शबरी जयंती: कौन थीं शबरी जानीए अनूठी भावुक कथा Shbari Jayanti 2023
Shbari Biography in Hindi
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को भगवान राम की शबरी से भेंट हुई थी। इस दिन श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर खाए थे। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन माता शबरी को मोक्ष मिला था। इसके पीछे यही है कि बरसों की प्रतीक्षा के बाद जब उनका भगवान से मिलन हुआ तो इस मिलन के बाद उन्हें मुक्ति मिल गई, क्योंकि ईश्वर से मिलने के बाद कोई अच्छा या कामना शेष नहीं रहती। सभी प्रकार की कामनाओं की समाप्ति ही मुक्ति है। और यहां तो शबरी की सिर्फ एक ही कामना थी, प्रभु राम से मिलने की। ऐसा माना जाता है कि आज के गुजरात के डांग जिले के सुबीर गांव में प्रभु राम और शबरी की भेंट हुई थीं। इस स्थान पर इनकी स्मृति में शबरीधाम मंदिर है, जिसे देखने हर वर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि शबरी का नाम 'श्रमणा' था। इनका संबंध भील समुदाय की शबर जाति था। इनके पिता भीलों के मुखिया थे। इनके पिता ने इनका विवाह एक भील कुमार से तय कर दिया। उस समय विवाह के अवसर पर जानवरों की बलि देने की प्रथा थी। इस प्रथा का भील कुमारी शबरी ने विरोध किया और इस प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से उन्होंने विवाह नहीं किया। इस घटना के पश्चात वे वन में जाकर मतंग ऋषि के आश्रम में रहने लगीं। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर मतंग ऋषि ने कहा कि एक दिन भगवान राम स्वयं तुम्हारे पास आएंगे और तुम्हारा उध्दार करेंगे। बस, इस विश्वास के भरोसे शबरी प्रभु राम की प्रतिक्षा करने लगीं।
शबरी जयंती के दिन भगवान राम और शबरी की पूजा की जाती है। ऐसा मान्यता है कि इस दिन भगवान राम को बेर का प्रसाद चढ़ाना चाहिए। यह पूर्ण आस्था, विश्वास और प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व बाताता है कि अगर निर्मल मन और दृढ़ विश्वास हो, तो स्वयं भगवान भी आपके पास आने को विवश हो जाते हैं।
इससे ही जुड़ी एक और कथा लोक में प्रचलित है। कहते हैं। कि जब राम भक्ति में डूबी शबरी के जूठे बेर खा रहे थे तो बीच-बीच में वे लक्ष्मण को भी बेर खाने को दे रहे थे। लेकिन लक्ष्मण ने प्रभु राम द्वारा दिए गए शबरी के जूठे बेर नहीं खाए और फेंक दिए। जब श्रीराम ने यह देखा तो उन्हें भक्त शबरी का अपमान लगा। उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि जिस शबरी की भक्ति का अनादन करते हुए, वह बेर फेंक रहे थे, वही बेर एक दिन संकट समय में उनके प्राण बचाएंगे। राम-रावण युध्द के समय जब लक्ष्मण मेघनाद की शक्ति से मूर्छित हुए थे, तब इन्हीं बेरों ने मृत संजीवनी के रूप में लक्ष्मण को पूर्णजीवन दिया।
Tags:
Biography