झाँसी की रानी कविता : jhansi ki rani subhadra kumari chauhan

झाँसी की रानी सुभद्रा कुमरी चौहान के द्वारा लिखित विख्यात कविता का सारांश पढ़ें। 

झाँसी की रानी

झाँसी की रानी 

सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, 
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी, 
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी, 

चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी। 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। 

 कानपुर के नाना की मुँहबोली बहन छबीली' थी,
'लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी, 
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी, 
बरछी, ढाल कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी, 

वीर शिवाजी की गाथाएं उसकी याद जबानी थी। 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो 
झाँसी वाली रानी थी।। 

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी, वह स्वयं वीरता की अवतार, 
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार, 
नकली युध्द व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार, 
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार, 

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी। 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। 

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में, 
व्याह हुआ रानी बन आयी लक्ष्मीबाई झाँसी में, 
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छायी झाँसी में, 
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी झाँसी में, 

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी। 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। 

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छायी,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लायी,
तीर चलानेवाले-कर में उसे चूड़ियाँ कब भायी,
रानी विधवा हुई, हाय विधि को भी नहीं दया आयी, 

नि:संतान मरे राजाजी रानी शोक समानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का डालहोजी मन में हरषाया, 
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया, 
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया, 

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी। 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। 

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट फिरंगी माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं, नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया, 

रानी दासी बनी,बनी यह दासी अब महारानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों बात
कैद पेशवा बिठूर में हुआ नागपुर का भी घात, 
उदैपुर, तंजोर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात? 
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्मपर अभी हुआ था व्रज-निपात, 

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयी रनिवासों में, बेगम ग़म से थी बेजार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाजार,
सरे-आम नीलाम छापते थे अंग्रेजों के अखबार,
'नागपूर के जेवर ले लो 'लखनऊ के लो नौलख हार;

यों परदे की इज्जत परदेशी के हाथ बिकानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कृतियों में भी विषम वदेना महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुन्धूपन्त पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आ बृह्नान,

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो साई ज्योति जगानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।। 

महलों ने दी आग, झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरतम से आई थी,
झांसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुन्धूपन्त ताँतियाँ, चतुर अजीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवर सिंह सौनिक अभिराम,
भारत के इतिहास में अमर रहेंगे जिनके नाम, 

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झांसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में, 
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्व आसमानों में,

जख्मी होकर वाकर भागा,उसे अजब हैरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँहहमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आयी, कर-सा मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेजों ने फिर खायी रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार, 

अंग्रेजों के मित्र सिंधियाने छोड़ी राजधानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।

विजय मिली अंग्रेजों की, फिर सेना आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था,उसने मुँह की खाई थी,
काना और मन्दरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युध्दक्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी,

पर, पीछे ह्यूरोज आ गया, हाय! गिरी अब रानी थी,
बंदेलें हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार-काटकर चलती बनी सैन्य के पार, 
किंतु सामने नाला आया था वह संकट विषम-अपार
घोड़ा अड़ा नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार, 
रानी एक शत्रु बहुतेरे, होने वार पर-वार

घायल होकर गिरी सिंहानी उसे वीरगति पानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।

रानी गयी सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी मनुष नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी, बन स्वतंत्रता नारी थी,

दिखा गई पथ सिखा गयी हमको जो सीख सिखानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी, रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी, 
यह तेरा बलिदान जगायेगा स्वतंत्रता अविनाशी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झांसी, 

तेरा स्मारक तू ही होगी,तू खुद अमिट निशानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।

झांसी की रानी कविता का सारांश यहाँ पढ़ें-

"खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी" यह एक प्रसिद्ध हिंदी कविता है जो झाँसी की रानी, रानी लक्ष्मीबाई के बारे में है। इस कविता में उनके शौर्य, साहस और देशभक्ति की प्रशंसा की गई है। 

यहां कविता का अर्थ है:
वह बहुत शौर्यशाली थी, जैसे एक मर्द लड़ता है।
वह झाँसी की रानी थी, दिखाई देती थी उनकी महिमा।
वह अपनी देशभक्ति के लिए जान की बाजी लगा देती थी।
वह एक साहसी महिला थी, जिसने अपने देश के लिए लड़ाई लड़ी।

यह कविता रानी लक्ष्मीबाई के वीरता और समर्पण को मान्यता देती है और उन्हें भारतीय इतिहास में एक महान व्यक्ति के रूप में स्मरण करती है।

इस कविता के पंक्तियों में 1857 के विद्रोह के कारण को पूर्ण रूप से दर्शाया गया हैं।जब 1857 में अंग्रेजों के अत्याचार पूरी तरह से बढ़ गया था। तब उनके इस व्यवहार से सभी राजा चौकन्ने हो गए थे। अंग्रेजों के प्रति राजवंशों के मन में क्रोध उत्पन्न हो गया था। अंग्रेजों की कुटिल नीतियों से देशी शासक वर्ग चिंतित थे। 

सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी। यह कविता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महान घटनाओं को व्यक्त करती है। इसका सारांश इस प्रकार है:

इस पंक्ति में कहा गया है कि सिंहासन (राजगद्दी) हिल उठे। यह उपेक्षित और अधिकारी स्वतंत्रता संग्राम के समय की चर्चा कर रही है। यह बताती है कि भारतीय राजवंशों ने अपनी विशाल शक्ति को सम्मिलित किया और लोगों में जोश पैदा किया था।

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी। यह बताता है कि भारतीय जनता ने अपनी उम्र के बावजूद नई ऊर्जा और जोश को प्राप्त किया था। वे फिर से जीवंत हो गए थे और नयी लहर के रूप में उभर आए थे।

गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी। यह बताता है कि लोगों ने स्वतंत्रता की खोई हुई कीमत को समझा था। वे समझ गए थे कि स्वतंत्रता का महत्व क्या है और उसकी हासिल करने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है।

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। यह कविता संकेत करती है कि लोगों ने विदेशी शासन को दूर करने का संकल्प बनाया था। वे सभी लोग एकमत हो गए थे कि वे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष करेंगे और देश को स्वतंत्र कराएंगे।

चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी। यह बताता है कि सन १७७५ में उठी चमक वाली तलवार एक पुरानी थी। इससे दर्शाया जाना चाहिए कि वह तलवार वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की है, जो झाँसी की रानी के रूप में मशहूर हुई।

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। यह बताता है कि हमने बुंदेले के हरबोलों के मुँह से उनकी कहानी सुनी थी। यह आदिवासी या सिपाहियों के उच्चारण वाले बोल हैं जो रानी लक्ष्मीबाई की महिमा और वीरता की कहानी का जिक्र करते हैं।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। इस पंक्ति का उपयोग किया गया है ताकि बताया जा सके कि वह झाँसी की रानी कितनी बहादुर थी और उन्होंने अपने शौर्य के लिए मशहूर हो गई थी।

कानपुर के नाना की मुँहबोली बहन छबीली' थी, 'लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी। यह बताता है कि उनकी मुंहबोली और बहन छबीली नाना साहेब की बहन थी। उनका नाम लक्ष्मीबाई था और वे अपने पिता की एकमात्र संतान थीं।

नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी, बरछी, ढाल कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी। इस पंक्ति में यह बताया जा रहा है कि वह अपने नाना के संग पढ़ाई करती थी और उसके संग खेलती थी। उसकी सबसे अच्छी सहेली उसकी बरछी, ढाल, कटारी थीं, जो उसके साथ युद्ध में थीं।

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