मुंशी प्रेमचंद का कर्मभूमि उपन्यास हिंदी नॉवेल ऑफ प्रेमचंद Karmabhoomi Hindi Novel by Munshi Premchand

मुंशी प्रेमचंद का कर्मभूमि उपन्यास हिंदी नॉवेल ऑफ प्रेमचंद Karmabhoomi Hindi Novel by Munshi Premchand

'कर्मभूमि' उपन्यासकार प्रेमचंद लिखित उनका एक आदर्शन्मुख यथार्थवादी उपन्यास है। इसमें उपन्यासकार द्वारा युगीन सामाजिक समस्याओं का सफलता के साथ चित्रण करते हुए गाँधीयुग के सुधारों के प्रति अपने विशेष आग्रह को दर्शाया है इसमें विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि पात्रों एवं तत्कालीन सामाजिक तथा राजनीतिक गतिविधियों के चित्रण के माध्यम से जीवन-यथार्थ को प्रस्तुत किया है। 
मुंशी प्रेमचंद का कर्मभूमि उपन्यास हिंदी नॉवेल ऑफ प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद का कर्मभूमि उपन्यास हिंदी नॉवेल ऑफ प्रेमचंद Karmabhoomi Hindi Novel by Munshi Premchand

'कर्मभूमि' 1932 ई. में लिखा गया था। यह प्रेमचंद का अमर उपन्यास है जिसमें उन्होंने बड़े आधार फलक पर उन राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक प्रवृत्तियों का चित्रण किया है जो पग-पग पर तत्कालीन भारतीय समाज और जीवन को प्रभावित कर रही थी। नगर और ग्राम की समस्या का समग्र प्रभाव किस प्रकार लोक जीवन को प्रभावित करता है। इस पर उपन्यासकार ने बड़ी व्यापकता का परिचय दिया है। इस दृष्टि से यह उपन्यास प्रेमचंद जी के समसामयिक युग का यर्थाथ चित्र उपस्थित करता है।

तत्कालीन राजनीति में महत्मा गाँधी का अहिंसात्मक आंदोलन अपने चरम उत्कर्ष पर था। इस अहिंसात्मक आंदोलन के अतिरिक्त मंगल पाण्डे, तात्या टोपे, झाँसी की रानी, बाल गंगाधर तिलक, रास बिहारी बोस आदि के माध्यम से आतंकवादी आंदोलन चला रहा था। 'कर्मभूमि'  के प्रात्रों में अमरकांत पहले आंदोलन का समर्थक है और सलीम तथा आत्मान्द दूसरे प्रकार के समर्थक हैं। अमरकांत अपनी आंदोलन को धर्मयुध्द कहता है और वह त्याग, बलिदान तथा सत्य के आधार पर विजय का आकांक्षी है। उसकी समरनीति और महत्मा गाँधी की समरनीति में बड़ा साम्य है। इस प्रकार यह कहना सही होगा कि 'कर्मभूमि' का राजनीतिक जीवन गाँधीवाद से यथेष्ठ प्रभावित है। 

'कर्मभूमि' मुंशी प्रेमचंद का 'आदर्शोंमुख यथार्थवादी' उपन्यास है जिसे प्रेमचंद ने पाँच भागों में विभाजित किया। इस उपन्यास के कथनायक अमरकांत है तथा कथनायिका सुखदा है। इसके अलावे लाला समरकांत, जो की अमरकांत के पिता है तथा रेणुकांत जो सुखदा का पुत्र है तथा पुत्री नेना सकीना है। हाफिज हलीम और उनके पुत्र मंनीराम, डॉ० शांतिकुमार और स्वामी आत्मानंद, गदड़ प्रयाग, काशी, सलोनी और मुन्नी आदि की कहानी है। 

'कर्मभूमि' की कथावस्तु के दो धरातल हैं-नागरिक जीवन और ग्रामीण जीवन उपन्यास के प्रारम्भिक भाग में नागरिक जीवन का चित्रण है और मध्य भाग में ग्रामीण जीवन का और अन्ततोगत्वा दोनों जीवन पध्दतियों का समन्वय दृष्टिगत होता है। 

