वसंत आया हिन्दी कविता का भावार्थ : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला Vasant Aaya by Suryakant Tripathi Nirala

वसंत आया हिन्दी कविता का भावार्थ : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला Vasant Aaya by Suryakant Tripathi Nirala
वसंत आया हिन्दी कविता का भावार्थ : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

'वसंत आया' सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की हिंदी कविता Vasant Aaya by Suryakant Tripathi Nirala

वसंत आया

सखि वसन्त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया ।

किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
मधुप-वृन्द बन्दी--
पिक-स्वर नभ सरसाया ।

लता-मुकुल-हार-गंध-भार भर,
बही पवन बंद मंद मंदतर,
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया ।

आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे,
केशर के केश कली के छुटे,
स्वर्ण-शस्य-अंचल
पृथ्वी का लहराया ।

वसंत आया कविता का भावार्थ
प्रस्तुति कविता 'वसंत आया' कवि की सौंदर्यगत भावना की अभिव्यक्ति है। वसंत के आगमन के पश्चात प्रकृति जिस माधुरी-रस से परिपूर्ण होती है उसकी अनुभूति कवि के लिए अत्यधिक सरस बन जाती है। रूपक अलंकार में बंधी यह कविता शृंगार-रस की निष्पति से परिपूर्ण है। कवि वसंत ऋतु में प्रकृति रूपी प्रिया का रूपक प्रस्तुत करते हुये कहता है कि किसलय रूपी वसन तथा लतिका रूपी नव-लय को धारण करती हुई वह तरु रूपी प्रिय से मिल रही है। प्रेम का आदान-प्रदान के भावाव्यक्ति प्रस्तुति हो रही है। है सखी! वसंत के आगमन के उपरांत सर्वत्र नवोत्कर्ष छाया गया है। भौंरों का समूह का गुञ्जार तथा कोयल के पंच-स्वर का गान आकाश में गूंज रहा है। ऐसा प्रतित हो रहा है जैसे प्रिय और प्रिया के मधुर मिलन के अवसर पर राग-रागिनी का स्वर सरसराने लगा। प्रकृति रूपी प्रिय कलियों से स्मृध्द लता सुवासित होकर उसके जले की हार बन गई। हवा धीरे-धीरे बहकर शालीनता भरा स्पर्श प्रदान कर रही है। कमल पुष्पों की आवृत्ति सरोबर के हृदय में पुष्पित होकर अपनी प्रफुल्लाता प्रकट कर रहे हैं। प्रकृति रूपी प्रिया की केशर रूपी केश बिखर रहे हैं और सुनहरे हरे आँचल धरती पर लहराने लगा। 

कवि प्रकृति रूपी प्रिया के अलंकार तथा वेश-भूषा की कल्पना प्राकृतिक सौंदर्य से करता है, जहाँ प्रिया का रूपक खड़ा होता है। इस कविता में वसंत-ऋतु की सरसता तथा सुंदरता का मणि-मंचन संयोग देखा जाता है। 

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