सामाजिक परिवर्तन-खानाबदोश से एक जगह बसे समुदाय Social Science Class 7th Chapter-7 Ncert solution
1.रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
(क)उपमहाद्वीप के कुछ लोग जाति आधारित सामाजिक व्यवस्था को नहीं मानते थे।
(ख)12 वीं सदी तक बिहार एवं झारखंड के इलाके में चेरो का युद्भव हो चुका था।
(ग)बंजारा एक व्यापारी जनजाति थी।
(घ)गोंडवाना नामक विशाल वन प्रदेश में गोंडवाना जनजाति रहती थी।(ड०)झारखंड में 32 प्रकार की जनजातियाँ पायी जाती हैं।
2.निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर संक्षेप में दिजिए।
(क)जनजाति किसे कहते हैं?
Ans-जंगलों एवं सुदूर, पहाड़ी इलाकों में बसे छटे-छोटे गाँव में एक से अधिक पीढ़ी से साथ में रहने वाले परिवार को जनजातीय कहा जाता है।
(ख)बंजारा कौन थे?
Ans-वे लोग सबसे छोटे लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण खानाबदोश (घुमक्कड़) व्यापारी थे तथा कारवाँ (टांडा) बनाकर अनाज, हल्दी, हींग आदि ढोते थे।
(ग)जनजातीय समुदाय में बच्चें क्या काम करते थे?
Ans-जनजातीय समुदाय में बच्चे प्राय: में सुखते अनाजों को पशु-पक्षियों से सुरक्षा करना जैसे छोटे-छोटे कार्य करते थे।
(घ)तांडा किसे कहा जाता था?
Ans-बंजारा अपने परिवारों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते थे। वे खाद्य पदार्थों का व्यपार करते थे। उनका कारवाँ 'टांडा' कहलाता था।
(ड०)मध्यकाल में वर्ण आधारित समाज में क्या परिवर्तन आए?
Ans-मध्यकाल में वर्ण आधारित समाज में निम्नांकित परिवर्तन आए-
- वर्णों के भीतर छोटी-छोटी जातियाँ उभरने लगी।
- कई जनजातियाँ और सामाजिक समूहों को वर्ण विभाजित समाज में शामिल कर लिया गया और उन्हें जातियों का दर्जा दिया गया।
- विशेषता प्राप्त शिल्पियों,सुनार,लोहार,बढ़ई और राजमिस्री को भी बह्माणों द्वारा जातियों के रूप में मान्यता दी गई।
- पूर्ण के बजाय जाति समाज के संगठन का आधार बनी।
- 11-12 वीं सदी तक आते-जाते क्षत्रियों के बीच नए राजपूत गोत्रों की ताकत में काफी इजाफ़ा हुआ।
(च)जनजातियों के बारे बहुत जानकारी क्यों नहीं मिल पायी है?
Ans-जनजातियों के बारे बहुत जानकारी नहीं मिल पायी है इसके निम्नांकित कारण हो सकते है।
- जनजातिय समाज कोई दस्तावेज नहीं रखते थे। वे अपनी परंपरा एवं रीति-रिवाजों को मौखिक रूप से कथाओं, कहानियों आदि के रूप में सहेज कर रखते थे। पीढी़ दर पीढी़ इसका स्थानांरण मौखिक ही हुआ करता था।
- वे बाहरी लोगों को अपने आवसीय क्षेत्रों में प्रवेश की अनुमति प्राय: नहीं देते थे।
- ये समुदाय प्राय: सुदूरवर्ती इलाकों जैसे घने जंगलों, पहाडों, मरुभूमियों आदि में रहते थे। जहाँ इनसे बहारी लोगों का संपर्क नहीं हो पाता था।
(छ)जनजातीय समुदाय के लोग अपने जीविकोपाजर्न के लिए कौन-कौन से कार्य करते थे?
Ans-जनजातीय समुदाय के लोग अपने जीविकोपाजर्न के लिए कई तरह के कार्य करते थे। जैसे-आखेट, खाद्य संग्रहण, कृषि एवं पशुपालन का कार्य करते है। पुरुष पशुओं के चार के लिए चारागाह की खोज में रहते हैं। बर्तन बनाना, झोपड़ी बनाना, टोकरी बनाना जैसे कुछ कार्य स्त्री एवं पुरुष दोनों मिलकर करते है।
(ज)जनजातीय समुदाय के लोग एवं दूसरे समाज के लोग एक दूसरे पर कैसे निर्भर थे?