उपन्यास के नायक अमरकांत का जन्म शहर में होता है। शिक्षा-दीक्षा भी शहर में ही होती है, परंतु उसकी कर्मभूमि ग्रामीण जीवन है। अमरकांत परिस्थितियों का दास (शिकार) बना हुआ कोमल भावुक प्राणी है शल्फ फौक्स ने अपनी पुस्तक 'The Novel And The People' में परिस्थितियों के प्रभाव के विषय में लिखा है कि-परिस्थितियाँ आदमी को बदल नहीं सकती, अपितु परिस्थितियों के बदलने के क्रम में परिस्थितियाँ भी बदल जाती है। अमरकांत इन्हीं परिस्थितियों के चलते बनता बिगड़ता रहा है। वह अपने पारिवारिक मतभेद से चिढ़कर भाग जाता है सुदूर देहात में, वहीं उसका कार्यक्षेत्र बन जाता है। वह अपनी पूरी शक्ति के साथ कार्य में जुट जाता है। यों सुंदर कार्य दोनों जगह चलता है गाँव में भी और शहर में भी शहर के कार्यकर्ताओं में प्रो० शांति कुमार, सुखदा, नैना आदि है और गाँव में अमरकांत और आत्माराम। 

इस प्रकार प्रेमचंद ने दोनों पात्रों के चित्रण के लिए व्यापक चित्रफल का निर्माण किया है। अमरकांत के लिए गाँवों का अनुभव सर्वथा नवीन है। यद्यपि किशोरावस्था में ही उसे ग्रामीण जीवन की झलक मिलती है तथापि उसके निकट आने का अवसर नहीं मिला था। गाँवों में जाकर गाँवों की संस्याओं को आँखों से देखता है और अपनी अनुभव की तुलना पर समझता है, परखता है,। चमारों की बस्ती के उन्नयन में वह अपनी सारी सामथ्र्य लगा देता है। कहना न होगा कि प्रेमचंद सर्वप्रथम उपन्यासकार हैं जिनकी दृष्टि रीतिकालीन दरबारों और सुंदरियों से हटाकर चमारों की बस्ती और गंदी गलियों में घूमती है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि उनके हृदय में अछूतों के प्रति सहानुभूति है। उन्होंने ग्रामीण जीवन को बड़ा सक्षमता से परखता था। शोषकों के क्रूर हथकंडों को देखा था और शोषितों के करुणा एवं बेबस कराह को गौर से सुना था।

प्रेमचन्द अमरकांत के समानांतर आत्मानन्द का चरित्र रखकर प्रेमचंद अमरकांत के नेतृत्व की कमजोरियों को पूरी सपष्ट करते है-यह भी सपष्ट करते हैं कि अमरकांत के संस्कारों में अवरोधक पहलू कहाँ है। सत्य और अहिंसा की रक्षा के लिए जनता से साफ झूठ बोल जाने में अमरकांत को कठिनाई नहीं होती। महन्थ की व्यस्था की सारी कुटिलताएं जानकर भी वह जनता को महन्थ के रूप में रखना चाहता है ताकि शांति बनी रहे। वह आत्मानन्द की उग्रता को आपत्तिजनक बताकर उनकी गिरफ्तारी की योजना में अफसर के साथ हो लेता है और फिर उनकी बातचीत का विषय 'औरत' रह जाती है। 

मुंशी प्रेमचंद का कर्मभूमि उपन्यास हिंदी नॉवेल ऑफ प्रेमचंद Karmabhoomi Hindi Novel by Munshi Premchand

अमरकान्त का चरित्र चित्रण:-
अमरकान्त उपन्यासकार प्रेमचंद कृत 'कर्मभूमि' उपन्यास का कथानायक है। अमरकान्त बनारस के सेठ समरकान्त का बेटा है। वह शुद्ध खद्दार पहनता है चरखा चलाता है और सार्वजनिक कार्यों में भाग लेता है। इसलिए बाप-बेटे में नहीं बनती अमरकान्त के पास स्कूल की फीस तक देने को पैसे नहीं होते, माँ बचपन में ही मर गई थी। पिता ने दूसरा ब्याह किया था। उससे एक लड़की नैना है। भाई-बहन में प्रेम है। दूसरी पत्नी के मरने के पश्चात समरकान्त ने फिर अपन ब्याह नहीं कराया। 

