मीराबाई का जीवन परिचय Mirabai Ka Jivan Parichay Mirabai Biography in Hindi
मीराबाई
मीराबाई का जीवन परिचय Mirabai Ka Jivan Parichay Mirabai Biography in Hindi
नाम-मीराबाई
जन्म-1498 ई
जन्म स्थान-कूड़की गाँव
पिता-राठौर रतन सिंह
माता-वीर कुमारी
पितामाह-राव दूदा
प्रपितामह-राव जोधाजी
पति-राणा भोजराज सिंह
मृत्यु-1546 ई०
मृत्यु स्थान-रणछोड़ मंदिर, द्वारिका, गुजरात
भाषा-ब्रजभाषा
मीराबाई का जीवन परिचय Mirabai Biography in Hindi-
मीराबाई हिन्दी कविता की क्षेत्र में कवयित्री हैं। मीराबाई के आराध्य भगवान श्री कृष्ण हैं। इन्होंने अपना सम्पुर्ण जीवन अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित किया जबकि इनकी भक्ति भावना को लेकर इन पर बहुत अत्याचार हुआ। पर मीराबाई चुपचाप उन अत्याचारों को सहन करती रही और अपने आराध्य के प्रति उनकी भक्ति-भावना करती गई और यही कारण है की अपने प्रभु की कृपा से वे सदैव प्रतिकूल परिस्थितियों से उबरती रहीं।
मीराबाई का जीवन परिचय Mirabai Ka Jivan Parichay Mirabai Biography in Hindi
मीराबाई का साहित्यिक परिचय-
मीराबाई भारतीय संत और भक्त कवयित्री थीं, जिनका साहित्यिक योगदान हिंदी भक्ति साहित्य के अंतर्गत आता है। वे भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं और उनके पदों में प्रेम, भक्ति, और आत्मसमर्पण की अद्भुत अभिव्यक्ति है। मीराबाई का साहित्य मुख्य रूप से पदों और भजनों के रूप में मिलता है, जिन्हें वे श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करने के लिए गाती थीं।
मीराबाई का जन्म-
मीराबाई का जन्म राव जोधाजी के कुल में सन् 1498 में राजस्थान राज्य में जोधपुर के जिलान्तर्गत मेड़ाता के निकटस्थ कूड़की गाँव में हुआ था। मीराबाई के दादा (पितामाह) का नाम राव दूदा था। तथा राव जोधाजी उनके प्रपितामह थे और मीराबाई के पिता का नाम राठौर रतन सिंह तथा माता का नाम वीर कुमारी था। बचपन में ही इनकी माता की मृत्यु हो जाने के कारण अपने पिताहमाह राव दूदा के साथ रहती थी। मीराबाई ने अपनी प्रारंम्भिक शिक्षा अपने पिताहमाह राव दूदा के साथ रह कर ही प्राप्त की।
मीराबाई का विवाह-
मीराबाई का विवाह बाल्यस्था में मेवाड़ के राजा राणा भोजराज सिंह के साथ हुआ था। विवाह के कुछ ही साल बाद इनके पति की मृत्यु हो गई। पति के मृत्यु के पश्चात् इनका जीवन दुखों से भर गया छोटी सी उम्र में वैधव्य होने के कारण इनको गहरा आघात लगा। ये बिल्कुल असहय हो गयी। अत्यंत दु:ख को सहते-सहते वह आखिरकर चालीस वर्ष की अवस्था में गृह -त्याग कर वृन्दावन द्वारिका चल गई। मीराबाई ने अपना पूरा जीवन द्वारिका के रणछोड़जी के मंदिर में व्यतीत किया जहाँ ये दिवंगत हो गयीं।
मीराबाई की भक्ति भावना-
मीराबाई भक्तिकाल की कृष्ण-भक्त कवयित्री हैं। इनके पति के मृत्यु के बाद ये अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण के भक्ति में ऐसी लीन हुई कि ये अपना सब कुछ श्रीकृष्ण को ही मान चुकीं थी यहाँ तक की अपना पति भी।
मीराबाई की मृत्यु-
मीराबाई की मृत्यु का कोई सटीक प्रमाण प्राप्त नहीं है। अभी तक ये एक रहस्य ही है। क्योंकि आज तक इतिहास में इनकी मृत्यु का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है। बड़े-बड़े विद्वानों में इनकी मृत्यु को लेकर मतभेद हैं। इसलिए ठीक से कहाँ नहीं जा सकता मीराबाई की मृत्यु कब हुई थी।
मीराबाई का जीवन परिचय Mirabai Ka Jivan Parichay Mirabai Biography in Hindi
मीराबाई द्वारा रचित ग्रंथ-
- बरसी का मायरा
- गीत गोविंद टीका
- राग गोविंद
- राग सोरठा के पद
मीराबाई की रचनाएं-
- नहिं भावै थांरो देसड़लो जी रंगरुड़ो/मीराबाई
- हरि तुम हरो जन की भीर/मीराबाई
- नैना निपट बंकट छबि अटके/मीराबाई
- मोती मुँगे उतार बनमाला पोइ/मीराबाई
- पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो/मीराबाई
- पग घूँघरु बाँध मीरा नाची रे/मीराबाई
- श्याम मोसुँ ऐंडो डोलै हो/मीराबाई
मीराबाई का जीवन परिचय Mirabai Ka Jivan Parichay Mirabai Biography in Hindi
मीराबाई की भाषा शैली-
मीराबाई की भाषा शैली सजीव, सरल और भावपूर्ण है, जो उनकी भक्ति और प्रेम की गहराई को व्यक्त करती है। उनकी रचनाओं में प्रमुखतः राजस्थानी, ब्रजभाषा, और अवधी भाषाओं का प्रयोग हुआ है। मीराबाई की भाषा में कई विशेषताएँ पाई जाती हैं:
1.सरलता और सहजता : मीराबाई की भाषा सरल और सहज है, जिसमें आमजन के शब्दों और बोलचाल का प्रयोग किया गया है। यह उनकी भक्ति और प्रेम की गहराई को स्पष्ट रूप से व्यक्त करती है।
2.भावात्मकता : उनकी काव्य रचनाओं में अत्यधिक भावात्मकता है। वे अपने आराध्य कृष्ण के प्रति अत्यधिक प्रेम, समर्पण और भक्ति को प्रकट करती हैं।
3.लोकप्रियता : मीराबाई ने अपने भजनों में लोकभाषा का प्रयोग किया, जिससे उनके भजन जनमानस में बेहद लोकप्रिय हुए।
4.रूपक और प्रतीकात्मकता : मीराबाई की काव्य भाषा में रूपक, प्रतीक और उपमाओं का सुंदर प्रयोग किया गया है। वे कृष्ण को अपने पति, प्रेमी और भगवान के रूप में देखती हैं, और उनके प्रतीकात्मक वर्णन में सहजता है।
5.संगीतात्मकता : मीराबाई के भजनों में संगीतात्मकता है, जो उन्हें गाने योग्य और कंठस्थ करने में सरल बनाती है।
6.साधु-संस्कृति और संत साहित्य का प्रभाव : मीराबाई की रचनाओं में संत साहित्य की छाप है। उनके विचार निर्गुण भक्ति पर भी आधारित हैं, जहाँ भगवान को प्रेम और समर्पण के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
मीराबाई की भाषा शैली भक्ति, प्रेम, समर्पण और समाज के बंधनों से मुक्त होकर अपने आराध्य के प्रति अनन्य प्रेम को व्यक्त करने का माध्यम है।
Tags:
Biography