ध्वनि कविता का सारांश वसंत भाग 3 कक्षा 8 पाठ 1- Hindi Vasant Class 8 Chapter 1 Solutions in Hindi

ध्वनि कविता का भावार्थ Dhwani Kavita by Suryakant Tripathi Nirala

ध्वनि कविता का भावार्थ

ध्वनि- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ Suryakant Tripathi Nirala Ki Kavita Dhwani

ध्वनि कविता जो कि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की है। निराला जी ध्वनि कविता के माध्यम से प्रकृति का वर्णन करते हुए उन्होंने लोगों की भावनाओं को दर्शाया है। 

ध्वनि कविता का भावार्थ

काव्यांश 1 .
अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसंत
अभी न होगा मेरा अंत
भावार्थ-कवि सूर्यकत जी ध्वनि कविता की इन पंक्ति में कह रहे हैं कि अभी उनका अंत नहीं होगा। क्योंकि उनके जीवन में वसंत अभी-अभी ही तो आया है। इसलिए अभी उनका अंत नहीं होगा। कवि कहते है उनका हृदय उल्लास और उत्साह से भरा हुआ है। जब तक वह अपने लक्ष्य को पा नहीं लेते तब तक वह हार नहीं मानेंगे। 

काव्यांश 2.
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न मृदुल- कर
फेरूंगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।
भावार्थ-कवि सूर्यकांत जी ध्वनि कविता की इन पंक्ति में कह रहे हैं कि  उनके सामने प्रकृति का सुंदर हृदय है जहाँ चारों और हरे-भरे पेड़ पौधे है जहाँ पौधों पर खिली कलियाँ मानो अब तक सो रही है। कवि कहते है कि वह सूरज को खींच लाऐंगे और उन सोई कलियों को उगायेंगे। निराला जी इन प्रकृति के माध्यम से हारे हुओ लोगों के जीवन के बारे में दर्शता है कि जिस प्रकार सूर्य के आने से पेड़ पौधों और कलियों। में परिवर्तन आता है, ठीक उसी प्रकार से निराला जी लोगों के हृदय में उत्साह और उल्लास भर कर उनमें परिवर्तन लाना चाहते हैं। 
 काव्यांश 3 .
पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं।
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं।

भावार्थ-कवि सूर्यकांत जी ध्वनि कविता की इन पंक्ति में कह रहे हैं कि जिस प्रकार सूर्य के आने से कुछ पेड़ पौधों व कलियां आल्सय से भरे निंद में रहते हैं। ठीक उसी प्रकार कुछ निराशा भरे लोग आल्सय से निंद में रहते है। और ऐसे लोगों का जीवन में कोई उद्देश्य नहीं है। कवि कहते हैं की में उन सब से उनकी नींद को छीन लूंगा और उन सारे सोए हुए लोगों को जगा दूंगा। अर्थात कवि उन निराशा भरे लोगों के जीवन में नए उत्साह का संचार करना चाहते है। 


काव्यांश 4.
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको
हैं वे मेरे जहाँ अनंत
अभी न होगा मेरा अंत।
भावार्थ-कवि सूर्यकांत जी ध्वनि कविता की इन पंक्ति में कह रहे हैं कि में सोये हुए लोगों को निंद से जगा कर उन्हें नया जीवन जीने का कला सिखा दूंगा। फिर वो कभी उदास नहीं होंगे और वे लोग अपने-अपने जीवन को सुख से व्यतीत कर पाएंगे। कवि कहते है कि उन्हें अभी नींद में सोये हुए युवाओं को जागृत करना है। युवाओं को उनके लक्ष्य तक पहुँचाना है यानी की कवि को अभी बहुत सारे कार्य करना है। इसलिए अभी मेरा अंत नहीं हो सकता। 

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