सुना घर आबाद करने के लिए अमर की शादी सुखदा से कर दी है। सुखदा को विधवा माँ से बहुत बड़ी जादाद मिलने वाली है। वह भी पति से इसलिए झगड़ती रहती है कि वह क्यों बेकार के कामों में समय नष्ट करता है, व्यापार में पिता का हाथ क्यों नहीं बाँटाता? लेकिन वह डॉ० शांतिकुमार और दूसरे मित्रों के साथ ग्राम-सेवा के लिए जाया करता है। पत्नी से प्रेम न पाकर अमर सकिना की ओर आकर्षित होता है। उन दोनों का प्रेम और घर का झगड़ा बढ़ता है। आखिर एक दिन अमर पिता से कहता है "दादा, आपके घर में तेरा इतना जीवन नष्ट हो गया, अब मैं उसे और नष्ट नहीं करना चाहता। आदमी का जीवन केवल खाने और मर जाने के लिए नहीं होता, न धन संचय उसका उद्देश्य है। जिस दिशा में मैं हूँ वह मेरे लिए असहनीय हो गई है। मैं एक नये जीवन का सूत्रपात करने जा रहा हूँ। "इतना कहकर वह घर से चला जाता है और चमारों के एक गाँव में जाकर रहने लगता है। 

अमर के चले जाने पर सुखदा की आँखें खुलती है और वह पति के आदर्श पर चलने के लिए जन सेवा में रुचि लेने लगती हैं। शहर में अछूतों के लिए मंदिर खुलवाने का काम करती है। सुखदा डॉ० शान्ति कुमार आदि के साथ उसमें भाग लेती है। आंदोलन सफल हो जाता है।अमरकांत चरमों के बीच रहकर उसकी संस्याओं पर ध्यान देता है। अधिक लगान से किसानों की आर्थिक दशा बिगड़ जाती है और अमरकांत के नेतृत्व में लगानबंदी का आंदोलन चलता है।

अमरकांत शोषण पध्दति के विरुद्ध किसानों के क्रोध को शांत करके आंदोलन अहिंसावादी ढंग से चलता है। उसका मित्र सलीम आई० सी० एस० में पास होकर इस इलाके में नियुक्त होता है और वही सरकार के हुक्म से अमर को गिरफ्तार करता है। लेकिन अन्त में वह भी किसानों का पक्ष लेकर जेल चला जाता है। उधर शहर में अछूतों के लिए अच्छे मकान बनाने का आंदोलन चल रहा है जिसमें शान्ति कुमार, सुखदा और उसकी माँ रेणुका देवी आदि बहुत लोग गिरफ्तार होकर जेल में जाते हैं। अमर का बाप भी बेटे की खोज में गाँव जाता है और किसान आंदोलन के सिलसिलें में गिरफ्तार होकर जेल पहुँच जाता है।

आंदोलन इतना आगे बढ़ता है कि आखिर सरकार झुक जाती है। गवर्नर फैसला करता है कि लगानबंदी के सम्बन्ध में पाँच व्यक्तियों की एक कमिटी बनाई जाय, जिसमें अमरकांत और सलीम भी शामिल हो। सब प्रसन्न होते हैं कि वाह! कितना सुंदर फैसला है। इसमें संदेह नहीं कि यह उपन्यास विशेषत: राजनीतिक आंदोलन और उसके अछूतोध्दार सम्बन्धी पहलू पर लिखा गया है लेकिन इससे सुदखोरी और चोरी के माल पर चलने वाले व्यापार, पिता-पुत्र और पति-पत्नी के एक दूसरे को गुलाम बनाये रखने वाले प्राणहीन सम्बन्ध, निकम्मी शिक्षा पध्दति, पढ़े-लिखे लोगों का स्वार्थ, सरकारी घुसखोरी और जमींदारों द्वारा किसानों के शोषण पर भी बहुत अच्छा प्रकाश पड़ता है। 

प्रेमचंद जी सुधारवादी और सत्याग्रह के सिध्दांत को लेकर चलते हैं, लेकिन उनकी जड़े हमारे जन-जीवन में बहुत दूर तक चली गई थी और उन्होंने अपने अनुभव से देख लिया था कि वर्ग-शोषण, घुसखोरी, सुदखोरी और अंधविश्वास के दीमक ने इस समाज को चाट-चाट कर इतना खोखला कर दिया है कि उसमें अब जान बाकी नहीं है। इसलिए वह इस समाज का अन्त करके नव जीवन निर्माण करने वाली शक्तियों को उभारते हैं। 

प्रेमचंद के कथानानुसार अमरकांत इस उपन्यास का आदर्श पात्र है।वह क्रांति और नवजीवन के निर्माण में विश्वास रखता है और अपने इन विचारों को कार्यान्वित करने के लिए वह पिता का घर छोड़कर चला जाता है। लेकिन अन्त में अपनी वर्गगत असंगतियों के कारण क्रांति को सुधारवाद के मार्ग पर डाल देता है, सरकार से समझौता करके खुश होता है और अपने सुदखोर पिता के साथ फिर घर लौट आता है। 

