जयशंकर प्रसाद की कहानी Hindi Story Akashdeep Book by Jaishankar Prasad
'आकाश-दीप' प्रेम-प्रधान कहानी है।'आकाश-दीप' शीर्षक कहानी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित है। यह कथात्मक प्रेम-परक कहानी होती हुई भी अति रोमांचकारी है। इसके मुख्य पात्र नायक, बुध्दगुप्त, चम्पा और जया है। यह कथा मुख्य रूप से बुध्दगुप्त और चम्पा के बीच प्रेम सम्बन्ध की कथा है जो पवित्र धरातल पर उतरकर, व्यापक भावभूमि की रचना करती है। चम्पा प्रेमविहीन जीवन में सवन्त की सुरभि की अनुभूति अपने जीवन में एक क्षण के लिए भी नहीं करती है। चंपा जाह्नवी के तट पर, चम्पा नगरी की क्षत्रिय बालिका थी। उसके पिता मणिभद्र के यहाँ प्रहारी का काम करते थे। माता का देहावसान हो जाने पर वह पिता के साथ नाव पर रहने लगी थी। आठ वर्षों से समुद्र में ही अपना घर समझ कर जीवन-यापन कर रही थी। वह अब अनाथ का जीवन-यापन कर रही थी। मणिभद्र के वासनात्मक प्रस्ताव से वह विद्रोह कर उठी उसकी घोर प्रतिक्रिया से मणिभद्र ने बंदी बना लिया। वह क्रोध और घृणा का भाव लेकर मणिभद्र के साथ प्रस्तुत होती थी।बुध्दगुप्त भी जलदस्यु होने के कारण मणिभद्र द्वारा बंदी बनाया गया था। वास्ताविक यह थी कि वह ताम्रलिपि का एक क्षत्रिय था। दोनों बंदी का परिचय दुःख और घुटन के ऐसे क्षणों में होता है जब दोनों मुक्त होते हैं। बुध्दगुप्त ही सर्वप्रथम बंदी जीवन से मुक्त होने के लिए प्रस्ताव रखता है। दोनों ने निर्णय लिया कि पोत से सम्बध्द रज्जु को काट देने की योजना बनाई जाय। दोनों स्वतंत्र होकर उस रज्जु को काट देते है। दोनों लहरों के हिलोरे से टकराकर एक दूसरे से टकराने लगे। दुःख के समान संताप में तप्त दोनों बंदी हृदय से एकाकार हुए, परंतु बुध्दगुप्त ने यह नहीं सोचा था कि वह बंदी नारी है। नाव का नायक उसको अधिकार में कर लेता है। नाव द्वीप के पास पहुँचने लगा। दोनों पुलकित भाव से प्रेरित होकर खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं। पाँच वर्ष बाद अपने द्वीप में दोनों पहुँचते हैं। चम्पा के हृदय में नव-जीवन की अनुभूति से गुदगुदी होने लगी। वह वेसुध थी। एक दीर्घकाय दृढ़ पुरुष ने उसकी पीठ पर हाथ रखकर उसे चमत्कृत कर दिया था वह 'आकाश-दीप' जलाने में मग्न हो जाती है। बुध्दगुप्त उस दीप के रहस्य की जानकारी करते हुए उसके मनोभाव की जानकारी करता है। बुध्दगुप्त भारत की भूमि पर शांति का जीवन-यापन करना चाहता है। चम्पा एक ओर अपने पिता के हत्यारा के रूप में उससे घृणा भाव रखती हैं तो दूसरी और प्रेममयी सम्बन्ध के लिए कायल भी है। वह कहती है कि बुध्दगुप्त मेरे लिए एक शून्य है। प्रिय नाविक! तुम स्वदेश लौट जाओ। विभावों का सुख भोगने के लिए मुझे छोड़ दो, इन भोले-भाले प्राणियों के दुःख की सहानुभूति और सेवा के लिए। चम्पा का यह कथन प्रकाशित जीवन के प्राप्ति प्रेम और सम्पूर्ण का भाव दर्शाता है।बुध्दगुप्त से अलग होकर भी उसके सुख और शांति के लिए चिंता करती है। यह कथा मातृभूमि के प्रति प्रेम और सम्पूर्ण की कथा है। दोनों एक दूसरे के प्रति और सम्पूर्ण का भाव अपनी मातृभूमि के लिए व्यक्त करते हैं। परंतु परस्पर प्रेम की अवहेलना भी नहीं करते। इस कथा की कथावस्तु प्रेम और सम्पूर्ण के भाव तक सीमित है। कथाकार ने यह दर्शाना चाहा कि अपनी संस्कृति से बढ़कर सामाजिक सम्बन्ध नहीं है।
बुध्दगुप्त का चरित्र-चित्रण-
बुध्दगुप्त कहानिकार जयशंकर प्रसाद विरचित 'आकाशदीप' शीर्षक कहानी का कथानायक है। वह जलदस्यु है जिस कारण वह मणिभद्र द्वारा बंदी बनाया जाता है। मणिभद्र के यहाँ नाविक पुत्री चम्पा भी पहले से उसके घृणित प्रस्ताव से इंकार करने के कारण बंदी बनी रहती है। आँधी की संभावना को भांपते हुए दोनों ही अंधकार में ही बन्धन से मुक्त होते हैं। बाद में बुध्दगुप्त सहचार्य दूसरे बंदी का परिचय चम्पा के रूप में प्राप्त करता है।तत्पश्चात् अपने प्रति उसके हृदय में प्रणय-भाव जाग्रत होता जानकर वह उसकी ओर आकृष्ट होता है। किंतु वह अन्तत: अपनी सासों में किलता लिये स्वदेश के लिए प्रस्थान कर जाता है।
चम्पा का चरित्र-चित्रण-
चम्पा कहानिकार जयशंकर प्रसाद विरचित 'आकाशदीप' शीर्षक कहानी की एक महत्वपूर्ण नारी पात्र और कथानायिका है। वह एक नाविक की पुत्री है। समुद्र ही उसका घर है, क्योंकि उसके पिता मणिभद्र का प्रहारी है। वह पिता की मृत्यु के उपरांत एक बंदी का जीवन तब यापन करने लगती है जब जलदस्यु के द्वारा उसके पिता की मृत्यु हो जाती है। यह संघर्षशील जीवन व्यतीत करती है। जीवन की मधुर-कल्पना सूखे रेगिस्तान की तरह अच्छादित थी। धैर्य, सहनशीलता और पिता की मृत्यु की प्रतिशोधात्मक धारणा मन में पाल रही है। बुध्दगुप्त जलदस्यु से उसकी मुलाकात होती है तब उसके प्रणय-भाव का विकास होने लगा है।
बुध्दगुप्त पूछता है-'क्या तुम स्त्री हो?'
उसने कहा-क्या स्त्री होना कोई पाप है?
उप उपयुक्त कथन से यह स्पष्ट हो रहा है कि स्त्री होने से पहले वह एक इंसान है। बुध्दगुप्त उसके इस उत्तर से शर्मिंदा भी होता है। आदमियत के परिप्रेक्ष्य में चम्पा के चरित्र की वयंजना करें तो हम इस निर्णय बिंदु पर पहुँचते हैं कि वह मानवीय धरातल में जिंदगी का स्वरूप देखना चाहती है।
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