Mahatma Gandhi : महात्मा गांधी का जीवन परिचय

Mahatma Gandhi : महात्मा गांधी का जीवन परिचय

Mahatma Gandhi

Mahatma Gandhi : महात्मा गांधी का जीवन परिचय

अपनी कर्तव्यनिष्ठा एवं सत्यानिष्ठा के कारण जो साधारण मानव से महादेव बन गये, वे हैं मोहनदास करमचंद गाँधी। आधुनिक युग में तुर्की के निर्माण में जो कार्य कमाल पाशा ने किया, रूस के निर्माण में जो भूमिका लेनिन ने निबाही, भारतमाता को परतंत्रता की लौह-श्रृंखला से मुक्त कराने का वह कठिन कार्य महात्मा गाँधी ने किया। 

महात्मा गाँधी का जन्म:
मोहनदास का जन्म 2 अक्टुबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। उस समय उनके पिता पोरबंदर के दीवान थे। अर्थाभाव न रहने के कारण गाँधीजी का लालन-पालन बड़ी शान-शौकत से हुआ। किसे मालूम था कि मखमल के गद्दों पर फिसलनेवाला बालक दुबली-सी लकुटिया लिये, दुष्टदलन तथा लोककल्याण के लिए विश्व के नगर-नगर, डगर-डगर की खाक छानेगा? 

गाँधी जी की शिक्षा:
गाँधी जी शिक्षा का शुभारंभ पोरबंदर की पाठशाला में हुआ। इनका विवाह तेरह वर्ष की अवस्था में ही हो गया था। इनकी दृष्टि में वे बालक बड़े भाग्यवां हैं, जिनका विवाह इस कच्ची उम्र में नहीं होता। इंट्रेंस करने के बाद ये उच्च शिक्षा के लिए भावनगर के श्यामलदास कॉलेज में भेजे गये, किंतु वहाँ इनका मन रम न सका। बाद में इनके भाई लक्ष्मीदास ने इन्हों बैरिस्टरी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए विलायत भेज दिया। 1891 में इंग्लेंड से बैरिस्टरी पास कर ये स्वदेश आये। बंबई में इन्होंने बैरिस्टरी आरंभ की। 

गाँधी के सामाजिक क्रांतिकारी:
गाँधी के सामाजिक क्रांतिकारी जीवन का श्रीगणेश 1893 की अफ्रिका-यात्रा से होता है। अफ्रिका में गोरे भारतीयों के प्रति सदव्यवहार नहीं करते थे। वे उन्हें पग-पग अपमानित करते थे। गाँधीजी इसे सहन नहीं कर सके। इन्होंने अपना 'सत्याग्रह' वहीं से आरंभ किया। गाँधीजी में सेवा-भाव कूट-कूटकर भरा था। ये शत्रुओं की भी सेवा तथा सहायता निस्संकोच करते थे। 1897 से 1899 तक ब्रिटिश सरकार के विरूध्द छिड़ जानेवाले बोअर-युध्द में इन्होंने घायलों और पीड़ितों की सेवा की और अपनी जान हथेली पर लेकर ये इसके लिए लड़ाई के मैदान तक गये। 1897 और 1899 में भारत में जब अलका पड़ा तो इन्होंने अकाल-पीड़ितों के सहायतार्थ अफ्रिका में चंदा इकट्ठा किया। डबरन में प्लेग के मरीजों की सहायता के इनके कार्यों से प्रसन्न होकर अँगरेज सरकार ने इन्हें 'कैसर-ए-हिंद' की उपाधि दी। 