सुखदा का चरित्र चित्रण:-
'कर्मभूमि' में सभी पात्रों का उचित प्रतिनिधित्व प्रेमचंद जैसे कलम के सिपाही से ही सम्भव हो सकता है। विविध चरित्रों को सही स्थान देना भी उन्हीं से सम्भव था। यों तो कर्मभूमि उपन्यास में कई महत्वपूर्ण चरित्र हैं; जिसमें अमरकांत,समरकांत, नैना, सलीम, प्रो० शान्ति कुमार एवं सुखदा है। 

सुखदा का एक अपना अलग दृष्टिकोण है। वह अमरकांत की स्वच्छन्द विचारों की पत्नी है। ऐश्वर्य और भोग उसके जीवन का लक्ष्य है। दायरों में वह सिकुड़ना, सिंमटना नहीं जानती। उसका लालन-पालन स्वच्छन्द वातावरण में हुआ है। विधवा माता की अतुल संपति की अधिकारिणी सुखदा अनन्त सुख में बेटे की पत्नी, तो फिर वह त्याग और सेवा का दया मूल्य जानती ? विचित्रता यह थी कि युवक प्रवृत्ति की युवती, युवती प्रकृति के युवक से ब्याही गई। दोनों में संघर्ष स्वाभाविक था। फल हुआ कि प्रारभ्म में न सुखदा अमर को अपने अनुरूप बना सकी और न अमर सुखदा को। 

सुखदा का प्रारम्भिक चित्रण ऐसी साधारण स्त्रियों की तरह ही है जो ऐश पर जान दे देती है। धन उनके जीवन का प्रमुख अंग है। वह उसकी उपासिका है। "भोग विलास को वह जीवन का सबसे मुल्यवान वस्तु समझती थी और उसे हृदय से लगाये रहना चाहती थी। अमरकांत को वह घर के काम-काज की ओर खींचने का प्रयास करती थी। कभी समझाती थी, कभी रूठनी थी, कभी बिगड़ती थी। "सुखदा दायित्व-रहित नहीं है। उसमें सेवा का बीज है। 

समरकांत की अस्वस्थत की सूचना पाकर वह उनकी सेवा-सुश्रुषा करती है। प्रतिदिन अपने घर का कार्य करने के बाद वह उन्हें भोजन बनाकर खिलती है और उनका हर प्रकार का ध्यान रखती है। वह प्रो० शान्ति कुमार के सम्मुख स्पष्टिकरण करते हुए कहती है-"वह मुझे विलासनी समझते थे, पर मैं कभी विलास की लौंडी नहीं रही। हाँ दादा जी को कष्ट नहीं देना चाहती थी। यही बुराई मुझमें थी। "सिखदा अमरकांत को यदि घर-गृहस्थी के दायरे में बन्द करना चाहती है तो इसलिए कि घर की तबाही को रोक जा सके। यद्यपि अमर पिता को छोड़कर चला जाता है पर वह कभी भी समरकांत की आज्ञा का युल्घंघन नहीं करता।सुखदा चतुर स्त्री है। वह अपने चातुर्यपूर्ण व्यवहार और वाणी के द्वारा समरकांत को परास्त कर देती है। 

अमर की अनेक दलीलें उसके सम्मुख तर्कहीन हो जाता है और कई स्थलों पर वह शांतिपूर्वक उसकी बात मानने के लिए मजबूर हो जाता है। उसने अमर को तर्कपूर्ण ढंग से समझदार दुकान पर बैठाया, चिटठी-पुत्री का कार्य करना छुड़ाया। अपने चातुर्य के कारण ही वह उन्मुख विचारों से अमर को कुछ समय तक अपने पक्ष में कह लेती है। सुखदा स्वाभिमानी है। वह अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए हर एक प्रकार के कष्ट झेलने को तैयार रहती है। 

समरकांत जब अमर को गृहस्थी सहित घर से अलग हो जाने का आदेश देते हैं, तो सुखदा क्षण भर भी उस घर में टिकना नहीं नहीं चाहती। रुकने की तो बात ही क्या, उस घर का पानी पीना भी हराम समझती है। यहाँ तक कि रेणुका देवी का निमंत्रण वह यह कहकर टाल देती है कि जब वे अपनी कमाई में अपना निर्वाह न करने लगेंगे, तब तक उनके यहाँ मेहमान की तरह ही आयेंगे-जायेंगे। उसका यह कथन स्वाभिमान एवं स्वावलम्बन की भावना से पूर्ण है।अमर के घर छोड़कर चले जाने को वह विश्वासघात मानती है और इसलिए उसका मन अमर के प्रति उपेक्षा से भर जाता है। 

