मैं क्यों लिखता हूँ? Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 NCERT Solutions

मैं क्यों लिखता हूँ? Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 NCERT Solutions 

'मैं क्यों लिखता हूँ?' पाठ में प्रसिद्ध लेखक अयज्ञ ने यह बताया है कि एक लेखक लिखने के लिए क्यों प्रेरित होता है। लेखन केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि लेखक की अंतःप्रेरणा, संवेदनशीलता और आत्मिक अनुभवों का परिणाम होता है। यह पाठ न केवल लेखन प्रक्रिया को उजागर करता है, बल्कि यह भी समझाता है कि लेखन एक स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। 
मैं क्यों लिखता हूँ?

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

1. लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों?

Ans- लेखक के अनुसार, प्रत्यक्ष अनुभव तो किसी घटना विशेष से जुड़ा होता है, लेकिन अनुभूति, संवेदना और कल्पना के माध्यम से वह सत्य भी आत्मसात किया जा सकता है, जो लेखक के साथ वास्तव में घटित नहीं हुआ हो। जो दृश्य आंखों के सामने कभी नहीं आया, वही दृश्य आत्मा के भीतर ज्वलंत प्रकाश की तरह प्रकट हो जाता है। ऐसे में वह अनुभूति लेखक के लिए एक तरह से प्रत्यक्ष अनुभव बन जाती है।

लेखक का मानना है कि जब भीतर की अनुभूति बुद्धि से ऊपर उठकर संवेदना के क्षेत्र में प्रवेश करती है, तो वह लेखक को लिखने के लिए विवश कर देती है। उस समय भावनाएँ स्वयं शब्दों का रूप लेने लगती हैं।

इस प्रकार, लेखक के लेखन में प्रत्यक्ष अनुभव की तुलना में भीतर की अनुभूति अधिक प्रभावी और प्रेरणादायक सिद्ध होती है। यही अनुभूति लेखक को कल्पना, संवेदना और शब्दों के माध्यम से उस सत्य से जोड़ देती है, जिसे वह कभी अपनी आंखों से नहीं देख सका।

2. लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?

Ans- लेखक जब जापान यात्रा पर गए, तब उन्होंने एक पत्थर में मानव की उजली छाया देखी। चूँकि वे विज्ञान के विद्यार्थी थे, वे तुरंत समझ गए कि यह छाया उस व्यक्ति की है, जो परमाणु विस्फोट के समय उस पत्थर के पास खड़ा था। विस्फोट से निकले रेडियोधर्मी विकिरण ने उस व्यक्ति को भाप में बदल दिया और पत्थर को झुलसा दिया। यह दृश्य लेखक के हृदय को भीतर तक झकझोर गया। यह अनुभव उनके लिए सिर्फ देखने की बात नहीं थी, बल्कि उन्होंने हिरोशिमा के उस भीषण विस्फोट को आत्मा से अनुभव किया। इस प्रकार लेखक एक प्रकार से उस त्रासदी के भोक्ता बन गए।

3. मैं क्यों लिखता हूँ? के आधार पर बताइए कि -

(क) लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं?

Ans- लेखक की आंतरिक विवशता ही उसे लिखने के लिए प्रेरित करती है। जब वह उस विवशता को पहचानता है और उसे शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता है, तो उसके भीतर एक तरह की शांति उत्पन्न होती है। लेखन के ज़रिए वह अपनी पीड़ा, उलझन या द्वंद्व को बाहर निकाल देता है और स्वयं को उससे मुक्त कर लेता है। यह प्रक्रिया लेखक को अपनी ही विवशता को तटस्थ होकर देखने और समझने की शक्ति देती है।

(ख) किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं?

Ans-किसी रचनाकार की रचना स्वयं में ही प्रेरणा का स्रोत बन जाती है, जो अन्य रचनाकारों को नए दृष्टिकोण से कुछ नया रचने के लिए प्रेरित करती है। जैसे—महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण से अनेक लेखकों ने प्रेरणा ली और अपनी सामाजिक स्थिति, अनुभवों और सुलभता के अनुसार उसके पात्रों को नए रूप में प्रस्तुत किया। महाभारत भी ऐसी ही एक कालजयी कृति है, जिससे समय-समय पर कई रचनाकारों ने नई व्याख्याएँ प्रस्तुत कीं। इस तरह एक रचना कई और रचनाओं की जननी बन जाती है।

4. कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति/स्वयं के अनुभव के साथ-साथ बाह्य दबाव भी महत्वपूर्ण होता है। ये बाह्य दबाव कौन-कौन-से हो सकते हैं?

