273 ई. पू. के लगभग हुई थी। 

7.अशोक (269 ई. पू.-232 ई. पू.):अशोक मौर्य सम्राट बिंदुसार का पुत्र था। जैन अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने बिंदुसार की इच्छा के विरुद्ध मगध के शासन पर आधारित कर लिया था। सिंहली अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाईयों की हत्या करके मगध का राजासिंहासन प्राप्त किया था। अशोक का वास्तविक राज्याभिषेक 269 ई. पू. में हुआ, जबकि उसने 273 ई. पू. में ही सत्ता पर कब्जा कर लिया था। 261 ई. पू. में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया और जीत लिया। कलिंग युध्द में हुए व्यापक नरसंहार ने अशोक को विचलित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उसने शस्त्र त्याग की घोषणा कर दी। तत्पश्चात् उसने उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। अशोक ने सांची स्तूप का निर्माण भी करवाया। 

8.शुंगवंश (184 ई. पू.-75 ई. पू.):अंतिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या करके, उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 184 ई. पू. में शुंग रायवंश की स्थापना की थी। शुंग काल में ही भागवत धर्म का उदय व विकास हुआ तथा वासुदेव विष्णु की उपासाना प्रारम्भ हुई। 

9.कण्व वंश (75 ई. पू.-30 ई. पू.): वासुदेव पाटलिपुत्र के कण्व वंश का प्रवर्तक था। कण्ववंशी शासक शुंगों के उत्तरराधिकारी थे। कण्व वंश में कुल चार शासक हुए-वासुदेव, जिसने नौ वर्ष तक शासक किया, उसके बाद उसका पुत्र भूमिमित्र, तत्पश्चात् उसका पुत्र नारायण और अन्त में सुशर्मा, जिसे सातवाहन वंश के प्रवर्तक सिमुक ने प्रोच्युक कर दिया था। 

10.आन्ध्र-सातवाहन वंश: आन्ध्र सातवाहन वंश की स्थापना सिमुक ने की थी। गौतमी पुत्र शातकर्णी इस वंश का सर्वाधिक महान शासक था। यज्ञश्री शातकर्णी, सातवाहन वंश का अंतिम महान शासक था। 

11.भारत में यवन राज्य: उत्तर-पश्चिम से पश्चिमी वेदेशियों के आक्रमण, मौर्योत्तर काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना थी। इनमें सबसे पहले आक्रमणकारी बैक्ट्रिया के ग्रीक (यूनानी) थे, जिन्हें 'यवन' के नाम से जाना जाता है। मीनाण्डर (160 ई. पू.-120 ई. पू.) सर्वाधिक प्रसिध्द यवन शासक था, जिसने भारत में यूनानी सत्ता को स्थापित प्रदान किया था। 

12.भारत में शक राज्य: भारतीय स्रोत शकों को 'सिथियन' नाम देते हैं, यवन शासकों के पश्चात् शक भारत में आए, जिन्होंने यवन शासकों से भी अधिक भू-भाग पर अधिकार किया था। शक पांच शाखाओं में विभाजित थे-प्रथम काबुल में, द्वतीय तक्षशिला में, तृतीय मथुरा में, चतुर्थ शाखा उज्जयिनी में तथा पंचम शाखा नासिक में अपना प्रभुत्व स्थापित किए हुए थी। भारत में शक शासक 'क्षत्रप' कहलाते थे। 

13.भारत में पल्लव राज्य: पश्चिमउत्तर भारत में शकों के आधिपत्य के पश्चात् पार्थियाई लोगों का आधिपत्य स्थापित हुआ। पार्थियाई लोगों का मूल निवास स्थान ईरान था, भारतीय साहित्य में इन्हें 'पल्लव' कहा गया है। पल्लव वंश का सर्वाधिक प्रसिध्द शासक गोन्दोफार्निस था। इस पल्लव शासक की राजधानी तक्षशिला थी। पल्लव शक्ति का वास्तविक संस्थापक 'मिथेड्रेस प्रथम' था। 

14.भारत में कुषाण राज्य: पल्लवों के पश्चात् कुषाणों का भारत में आगमन हुआ। अधिकांश आधुनिक विद्वान कुषाणों का पश्चिमी चीन में गोबी प्रदेश में रहने वाले यू-ची जाती से सम्बन्ध मानते हैं। कुषाणों का प्रथम प्रमुख शासक कुजुल कैडफिसस था, जिसे कैडफिसस प्रथम भी कहा जाता है। कनिष्क ने 78 ई. में एक सम्वत् प्रचलित किया था, जो 'शक-सम्वत' के नाम से जाना जाता है। कनिष्क बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया था, इसके समय में काश्मीर के कुण्डल वन में वसुमित्र की अध्यक्षता में चतुर्थ बौद्ध संगीति आयोजित की गई थी। कनिष्क के उत्तराधिकारी हुविष्क (106 ई.-138 ई.) के समय में कुषाण सत्ता का प्रमुख केंद्र पेशावर से हटाकर मथुरा पहुँच गया था।

गुप्त वंश (319 ई.-550 ई.) 