दूसरे की दया पर उसने जीना नहीं सिखा। वह कहती-"यदि वह मुझसे दूर भागना चाहते हैं, तो मैं उनको बाँध कर नहीं रखना चाहती" उसने झुकने नहीं सीखा। प्रारम्भ से उसमें शासन करने की प्रवृत्ति है। पिता से अलग होने पर वह अमर की इच्छा के विरुद्ध भी बालिका विधालय में 50 रु० पर नौकरी कर लेती है। पुरुष का विश्वासघात उसके मन क्षोम उत्पन्न करता है और इसी कारण सकीना के प्रति उसकी सहानुभूति रहती है। वह सकीना को अपने से अधिक दुःखी समझती है। सकीना उसके लिए महत्व की पात्र बन जाती है क्योंकि उसी से त्याग, प्रेम और सेवा का पाठ सिखाती है। अपनी भूल का आभास उसे होता है और वह उसी पथ को ग्रहण करती है, जो पथ अमर ने ग्रहण किया। 

मुंशी प्रेमचंद का कर्मभूमि उपन्यास हिंदी नॉवेल ऑफ प्रेमचंद Karmabhoomi Hindi Novel by Munshi Premchand

सफीना का चरित्र चित्रण:-
सफीना उपन्यासकार प्रेमचंद लिखित 'कर्मभूमि' उपन्यास की एक महत्वपूर्ण नारी पात्र है। वह बुढ़िया पठानिन की पोती और एकांत प्रेम की पुजारिन है। उसका चरित्र इस उपन्यास में प्रेम की आदर्श प्रतिमा और कष्टसहिष्णु के रूप में चित्रण हुआ है। अपने पति अमर को आकृष्ट होते देखकर सफीना संकोच से भर जाती है इसी प्रकार जब उसकी दादी की चर्चा करती है तो वह लजाती चूल्हे के पास जा बैठती है। सफीना की कष्ट साहिष्णुता अपनी दादी के साथ गरीबों में जीवन जीते हुए या फिर जेल में कष्टों के झेलते हुए देखकर सझती जा सकती है। सकीना प्रेम की सच्ची पुजारी है जिसे प्रेम की मर्यादा की गहरी समझ है। वह अपने प्रेमी अमरकांत का प्रेम पाकर स्वंय को धन्य संझती है। किन्तु उसका प्रेम अमरकांत की ग्रहस्थी को तबाह करने के बजाए अनुराग में परिणित होता है। अंत उसका विवाह सलीम से होता है। 

मुन्नी का चरित्र चित्रण:-
मुन्नी उपन्यासकार प्रेमचंद कृत 'कर्मभूमि' उपन्यास की एक महत्वपूर्ण नारी पात्र है। वह इस उपन्यास में प्रथमत: एक विद्रोहिणी ततपश्चात् स्वयं को पवित्र समझदार अभिशप्त जीवन जीती दिखायी देती है। अमरकांत एक दिन अपनी मित्र-मंडली के साथ टहलते हुए अरहर के खेत से आता हुआ उसका चित्कार सुनता है। दूसरे दिन वह अपनी दुकान पर दो गोरों की हत्या कर देती है और स्वयं पुलिस के हवाले हो जाती है। मुकदमा चलता है अदालत का फैसला उसके पक्ष में होता है किन्तु स्वयं को अपवित्र समझने के कारण जुलूस में भाग नहीं लेती है। अमरकांत पुन: गाँव में एक पनघट उसे पर देखता है। उसका पति किसी अन्य के साथ उसके प्रेम के बारे में सुनकर अपनी दे देता है। 

नैना का चरित्र चित्रण:-
नैना उपन्यासकार प्रेमचंद कृत 'कर्मभूमि' उपन्यास की एक महत्वपूर्ण नारी पात्र है।वह समरकांत की पुत्री, अमरकांत की छोटी बहन और धनिराम के पुत्र मनिराम की पत्नी है। उसका चरित्र इस उपन्यास में भ्रातृ-भक्त, व्यथिता, सेवापराण और सबसे बढ़कर अमर बलिदान के रूप चित्रण हुआ है। नैना की भ्रातृ-भक्त के पीछे कारण अमर के विचारों से उसके विचारों का मिलना है। चूँकि उस अपने जीवन में अपने क्रूर पति से कभी प्रेम नहीं मिला इसलिए व्यथा से उसका हृदय भरा रहता है जिसके हाथों वह क्रांतिकारिणी के रूप में मरकर वह अमर बलिदानी बन जाती है। संमग्रत: उसका चरित्र भारतीय पीड़िता नारी के रूप में चित्रित हुआ है। 

