पृथ्वी रहेगी कविता का सारांश केदारनाथ सिंह

पृथ्वी रहेगी कविता का सारांश केदारनाथ सिंह

पृथ्वी रहेगी कविता का सारांश

पृथ्वी रहेगी कविता का सारांश केदारनाथ सिंह

कविता
मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में
यह रहेगी जैसे पेड़ के तने में
रहते हैं दीमक
जैसे दाने में रह लेता है घुन
यह रहेगी प्रलय के बाद भी मेरे अन्दर
यदि और कहीं नहीं तो मेरी ज़बान
और मेरी नश्वरता में
यह रहेगी

और एक सुबह मैं उठूंगा
मैं उठूंगा पृथ्वी-समेत
जल और कच्छप-समेत मैं उठूंगा
मैं उठूंगा और चल दूंगा उससे मिलने
जिससे वादा है
कि मिलूंगा।


पृथ्वी रहेगी कविता का सारांश:
कवि ने प्रस्तुत कविता में पृथ्वी को केंद्र बिंदु ठहराया उसे मानव जीवन से जोड़ा है। जिस प्रकार पेड़ के तने में दीमक निवास करते हैं, किसी दाने में समा जाता है, घुन और हड्डियों में भी रहेगी यह पृथ्वी। कवि कहता है कि एक दिन व्यक्ति पृथ्वी के साथ उठेगा। वह कच्छप समेत उठेगा। जिस प्रकार छोटे से पक्षी किसी से मिलने के लिए उड़ान लेता है उसी प्रकार कवि लौटकर पुन: बिछुड़े लोगों से मिलेगा। कवि को पुनर्मिलन के लिए असीम आस्था है। इस कविता है कि एक दिन व्यक्ति पृथ्वी के साथ उठेगा। वह कच्छप समेत उठेगा। जिस प्रकार छोटे से पक्षी किसी से मिलने के लिए उड़ान लेता है उसी प्रकार कवि लौटकर पुन: बिछुड़े लोगों से मिलेगा। कवि को पुनर्मिलन के लिए असीम आस्था है। इस कविता का केंद्र बिंदु मिट्टी की महत्ता और उसकी उपस्थिति केंद्र बिंदु बन जाती है। 

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