Class 10 Hindi Kshitiz Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही
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1.पाठ-प्रवेश (Introduction):
‘उत्साह’ और ‘अट नहीं रही है’ दोनों कविताएँ महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित हैं। ये कविताएँ छायावाद युग की हैं, जिनमें प्रकृति का सुंदर चित्रण, भावनाओं की गहराई और मानवीकरण प्रमुखता से दिखता है। इन कविताओं में निराला जी ने आशा, उत्साह और प्रकृति के सौंदर्य को गहराई से व्यक्त किया है।
2.पाठ-सार (Summary):
‘उत्साह’:
यह कविता संघर्ष के समय में मनोबल बनाए रखने की प्रेरणा देती है। कवि कहता है कि अगर जीवन में संकट आएं, तब भी आत्म-विश्वास और साहस नहीं छोड़ना चाहिए।
‘अट नहीं रही है’:
इस कविता में फागुन ऋतु के सौंदर्य और मादकता का वर्णन है। पूरी प्रकृति जैसे खुशी से भर गई है—पेड़-पौधे, फूल, हवा, आकाश, पशु-पक्षी—सबमें उत्साह और उमंग है।
Top Exam Questions from उत्साह और अट नहीं रही
1.कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों?
उत्तर:
निराला क्रांतिकारी कवि थे। वे समाज में बदलाव लाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बादल से 'गरजने' को कहा। 'गरजना' शब्द बदलाव और विरोध का प्रतीक है, जो लोगों में जोश और चेतना जगाता है।
2.कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?
उत्तर:
कवि ने बादलों के माध्यम से लोगों में उत्साह जगाने की बात की है। वे समाज में क्रांति लाना चाहते हैं, इसलिए कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ रखा गया है।
3.कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर:
कविता में बादल कई अर्थों को दर्शाता है —
•वह पानी बरसाकर जीवन देता है।
•गर्जना करके क्रांति की चेतना जगाता है।
•नव निर्माण कर नया जीवन लाता है।
4.शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर:
इन पंक्तियों में नाद-सौंदर्य (ध्वनि की सुंदरता) दिखता है।
•"घेर घेर घोर गगन" – यहां 'घ' की पुनरावृत्ति ध्वनि में गूंज पैदा करती है।
•"ललित ललित, काले घुँघराले" – शब्दों की लय और तुकबंदी से काव्यात्मक सुंदरता बढ़ती है।
•"विद्युत-छबि उर में" – इसमें तेज़ प्रकाश की कल्पना और संगीतमय प्रवाह है।
•"विकल-विकल, उन्मन थे उन्मन" – दोहराव से भावनाओं की तीव्रता और ध्वनि की लय झलकती है।
अट नहीं रही है
1.छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर:
कविता की इन पंक्तियों से यह स्पष्ट होता है कि कवि ने अपने अंदर के भावों को बाहरी प्रकृति से जोड़ा है। भीतर की अनुभूति और बाहर का दृश्य—दोनों में गहरा तालमेल है।
इससे अन्तर्मन और बाहरी दुनिया के सामंजस्य की पुष्टि होती है।
और छोटा चाहिए तो बताओ।
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है|
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है|
2.कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
उत्तर:
फागुन का मौसम बहुत सुंदर और आकर्षक होता है। चारों ओर हरियाली, रंग-बिरंगे पत्ते और फूलों की खुशबू मन को भा जाती है। इसी कारण कवि की दृष्टि इस मनमोहक दृश्य से हट नहीं पा रही है।
3.प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?
उत्तर:
यह कविता ‘अट नहीं रही है’ में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने फागुन के सुंदर और आनंदमय रूप को दर्शाया है। पेड़-पौधे नए पत्तों, फूलों और फलों से भर गए हैं। हवा में भीनी-भीनी खुशबू फैल गई है और पूरी प्रकृति सुंदरता से भर गई है। खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, जानवर, पक्षी और गलियों-चौबारों में भी फागुन का उत्साह और खुशी साफ दिखाई देती है।
4.फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?
उत्तर:
फागुन के महीने में प्रकृति अपनी पूरी शोभा पर होती है। पेड़-पौधे नए पत्तों, फूलों और फलों से भर जाते हैं। हवा खुशबू से महकने लगती है और आकाश बिल्कुल साफ दिखाई देता है। पक्षियों के झुंड उड़ते हुए नजर आते हैं। बाग-बगीचे और पक्षी खुशी से भर जाते हैं। इस तरह फागुन का सौंदर्य बाकी सभी ऋतुओं से अलग और खास होता है।
5.इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ छायावाद के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। छायावाद की मुख्य विशेषताएँ हैं—प्रकृति का सुंदर चित्रण और प्राकृतिक चीज़ों को मानवीय रूप देना। उनकी कविताएँ ‘उत्साह’ और ‘अट नहीं रही है’ में ये विशेषताएँ साफ झलकती हैं। कविता के दो पहलू होते हैं—भाव (अनुभूति) और शिल्प (अभिव्यक्ति), और इन दोनों ही दृष्टियों से ये कविताएँ प्रभावशाली हैं। इनमें छायावाद की अन्य विशेषताएँ भी मिलती हैं जैसे—गीतात्मकता, प्रवाह, अलंकारों का सुंदर प्रयोग और मधुरता। ‘निराला’ जी की भाषा कहीं संस्कृतनिष्ठ और सजीव है तो कहीं ठेठ देहाती शब्दों से भरी हुई, जो कविताओं को और आकर्षक बनाती है। उनकी अतुकांत कविताओं में क्रांति का जोश, मिठास और मोहकता भी दिखती है। उनकी भाषा सरल, स्पष्ट और बहने जैसी लगती है।
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