Ans- प्राकृतिक संसाधनों पर जनजातियों का एकाधिकार था। जल, जंगल, जमीन, से जुड़े ये समाज संयुक्त रूप से इन प्राकृतिक संसाधनों पर अपना नियंत्रण रखते थे। इन संसाधनों का बंटवारा परिवारों के सदस्य के बीच होता था। यह बँटवारा उनके अपने ही नियमों के अनुसार होता था। यह बँटवारा उनके अपने ही नियमों के अनुसार होता था। कभी-कभी उनका बाहरी लोगों से टकराव भी होता था। इनके लिए बाहरी लोग वे लोग थे जो जातीय व्यवस्था को मानते थे, लेकिन इस टकराव से ये अपनी स्वतंत्रता एवं संस्कृति को अक्षुण्य बनाये रखने में कामयाब रहे। जनजातिय समुदाय एवं दूसरे समाज के लोग एक-दूसरे पर निर्भर भी रहे हैं। टकराव और निर्भरता के इस संबंध से इन दोनों समाजों में धीरे-धीरे बदलाव आया। कुछ क्षेत्रों में कुछ जनजातियाँ शक्तिशाली एवं प्रभावशाली थी। उनका बड़े इलाकों पर नियंत्रण था। मध्यकाल में कई नयी जातियाँ जाति व्यवस्था में शामिल होने लगी थी। यह अर्थव्यवस्था एवं समाज की आवश्यकता बढ़ने के कारण हुई। कई जनजातियों को जाति व्यवस्था में शामिल, बढ़ई आदि को भी जाति का दर्जा दे दिया गया। वर्ण में भी छोटी-छोटी जातियाँ उभरने लगी। उदाहरण के लिए ब्राह्मणों की कई उपजातियाँ उभरकर सामने महत्वपूर्ण हो गई।
आइए चर्चा करें:
1.आपके विचार से खानाबदोश एवं घुमंतू जनजातियों को किस प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता होगा?
Ans-खानाबदोश एवं घुमंतू जनजातियों को इस प्रकार कठिनाइयों का सामना करना पड़ता होगा कि खानाबदोश एवं चरवाहे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घुमा करते थे। वे ऐसा अपने जानवरों के लिए चारागाह की तलाश में करते थे। ये दूध, घी तथा ऊन जैसे पशुचारी उत्पादों की बिक्री कर अपनी जीविका चलाते थे। वे खेतिहर गृहस्थों से अनाज, कपड़े एवं बर्तन आदि प्राप्त करते थे तथा बदले में इनको ऊन, घी जैसी चीजें देते थे। कुछ चरवाहे मवेशीयों एवं घोड़ों की बिक्री भी करते थे। कुछ खानाबदोश अपने जानवरों पर सामानों की ढुलाई का काम भी करते थे। एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते वे सामानों का क्रय-विक्रय करते थे।
2.जनजातियाँ प्राय: दुर्गम क्षेत्र में ही क्यों रहती थी?
Ans-जनजातियाँ प्राय: दुर्गम क्षेत्रों में निम्न कारणों से रहती थी-
- वे अपनी परंपरा एवं रीतिरिवाजों को बाहरी लोगों से दूर रखना चाहती थी।
- वे बाहरी लोगों को अपने आपसीय क्षेत्रों में प्रवेश की अनुभूति नहीं देते थे।
- जनजातियों की अपनी समृध्द संस्कृति व परंपरा है। इसमें उनकी भाषा संगीत कहानियाँ एवं चित्रकारी कला शामिल है।
- ये समुदाय प्राय: सुदूरवत्ति इलाकों जैसे घने जंगलों, पहाड़ों मरुभूमियों आदि में रहते थे। जहाँ इनका बहारी लोगों का संपर्क नहीं हो पाता था।
3.झारखंड में कितने प्रकार के जनजातियाँ पायी जाती है?
Ans-झारखंड में 32 प्रकार की जनजातियाँ पायी जाती है। जिसमें से आठ जनजाति (बिरोह,असुर,कोरवा, पहाड़ी,विरजि या,सौरिया पहाड़िया,माल पहाड़िया तथा सबर)को आदिम जनजाति की श्रेणी में रखा गया है। इसमें से असुर सबसे प्राचीन जनजाति है। वर्तमान में यह जनजाति लुप्त होने की कगार पर है। इस जनजाति के लोग रांची, लोहरदगा, धनबाद एवं सिमडेगा में रहते हैं।
उपर्युक्त अवतरण के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजीय।
(1)पीटर मुंडी कौन था?
Ans-पीटर मुंडी 17 वीं सदी के आरंभ में भारत आनेवाले एक अंग्रेज व्यापारी थे।
(2)14,000 बैलों पर क्या लदे थे?
Ans-14,000 बैलों पर गेहूँ और चावल जैसे अनाज लदे थे।
(3)बंजारे जानवरों से सामान उताकर उन जानवरों के साथ क्या करते थे?
Ans-बंजारे जानवरों से सामान उताकर उन जानवरों को चरने के लिए खुला छोड़ देते हैं क्योंकि यहाँ जमीन पर्याप्त है और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं।
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