कामना : Kamna by Harivansh Rai Bachchan

कामना : Kamna by Harivansh Rai Bachchan

कामना : Kamna by Harivansh Rai Bachchan

Harivansh Rai Bachchan

'कामना' कविता

जहाँ असत्य, सत्य पर न छा सके,
जहाँ मनुष्य को न पशु दबा सके,
हृदय-पुकार को न शून्य खा सके,
रहे सदा सुखी पवित्र मेदिनी।

जिसे न ज़ोर-ज्यादती डरा सके,
जिसे न लोभ लाख का गिरा सके,
जिसे न बल जहान का फिरा सके,
चले सदा प्रतापवान लेखनी।

कि जो विमूक भाव शब्द में धरे,
कि जो विमल विचार गीत में भरे,
कि जो भविष्य कल्पना मुखर करे,
जिए सदा ज़बान-प्राण का धनी।

'कामना' कविता का भावर्थ

'कामना' शीर्षक कविता के अंतर्गत कवि ने प्रतिकूलता में अनुकूलता की कामना की है। कवि प्रत्येक प्रतिकूल परिस्थितियों में अनुकूल स्थितियों की आशा रखते हुये प्रकृत के उन दृष्टान्तों को प्रस्तुत किया है जो सत्य है। कवि कहता है कि पतझड़ जब धरती पर उतरा है तब सम्पूर्ण प्रकृति वीरान दिखाई पड़ती है। सर्वत्र नीरसता एवं सन्नाटा नजर आता है, लेकिन इसी उदासी भरी परिस्थितियों में कोयल करुणा एवं ममता भरा स्वर स्पन्दित करती है। सर्वत्र उत्साह एवं सरसता का आलम छा जाता है। सम्पूर्ण प्राणियों को स्फुर्ति प्रदान करती है। निराशा एवं हतोत्साह भरा जीवन सरसता से ओत-प्रोत संजीवता दर्शाता है। ग्रीष्म ऋतु का भीषण ताप भरा वातावरण जब पेड़-पत्तियों की हरियाली नष्ट कर देता है, प्राणी जगत तप्त होकर त्राहि-त्राहि करने लगा है जब राशि की किरणों चुपके-चुपके सम्पूर्ण वसुंधरा को अपनी शीतल किरणों के स्नेह भरे स्पर्श से उसकी छाती को सहलाती है। ऐसी अवस्था में बरसात की जल-बूँद धरती को सरस बनाने लगती है। जनमानस के अंदर आशा के अंकुर उगने लगते हैं। 

जब धरती पर प्रलय का अंधकार अच्छादित हो जाता है युग-युग से हमारी खोयी हुई चेतना निश्चित धारण करती है तब अचानक रसों से युक्त नई प्रतिभा जागृत हो जाती है। कवि कहता है ऐसी अवस्था में जब हम मृत्यु की गोद में अपने आप को पाते हैं तब मधुर सपनों को हम देखें, ऐसी मेरी कामना है। कवि ने विरोधों के बीच आशा का दीप, अपने मन में दीप्त करता है। प्रकृत में निरन्तर निराशा के बीच आशा की क्षीण किरणें भी दिखाई देती रहती हैं। नहीं दृष्टिन्तों के आधार पर जीवन में निरन्तर आशा और विश्वास के बल पर सजीवता की कामना कवि ने की है।

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