क्रिसमस पर निबंध Christmas Essay in Hindi

क्रिसमस पर निबंध Christmas Essay in Hindi

क्रिसमस पर निबंध Christmas Essay in Hindi


प्रारंभ-
क्रिसमस ईसाइयों का महान एवं पवित्र त्योहार। यह प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है। यह वह स्वर्णदिवस है, जब महाप्रभु ईसा इस धराधाम पर अवतरित हुए थे। न मालूम, कितना श्ताब्दियों से यहुदी एक ऐसे मसीहा-एक ऐसे आदर्श राजा के लिए प्रार्थना कर रहे थे, जो उन्हें स्वतंत्रता का वरदान देता तथा संपूर्ण मानवजाति पर अपनी न्यायाप्रियता एवं अच्छाई के कारण शासन करता। ईश्वर ने उसकी आकांक्षा पूरी की। उन्होंने न केवल उन्हें पूर्ण आदर्श राजा दिया, बल्कि अपना बेटा ही दिया, ऐसा बेटा, जिसे देश की, समय के संकुचित यहूदी-समाज की सीमाएँ बाँध नहीं पायीं, जिसका राज्य मनुष्य के हृदय और आत्मा पर हुआ। ईसा के मानवशरीर में जन्मग्रहण का लक्ष्य मानव को ईश्वर से पुनर्युक्त करना था। पाप ने मनुष्य को ईश्वर से अलग कर दिया है। ईसा मनुष्य को पाप से छुटकारा दिला सकते हैं। वे ही केवल ऐसा कर सकते हैं। वे सचमुच मनुष्य थे-हमलोग के-से हाड़-मांस के बने मनुष्य थे, इसलिए वे पापलिप्त मनुष्य को सुधारने में समर्थ थे। वे सचमुच ईश्वर के पुत्र थे, इसलिए वे मनुष्य से ईश्वर की मैत्री पूर्ववत करा सकते थे। विश्वाश का यही आनंदप्रद रहस्य है, जिसके कारण ईसाई 25 दिसम्बर को क्रिसमस का त्योहार मनाते हैं। 

जन्मकथा-
महाप्रभु ईसा की जन्मकथा से कौन परिचित नहीं है? यह इतनी सुज्ञात है कि इसे दुहराने की अवश्यकता नहीं। फिर भी, इसका सौंदर्य यह है कि यह प्रेरणा का अन्त स्रोत है। रोम के बादशाह के दंड के कारण यूसुफ को अपनी पत्नी मरिमय के साथ बेथेलहम की सभी सरायें खचाखच भरी थी। जब उन लोगों को वहाँ जगह न मिली तब उन्होंने एक पहाड़ी गुफा में शरण ली। मरियम ने वहाँ अपने ईश्वरीय पुत्र ईसा को जन्म दिया। कुछ गड़ेरियों के पास, जो पहाड़ी पर भेड़ चरा रहे थे, एक देवदूत आया और उनलोगों से बोला, "दाऊद के इस नगर में एक मुक्तिदाता का जन्म हुआ है-ये मुक्तिदाता स्वयं भगवान ईसा हैं। ये चिन्ह हैं, जिनसे तुम उन्हें जान पाओगे। अभी तुम कपड़ों में लिपटे एक शिशु को नाद में पड़ा देखोगे।" फिर देवदूतों का एक समूह आया जो ईश्वर की कीर्ति तथा मानवशांति और सदभावना के गीत गा रहा था। गड़ेरियों ने उनके कथन का अनुगमन किया और वे ही प्रथम विशेष सुविधाप्राप्त पुण्यात्मा थे, जिन्होंने मानवआकृति में ईश्वरपुत्र को देखा। घुटने टेककर उन्होंने ईसा की स्तुति की। उनके पास उपहार देने को कुछ भी न था। वे गरीब आदमी थे-वैसे ही जैसे स्वयं ईसा। महाप्रभु ईसा के जीवन का सबसे महान संदेश है कि मनुष्य सत्ता या संप्ति से महान नहीं होता, बल्कि आत्मिक स्वच्छता और ईश्वरीय निकटता से महान होता है। इस संदेश को हृदययंगम करते हुए युगों से लाखोंलाख ईसाइयों ने लौकिक संप्ति का परित्याग इसलिए किया है कि वे शिशु ईसा की तरह निर्धन और निरीह रह सकें। 