डॉ० शांति कुमार का चरित्र चित्रण:-
डॉ० शांति कुमार उपन्यासकार प्रेमचंद कृत 'कर्मभूमि' उपन्यास का एक महत्वपूर्ण पुरुष पात्र है। उसका चरित्र इस उपन्यास में एक सच्चे समाज-सुधारक के रूप में चित्रित हुआ है। उसके चरित्र में सेवा-भावना, शिक्षा-अनुराग स्पष्टवादिता, सज्जनता, स्यवादिता, त्याग-भावना आदि सभी व्यावहारिक गुण विधमान हैं। डॉ० शांति कुमार ऑक्सफोर्ड से डाक्टरी पढ़कर लौट भारतीय हैं। वे देखने में अंग्रेज जैसा भले ही दिखाया दे पर स्वतंत्रता-प्रेम उनके अंतस में भरा है। वे गरीबों और अनाथों को शिक्षा देने के लिए 'सेवाश्रम' खोलते हैं, गाँव में मंदिर-प्रवेश के लिए अछूतों का नेतृत्व करते हैं और दृढ़ रहते हैं। वे म्युनिसिपैलिटी के विरुद्ध भूमि सम्बन्धी आंदोलन के दौरान स्वेच्छा से बंदी होते हैं। समग्रत: शांति कुमार का चरित्र यश पाने की दुर्बलता से भरा दिखायी देता है। 

बुढ़िया पठानिन का चरित्र चित्रण:-
बुढ़िया पठानिन उपन्यासकार प्रेमचंद कृत 'कर्मभूमि' उपन्यास की एक महत्वपूर्ण नारी पात्र है। उसका पति रईस समरकांत के यहाँ चपरासी था जिसके मरे बीस साल हो चुके हैं आज तक समरकांत से उसे मासिक वृत्ति प्राप्त होती है।बुढ़िया को इस बात से काफी चोट पहुँचती है कि मालिक ने उसे अपने पोते के जन्मोतस्व में आमंत्रित नहीं किया है। इससे मिली झेंप मिटाने के लिए अमरकांत उसके यहाँ जाता है जहाँ उसे उसकी पोती सकीना दिखायी देती है जिसके प्रति वह प्रेम-भावना से भर जाता है।बुढ़िया पठानिन को जब यह मालूम होता है कि अमर सकीना से प्रेम करता है तब यह शिकायत लेकर उनके यहाँ चलती है। 

सलीम का चरित्र चित्रण:-
सलीम उपन्यासकार प्रेमचंद कृत 'कर्मभूमि' उपन्यास का एक महत्वपूर्ण पुरुष पात्र है। वह अमरकांत का मित्र और अफसर बनकर आया है। वह मित्रता का स्मरण करके भी अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहता है तभी तो वह अमरकांत को गिरफ्तार करने के लिए बढ़ता है। वह एक स्थल पर थानेदार से कहता भी है-"अगर मेरा लड़का भी कानून के खिलाफ काम करे, तो मुझे उसकी तंबीद करनी पड़ेगी।" सलीम को मानवता अपनी नौकरी से भी कहीं अधिक प्रिय है तभी तो कृषकों की दशा से दयावान होकर नौकरी छोड़ देता है और कृषक आंदोलन का नेत्रत्व करता है। 

आशाराम का चरित्र चित्रण:-
आशाराम गिरी उपन्यासकार प्रेमचंद कृत 'कर्मभूमि' उपन्यास का एक महत्वपूर्ण पुरुष पात्र है।वह गाँव का एक जमींदार और ठाकुरहारे के महंत है। इस उपन्यास में उनका चरित्र गरीबों के शोषक के रूप में चित्रत हुआ है।आशाराम गिरि ठाकुरहारे के महंत होने के कारण स्वयं भगवान की मूर्ति के आगे आरती करते हैं और मोहन भोग लगाते हैं। वे पूजा-पाठ के बाद लोगों को स्वयं से मिलने का समय देते हैं वे अपने असामियों से बराबर बेगार करवाते हैं भले ही वे भूखें पेट क्यों न हों। समग्रत: उनका चरित्र एक शोषक के रूप में चित्रित हुआ है। 

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