Ans- हर रचनाकार केवल अपने अनुभवों के दम पर ही नहीं लिखता, बल्कि कभी-कभी बाहरी परिस्थितियाँ भी उसे लेखन की ओर मोड़ देती हैं।

• कई बार लेखक संपादकों या प्रकाशकों के अनुरोध पर लेखन करते हैं, जिससे उनके विचारों को दिशा मिलती है।

• कुछ लेखक अपनी रोज़मर्रा की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी लिखते हैं।

इस तरह लेखन एक ओर जहाँ आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम है, वहीं यह सामाजिक और व्यावसायिक ज़रूरतों से जुड़ा एक ज़रिया भी बन जाता है।

5. क्या बाह्य दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे?जैसे लेखकों को बाहरी दबाव प्रभावित करता है, वैसे ही अन्य क्षेत्रों के कलाकार भी इससे अछूते नहीं हैं।

• फिल्मी दुनिया में अभिनेता और अभिनेत्री पर निर्देशक की अपेक्षाओं का दबाव होता है, ताकि वे अपनी भूमिका को पूरी तरह निभा सकें और फिल्म सफल हो।

• गायक और नर्तक पर आयोजकों और श्रोताओं की पसंद-नापसंद का असर होता है, जिससे वे प्रस्तुति में बेहतर करने का प्रयास करते हैं।

• चित्रकारों को अपने ग्राहकों की मांग के अनुसार रचना करनी पड़ती है, ताकि उनकी कला खरीदी जाए और सराही जाए।

• खिलाड़ियों पर उनके कोच, टीम प्रबंधक और दर्शकों की उम्मीदों का बोझ होता है, जिससे वे हर खेल में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने का प्रयास करते हैं।

इस प्रकार बाह्य दबाव हर क्षेत्र के कलाकार को प्रभावित करता है—कभी प्रेरणा बनकर, तो कभी एक चुनौती के रूप में।

6. हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंत: व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है यह आप कैसे कह सकते हैं ?

Ans- जब लेखक जापान गए, तो उन्होंने हिरोशिमा का दौरा किया। वहाँ उन्होंने उस अस्पताल को देखा, जहाँ रेडियम से प्रभावित लोग अब भी कष्ट में थे। यह दृश्य देखकर उन्हें दुख तो हुआ, लेकिन यह लेखन की प्रेरणा नहीं बना।

पर जब उन्होंने एक जले हुए पत्थर पर किसी व्यक्ति की उजली छाया देखी, तो उनके दिल को गहरी चोट पहुँची। उन्होंने उस दर्द को महसूस किया और यही अनुभूति उनके लेखन की असली प्रेरणा बनी — यह उनका आंतरिक दबाव था।

चूँकि लेखक विज्ञान के छात्र थे, इसलिए वे इस घटना को अच्छी तरह समझते थे। शायद कुछ अलग और असरदार लिखने की चाह उनका बाह्य दबाव रहा हो।

7. हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ और किस तरह से हो रहा है?

Ans- विज्ञान ने इंसान की ज़िंदगी को आसान बनाया है, लेकिन इसका दुरुपयोग कई क्षेत्रों में हो रहा है, जैसे—

सड़कों पर बढ़ते वाहन ज़हरीला धुआँ छोड़ते हैं, जिससे हमारा स्वास्थ्य प्रभावित होता है। 

• आतंकवादी अब विज्ञान की मदद से बम और हथियार बनाकर दुनिया में हिंसा फैला रहे हैं।

• अल्ट्रासाउंड जैसी तकनीक का गलत इस्तेमाल कर कन्याभ्रूण की हत्या की जा रही है।

• किसान फसल बढ़ाने के लिए ज़हरीले रसायनों का उपयोग कर रहे हैं, जो लोगों की सेहत पर बुरा असर डालता है।

• आधुनिक चिकित्सा तकनीक का इस्तेमाल कर गैर-कानूनी अंग प्रत्यारोपण का गलत धंधा भी चल रहा है।

इसलिए ज़रूरी है कि विज्ञान का उपयोग सोच-समझकर और अच्छे कार्यों के लिए किया जाए।

8. एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है?

Ans- देश के एक जागरूक और संवेदनशील युवा नागरिक के रूप में हम विज्ञान के दुरुपयोग को कई तरीकों से रोक सकते हैं:

• बिजली की बचत करके हम ऊर्जा की रक्षा कर सकते हैं और पर्यावरण को नुकसान से बचा सकते हैं।

• विज्ञान से उपजे वायरस या बीमारियों को फैलने से रोककर हम समाज को सुरक्षित रख सकते हैं।

• रैलियों, सेमिनारों और मीडिया के माध्यम से लोगों को भ्रूणहत्या, अवैध अंग प्रत्यारोपण जैसी बुराइयों के खिलाफ जागरूक किया जा सकता है।

• किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर हम रासायनिक खादों के दुष्प्रभाव से लोगों को बचा सकते हैं।

इस प्रकार हम सब मिलकर विज्ञान को विनाश का नहीं, विकास का साधन बना सकते हैं।

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