एक बड़े प्रमुख ईसाई संत फ्रांसिस अपनी दीनता के लिए विख्यात हैं। उन्होंने अपना सारा स्वत्व और संपदा त्याग दी, क्योंकि दिन बनकर वे ईसा का अनुसरण कर सकें। उन्होंने ही 'क्रिसमस चरनी' का प्रचलन किया। यह उस ग्रामीण दृश्य की पुन: स्थापना है, जिसमें शिशु ईसा, मरियम, यूसुफ, गड़ेरियों और पशुओं के दृश्य उपस्थित किये जाते हैं। सारे संसार में यह प्रथा फैली गयी है। 

महत्ता-
ईसा संभवत: 25 दिसंबर को नहीं जनमें थे।रोमराज्य में 25 दिसंबर को एक महान त्योहार डायनोसियस की उपासना के हेतु मनाया जाता था। ईसा की प्रथम शताब्दी में ईसाई उनका जन्मदिवस इसी समय मनाने लगे। तब इसी दिन यह त्योहार मनाया जाता है। तिथि बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण तो वह रहस्य और गूढ़ार्थ है, जिसका स्मरण इस दिन ईसाई करते हैं। 

महाप्रभु ईसा का जीवन त्याग-तपस्या का जीवन था। वे प्रेम और घृणा को मन की संतान मानते थे। मानव को नैसर्गिक गुणों के विकास में प्रयत्नशील रहना चाहिए। केवल धर्मस्थान जाने-आने और माला फेरने से धर्म का सर्जन नहीं होगा। उनके उपदेश इतने अच्छे हैं कि उनपर आचरण करने से कायापलट हो जाय। उनके पर्वतीय उपदेशों का सार है-"स्वर्ग का राज्य दीन-दु: खियों का है। नम्र व्यक्ति ही धन्य हैं। इस सारी पृथ्वी के वे ही अधिकार हैं। शुध्द हृदयवाले ही ईश्वर को पा सकते हैं। धर्म और न्याय के निमित्त कष्ट सहनेवाले लोगों के लिए स्वर्ग की निधियाँ सुरक्षित हैं। 

उपसंहार-
प्रभु ईसा का उपदेश 'सुसमाचार' कहलाता है। आत्मात्याग से मनुष्यों का हृदय परिवर्तन कर देनेवाली साधन उनकी सबसे बड़ी देन है। दीन-दु: खियों की सेवा भगवान की सेवा है। विश्व में निराशा का जीवन बुझा हुआ चिराग है, उसे आशा की ज्योति से जगमग करना चाहिए। गिरे हुए लोग भी मन की पवित्रता से ऊँचे उठ सकते हैं। ईसा पतितों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यहार करनेवाले पतितपावन थे तथा शास्त्रियों के धार्मिक पाखंड के घोर निंदक। सहृदय और मिलनसार होते हुए भी वे नितांत अनासक्त और अलिप्त थे। वे पाप से घृणा करते थे, पापियों से नहीं। वे अपने को ईश्वरतनय तथा संसार का मुक्तिदाता कहते हुए भी अहंकारशून्य तथा विनम्र थे। इस त्योहर के अवसर पर उपहार देने का भी प्रचलन हो गया है। क्यों न हो, इसी दिन मानवजाति ने ईसा के रूप में भगवान से सर्वोंत्तम उपहार पाया था। किंतु, आज बड़े-बड़े नगरों में व्यापारियों ने उपहार-विक्रय पर इतना बल देना प्रारंभ कर दिया है कि कहीं ऐसा न हो कि महाप्रभु ईसा के जन्मदिवस का आध्यात्मिक अर्थ ही उपेक्षित हो जाय। 

अत:, आवश्कता इस बात की है कि क्रिसमस के दिन हम केवल मोद न मनायें, केवल झंड़ियों से घर-बाजार न सजायें, केवल रंग-बिरंगे शुभकामना-पत्र ही न भेजें, केवल कीमती उपहार ही न दें, बल्कि महाप्रभु ईसा के जन्म का दिव्य रहस्य समझकर अपना आत्मिक विकास भी करें। 

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