बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' की मनोरथ कविता
बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
कविता
अलमस्त हुई मन झूम उठा, चिड़ियाँ चहकीं डरियाँ डरियाँ चुन ली सुकुमार कली बिखरी मृदु गूँथ उठीं लरियाँ लरियाँ
किसकी प्रतिमा हिय में रखिके नव आर्ति करूँ थरियाँ थरियाँ
किस ग्रीवा में डार ये डालूँ सखी, अँसुआन ढरूँ झरियाँ झरियाँ
सुकुमार पधार खिलो टुक तो इस दीन गरीबिन के अँगना
हँस दो, कस दो रस की की रसरी, खनका दो अजी कर के अँगना
तुम भूल गये कल से हलकी चुनरी गहरे रँग में रँगना
कर में कर थाम लिये चल दो रँग में रँग के अपने सँग - ना ?
निज ग्रीव में माल-सी डाल तनिक कृतकृत्य करौ शिथिला बहियाँ
हिय में चमके मृदु लोचन वे, कुछ दूर हटे दुख की बहियाँ
इस साँस की फाँस निकाल सखे, बरसा दो सरस रस की फुहियाँ
हरखे हिय रास रसे जियरा, खिल जायें मनोरथ की जुहियाँ l
मनोरथ कविता का सारांश:-
बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' ने मनोरथ कविता में एक विरहिणी की वेदना की अभिव्यक्ति की है। प्रणयानुभूति के क्षण विरहिणी का ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रेमी से मिलने की आशा में सर्वत्र सुख और मस्ती का आलम परिलक्षित होता है। विरहिणी को मस्ती की अनुभूति होती है, मन भटकने लगता है, वृक्ष के डालों पर चिड़िया चहकने लगती हैं, कलियाँ की लरियों में बिखरी मृदु सुवासित होने लगती है, नायिका कहती है कि किसकी प्रतिमा हृदय में रखकर थाली सजाऊँ, किसके गले में अपनी भुजाओं को डालें आँसुओं की झरियों बहाऊँ? प्रस्तुत छन्द में विरहिणी के प्रश्नवाचक-भाव की अभीव्यक्ति हुई है। हृदय में प्रेम संजोकर, मन में उल्लासित वेग रखकर सर्वत्र बहार भरी समा देखकर वह अपने प्रेमाभिवक्ति के लिए प्रेमी को ढूँढ रही है। अपनी सखी से कहती है कि मैं किसके गले में कलियों की माला पहनाऊँ। इन पंक्तियों में प्रेमभिवक्ति प्रश्नवाचक भाव से प्रस्तुत होती है। यह छन्द मनोरथ भाव से परिपूर्ण है।
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