1.श्रीगुप्त (275 ई.-300): गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की थी। जिसकी मृत्यु के पश्चात् घटोत्कच गद्दी बैठा। 

2.चन्द्रगुप्त प्रथम (319 ई.-324 ई.): गुप्त अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त प्रथम ही गुप्त वंश प्रथम स्वतन्त्र शासक था। जिसकी उपाध 'महाराजाधिकार' था। चन्द्रगुप्त प्रथम घटोत्कच का पुत्र था। चन्द्रगुप्त प्रथम ने 'गुप्त सम्वत् की स्थापना 319-20 ई. में की थी। गुप्त वंश में चन्द्रगुप्त प्रथम ने ही सर्वप्रथम रजत मुद्राओं का प्रचलन करवाया था। 

3.समुद्रगुप्त (325-375 ई.): चन्द्रगुप्त पृथम पश्चात् उसका पुत्र समुद्रगुप्त शासक बना, वह लिच्छवी राजकुमार 'कुमारी देवी' से उप्तन्न हुआ था। समुद्रगुप्त का शासनकाल राजनीतिक एवं संस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से गुप्त साम्राज्य के उत्कर्ष का काल माना जाता है। समुद्रगुप्त गुप्त वंश का एक महान योध्दा तथा कुशल सेनापति था, इसी कारण उसे 'भारत का नेपोलियन' कहा जाता है। 

4.चन्द्रगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य' (380 ई.-412.): समुद्रगुप्त के पश्चात् रामगुप्त नामक एक दुर्लब शासक के अस्तित्व की जानकारी गुप्त वंश में निहित है, तत्पश्चात् चन्द्रगुप्त द्वितीय का नाम है। चन्द्रगुप्त द्वितीय, रामगुप्त का अनुज था।चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हो गया था। चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में विद्वानों एवं कलाकारों को आश्रय प्राप्त था। उसके दरबार में नौ रत्न थे-इनमें कालिदास, ध्नवन्तरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बैताल भट्ट, घटकर्प, वाराहमिहिर और वररुचि उल्लेखनीय थे। चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान (399-412) भारत यात्रा पर आया था। 

5.कुमारगुप्त प्रथम (413 ई.-455 ई.): चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के पश्चात् उसका पुत्र कुमारगुप्त प्रथम गुप्त साम्राज्य का शासक बना। गुप्त शासकों में सर्वाधिक अभिलेख कुमार गुप्त के ही प्रात्प हुए हैं। कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल में नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। 

6.स्कन्दगुप्त (455 ई.-467 ई.): स्कन्दगुप्त गुप्तवंश का अंतिम प्रतापी शासक था। स्कन्दगुप्त ने मौर्यों द्वारा निर्मित सुदर्शन झील का जिर्णीध्दार करवाया था। 

पुष्यभूति वंश

हर्षवर्धन (606 ई.-647 ई.): हर्षवर्धन का जन्म 591 ई. के लगभग हुआ था। वह प्रभाकर वर्धन का छोटा पुत्र था। बड़े भाई राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद हर्षवर्धन थानेदार के राजासिंहासन पर आसीन हुआ। हर्षवर्धन ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी, जिसकी सीमाएं हिमाच्छादित पर्वत तक, दक्षिण में नर्मदा नदी के तट तक, पूर्व में गंजाम तथा पश्चिम में वल्लभी तक विस्तृत थी। उसके इस विशाल साम्राज्य की राजधानी कन्नौज थी। हर्षवर्धन एक उच्चकोटि का कवि भी था। उसने संस्कृत में नागानन्द, रत्नावली तथा प्रिय प्रियदर्शिक नामक नाटकों की रचना की थी। हर्षवर्धन ने अपने राजदरबार में कादम्बरी और हर्षचरित के रचयिता, बाणभट्ट, सुभाषितवलि के रचयिता मयूर और चीनी विद्वान ह्वेनसांग को आश्रय प्रदान किया था। हर्षवर्धन की मृत्यु 647 ई. में हुई थी। चूंकि वह निःसंतान था, अत: उसकी मृत्यु के साथ ही पुष्यभूति वंश का अन्त हो गया। 
   

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