Mahatma Gandhi : महात्मा गांधी का जीवन परिचय

गाँधी जी की घोर सत्याग्रह-संग्राम:
घोर सत्याग्रह-संग्राम के अनंतर जब गाँधीजी अफ्रिका से भारत लौटे तब राष्ट्र ने अपने इन महान नेता का भव्य स्वागत किया। श्री गोपालकृष्ण गोखले के सुझाव पर इन्होंने संपूर्ण राष्ट्र का पर्यटन किया तथा देश की और देश के लोगों की वास्तविक स्थिति समझी। आगे चलकर इन्होंने अहमदाबाद में, जो भारत का मैनचेस्टर कहलाता है, साबरमती नदी के किनारे अपने आश्रम की स्थापना की। साबरमती-आश्रम राष्ट्रीयता का मस्तिष्क-केंद्र था, जहाँ से समग्र राष्ट्र प्रेरित होता था। गाँधीजी देशसेवा के व्रत में हर क्षण तल्लीन रहते थे और इन्होंने अपना सर्वस्व देशसेवा के लिए स सहर्ष उत्सर्ग कर दिया। 

भारतवर्ष में भी अँगरेजों का अत्याचार कम नहीं हो रहा था। जनता अपने आराध्यदेव के स्वागत के लिए पलक-पाँवड़े बिछाये बैठी थी। गाँधीजी जिधर चलते थे, इनके पीछे लाखों की भीड़ दौड़ पड़ती थी। 

Mahatma Gandhi : महात्मा गांधी का जीवन परिचय

गाँधीजी का प्रथम कर्मक्षेत्र:
भारतवर्ष में गाँधीजी का प्रथम कर्मक्षेत्र था, बिहार का चम्पारण। वहाँ निहले गोरे (नील की खेती के जमींदार और नील के कारखानेदार) हुआ। फिर तो इनके जीवन का क्षण-क्षण असंख्य क्रांतिकारी और निर्माणकारी घटनाओं से संकुल रहा। 26 जनवरी 1930 को इन्होंने स्वतंत्रता का मंत्रोच्चार किया। अगस्त 1942 में 'अँगरेजों! भारत छोड़ों! 'का आह्वान किया और इन संघर्षों का शुभ परिणाम हुआ कि 15 अगस्त 1947 को हमारे देश में स्वतंत्रता-देवी का आगमन हुआ। गाँधीजी के भौतिक जीवन का पटाक्षेप 30 जनवरी 1948 को साम्प्रदायिकता के काले हाथों हत्या के रूप में हुआ। 

गाँधीजी जी संपूर्ण जीवन ही धर्मक्षेत्र था। ये दुर्नीति के दुर्योंधन का सदा दर्पदलन करते रहे। ये आजीवन पूरी पृथ्वी पर प्रेम और शांति की अमिय-वृष्टि के लिए संघर्ष करते रहे। ये सत्य और अहिंसा के माहन पुजारी थे। इन्होंने  अच्छे साध्य के लिए कभी निकृष्ट साधन नहीं स्वीकार किया ।

गाँधीजी जी के कार्यसूत्र:
इनके तीन प्रमुख कार्यसूत्र थे—(1)गुलामी या अत्याचार के विरुध्द अहिंसक प्रतिरोध अर्थात सत्याग्रह, (2)राष्ट की आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए ग्रामोद्योग और उसका विस्तार और (3)शोषितों, अल्पसंख्यकों, हरिजनों और महिलाओं के अधिकार के विषय में प्राथमिकता। ये हमारे बापू हैं—राष्ट्रपति। इनका स्थान भारतीय जनता के हृदय में राम और कृष्ण की तरह परमपूज्य तथा अमिट है। ये सूर्य-स्तवन-श्लोक की तरह नित्य स्मरणीय हैं। महाकवि दिनकर के शब्दों में—

महात्मा गांधी की मृत्यु:
महात्मा गांधी की मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुई थी।  
उस दिन वे दिल्ली के बिड़ला भवन में शाम की प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे। उसी समय, नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने उनके ऊपर गोलियाँ चला दीं। गांधी जी ने अपने अंतिम शब्द ‘हे राम’ कहे और वहीं पर उनका निधन हो गया। यह घटना पूरे देश को झकझोर देने वाली थी। गांधी जी की अहिंसा और सत्य की राह पर चलने वाली सोच को इस हिंसा ने हमेशा के लिए एक गहरी चोट दी, लेकिन उनके विचार आज भी करोड़ों दिलों में जीवित हैं।



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