रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय Ramdhari Singh Dinkar Boigraphy in Hindi
नाम-रामधारी सिंह दिनकर
उपनाम-दिनकर
जन्म-23 सितंबर 1908
जन्म स्थान-बेगूसराय (बिहार)
मृत्यु-24 अप्रैल 1974
नागरिकता-भारतीय
पेशा-कवि, लेखक, निबंधकार, साहित्यक आलोचक, पत्रकार, व्यंग्कार, स्वतंत्रता, सेनानी और संसद सदस्य
भाषा-हिंदी
अवधिक/काल-आधुनिक काल
पिता-बाबू रवि सिंह
माता-मनरूप देवी
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय-
रामधारी सिंह 'दिनकर' जी का जन्म बिहार प्रान्त के बेगूसराय जिलान्तर्गत सिमरियाघाट नामक ग्राम में 30 सितम्बर 1908 ई० को हुआ था। उनके पिता का नाम रवि सिंह था। जनश्रुति के अनुसार यह वही स्थान है जहाँ गंगा जी की धार, पुन: जाकर मिली है जो मैथिल कोकिल विद्यापति की मृत्यु के समय उनके पास गयी थी, यह बात बतायी जाती है।
रामधारी सिंह दिनकर की शिक्षा-
दिनकर जी की शिक्षा प्रारम्भ में घर पर ही हुई थी। गाँव से प्राइमरी तथा मिडिल की परीक्षायों पास करने के बाद मोकामाघाट के एच० ई० स्कूल से 1928 में प्रवेशिका की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, फिर उन्होंने पटना कॉलेज में नाम लिखाया। सन् 1930 ई० में आई० ए० की परीक्षा पास की और सन् 1932 में वे बी० ए० की परीक्षा इतिहास (प्रतिष्ठा) लेकर पास किये। इसके बाद उन्हें कॉलेज की शिक्षा नहीं मिल सकी लेकिन कवि की काव्य-प्रतिभा इसी स्कूली जीवन में करवट लेनी शुरू कर दी।
रामधारी सिंह दिनकर बचपन-
दिनकर बचपन से ही मेधावी तथा होनहार थे। उनका जीवन सरल था, वैसा ही उनका स्वभाव था। परिश्रमी और अध्ययनशील तो वे थे, ही, क्योंकि गंगा के उस पार मोकामा घाट के विद्यालय में रोज पढ़ने के लिए जाते थे, लेकिन मार्ग के कारण उन्हें कभी थकान का अनुभव नहीं होता था। घर से रोज स्कूल जाने-आने के क्रम में उन्हें दो दृश्य अवश्य देखने को मिलते थे। गर्मी रेत और वर्षा में गंगा का बाढ़। इन दो प्राकृतिक दृश्यों के कवि के बाल मन पर गहरा प्रभाव डाला। कवि को ये दोनों दृश्य बहुत प्रिय थे, साथ ही गंगा के किनारे पर झाऊँ के छोटे-छोटे पौधे तथा कृश-काश के प्रति भी इनका कम अनुराग नहीं था। दिनकर बचपन से ही अतिशय भावुक थे। आठवें-नवें वर्ग के विधार्थी-जीवन में ही उन्होंने देहाती गीत लिखना शुरू कर दिया था। इस प्रकार उसी समय के काव्य-रचना की ओर उनका झुकाव हो गया। हाई स्कूल के छात्र-जीवन में ही उन्हें मैथलीशरण गुप्त कृत 'भारत-भारती' पं० रामनरेश त्रिपाठी रचित 'पथिक' एवं प्रसिध्दि पत्रिका 'छात्र सहोदर' को पढ़ने का मौका मिला। इस अध्ययन ने उनकी काव्य-सृजन प्रतिभा को पुष्ट पृष्ठधार मिला और कवि ने छिटपुट से काव्य-सृजन का कार्य आरम्भ कर दिया।
रामधारी सिंह दिनकर के कार्य-
दिनकर का जन्म सामान्य स्थिति के परिवार में हुआ था। फलत: महाविद्यालय छोड़ने के उपरांत ही मुंगेर जिलान्तर्गत बरवीघा हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक की नौकरी करनी पड़ी, लेकिन एक वर्ष बाद ही उन्होंने वहाँ से त्याग-पत्र दे दिया और सरकारी नौकरी स्वीकार कर सबररजिस्टार के पद पर नियुक्त हो गये। बाद में उन्होंन इस पद को भी त्याग दिया और प्रचार-विभाग में उपनिदेशक हो गये। बाद में उन्होंने इस पद को भी त्याग दिया और प्रचार-विभाग में उपनिदेशक का पद-ग्रहन किया। इन्हीं मानसिक तनाव के दिनों में उनकी प्रसिध्दि रचना 'कुरुक्षेत्र' की सृष्टि हुई। सन् 1947 ई० में भारत स्वतंत्र हुआ और आजादी के नये रंग ने इनकी रचना को नया रंग दिया। और नवीन चेतना भी दी। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद उन्हेंने नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया। सन् 1950 ई० में लंगट सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर में हिंदी त्याग दिया और कांग्रेस की टिकट पर राज्य-सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। सन् 1955-56 में वे राज्य सभा आयोग के अध्यक्ष बनाये गये। इसी समय उन्होंने अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। अपनी ससक्त प्रतिभा के कारण उन्हें सन् 1955-56 में विदेश-यात्रा में जहाँ पोलैण्ड, रूस, इंग्लैंड, फ्रांस, मिश्र और स्वीटजरलैण्ड इत्यादि देशों में भ्रमण करने का मौका मिला। सन् 1959 में भारत सरकार ने इनकी साहित्य-सेवा तथा देश-सेवा से संतुष्ट होकर इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से विभूषित कर सम्मानित किया। राज्य सभा की सदस्य की अवधि की समाप्ति के उपरांत उन्हें बिहार राज्य के नवस्थापित भालगपुर विश्वविद्यालय के उकुलपति के रूप में कार्य करने का मौका मिला। वे सन् 1963-64 के दो वर्षों की अवधि तक इस पद पर कार्य करते रहे, फिर वे भारत सरकार के स्वराष्ट्र मन्त्रालय में हिंदी सलाहकार के रूप में दिल्ली चले गये और कुछ वर्षों के बाद इ कार्य-भार से मुक्त होकर वे पटना चले आये और स्वतंत्र रूप से साहित्य की सेवा में जुट गये। यहाँ इन्हें अध्ययन करने और लिखने का मौका मिला। लेकिन दुर्भाग्य इस देश का कि काव्याकाश का यह दीप्त और प्रखर सूर्य सन् 1964 को सदा के लिए अस्त हो गया।
रामधारी सिंह दिनकर के प्रमुख रचनायें-
रेणुका, हुँकार, इंद्रजीत, सामध नी, बापू, कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रश्मरथी, द्वन्द्वगीत संस्कृत के चार अध्याय, परशुराम की प्रतिक्षा, हाहाकार, चक्रव्यूह, आत्माजयी, वाजश्रवा के बहाने आदि हैं।
दिनकर जी की प्रमुख कृतियाँ-कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, सामधेनी और कलम उनकी जय बोल, प्रणति तथा विपथगा आदि हैं। दिनकर की कविताओं तथा खण्डकाव्यों में राष्ट्रीयता का सम्बन्ध देश के सुख-दुख और आक्रोश के चित्रण से ही नहीं होता बल्कि राष्ट्र की आत्मा की चेतना की पहचान से होता है। यह चेतना स्थिर न होकर गतिशील रहती है, अर्थात नव-नव परिस्थितियों में नये-नये दृष्टिकोण उभारती रहती है और पुराने दृष्टिकोण छोड़ते रहती है। संस्कृत का सम्बन्ध इसी आत्मा या चेतना से होता है। यह संस्कृति जहाँ इतिहास के रूप में हमारे लिए प्रेरणा और पृष्ठभूमि बनाती है। वर्तमान चेतना से स्पन्दित होकर हमारा जीवन बन जाती है। प्रीतिभाव और नवदृष्टि सम्पन्न कवियों ने संस्कृति के उदात्त और अतीत रूप को वर्तमान जीवन-संदर्भ में पुनरिक्षित करके ही स्वीकार किया है। यह प्रयास प्रस्तुत अवधि के पूर्व रचित काव्यों में भी लक्षित होता है।
प्रस्तुत अवधि में प्रकाशित दिनकर की काव्य-कृतियों में 'कुरुक्षेत्र', रश्मिरति', 'सामधेनी', 'प्रणति', 'कलम उनकी जय बोल' आदि राष्ट्रीय भावना से प्ररित हैं। कवि ने राष्ट्र को तात्कलिक घटनाओं, यातनाओं, विषमताओं, समताओं आदि के रूप में नहीं उसकी सांस्कृतिक परम्परा रूप में पहचान है और उसके प्राचीन मूल्यों को नये जीवन संदर्वो के परिप्रेक्ष्य के आकलन कर एक ओर कहीं जीवन्तता प्रदान की है तो दूसरी ओर वर्तमान की संस्याओं और आकांक्षाओं को महत्त्व देते हुए उन्हें अपने प्राचीन किंतु जीवन मूल्यों से जोड़ना चाहा है। दिनकर ने राष्ट्रीयता की पहचान को मात्र भावनात्मक प्रतिक्रिया से उबार कर चिंतन परीक्षण तथा आत्मालोचन का स्वरूप गढ़ा है। साथ ही इस राष्ट्रीयता के सार्वभौम मानवता के रूप में विकसित होने का स्वप्न देखा। यह विकास तभी सम्भव है जब बुध्दि के उपर संवेदनशील ह्रदय का शासन होगा। 'कुरुक्षेत्र' ने जीवन के माध्यम से, बुद्धि से वस्तु-स्थिति की तीखी पहचान तथा ह्रदय में सार्वभौम सुख-साम्राज्य की स्थापना की कामना सुंदर समनव्य हुआ है।
अन्य कवि के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर किल्क करें👇
Tags:
Biography