बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' की मनोरथ कविता
बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' ने मनोरथ कविता में एक विरहिणी की वेदना की अभिव्यक्ति की है। प्रणयानुभूति के क्षण विरहिणी का ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रेमी से मिलने की आशा में सर्वत्र सुख और मस्ती का आलम परिलक्षित होता है। विरहिणी को मस्ती की अनुभूति होती है, मन भटकने लगता है, वृक्ष के डालों पर चिड़िया चहकने लगती हैं, कलियाँ की लरियों में बिखरी मृदु सुवासित होने लगती है, नायिका कहती है कि किसकी प्रतिमा हृदय में रखकर थाली सजाऊँ, किसके गले में अपनी भुजाओं को डालें आँसुओं की झरियों बहाऊँ? प्रस्तुत छन्द में विरहिणी के प्रश्नवाचक-भाव की अभीव्यक्ति हुई है। हृदय में प्रेम संजोकर, मन में उल्लासित वेग रखकर सर्वत्र बहार भरी समा देखकर वह अपने प्रेमाभिवक्ति के लिए प्रेमी को ढूँढ रही है। अपनी सखी से कहती है कि मैं किसके गले में कलियों की माला पहनाऊँ। इन पंक्तियों में प्रेमभिवक्ति प्रश्नवाचक भाव से प्रस्तुत होती है। यह छन्द मनोरथ भाव से परिपूर्ण है।कैसी लगी आपको बालकृष्णा शर्मा 'नवीन' की यह कविता कॉमेंट कर के हमें जरूर बताएं। उनके बारे में जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
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