नमक का दरोगा: मुंशी प्रेमचंद की कहानी Hindi Story Namak ka Daroga Book by premchand
नामक का 'दरोगा' शीर्षक कहानी का सारांश:-
मुंशी बंशीधर अपने पिता की अनुभवपूर्ण नसीहत सुनकर रोजगार की खोज में निकले। उन्हें उस नमक विभाग में दरोगा के पद पर नौकरी हुई जो ऊपरी आय के लिए कल्पवृक्ष से कम न था। किन्तु पिता की नसीहत के विपरीत वे अपनी ईमानदारी और कर्मठता के कारण कठिनाइयों में पड़ जाते हैं, जाड़े की रात के गहन सन्नाटे में बैलगाड़ी की गड़गड़ाहट सुनकर गोलमाल की आशंका से वर्दी पहन और तमंचा ले वहाँ पहुँच जाते हैं। आगे वाले गाड़ीवान से पूछने पर उन्हें यह पता चलता है कि गाड़ियाँ दारागंज के प्रतिष्ठित जमींदार पंडित आलोपीदीन की है। कानपुर जाने वाली उन गाड़ियों में नमक के ढेले की बात सुनते ही बंशीधर की भृकुटी तन जाती है। पंडित आलोपीदीन की मधुर और विनयपूर्ण बातें श्री बंशीधर को विचलित नहीं कर पाती है। तब भी पंडित आलोपीदीन को यह भरोसा था कि लक्ष्मी के मोहिनी मंत्र के आगे बंशीधर की नैतिकता और ईमानदारी समाप्त हो जायेगी। पंडित आलोपीदीन ने हँसकर कहा,हम सरकारी हुक्म को नहीं जानते और न सरकार को। हमारे सरकार तो आप ही हैं। हमारा और आपका तो घर का मामला है। हम कभी आपसे बाहर हो सकते हैं? आपने व्यर्थ का कष्ट उठाया। यह हो नहीं सकता कि इधर से जाए और इस घाट के देवता को भेंट न चढ़ावें। मैं तो आपकी सेवा में स्वयं ही आ रहा था। बंशीधर पर ऐस्वर्य की मोहिनी वंशी का कुछ प्रभाव न पड़ा। ईमानदारी की नई उमंग थी। कड़ककर बोलें हम उन नमकहरामों में नहीं हैं जो कौड़ियों पर अपना ईमान बेचते फिरते हैं। पर मुंशी बंशीधर पंडित आलोपीदीन की बातों से अप्रभावित होकर जमादार बदलू सिंह को आलोपीदीन को हिरासत में लेने का आदेश देते हैं। दूसरे दिन पंडित आलोपीदीन हथकड़ियाँ अदालत में लाये जाते हैं। उनकी रक्षा के लिए वकील की एक बड़ी सेना दिखायी देती है। न्याय के लिए होंने वाले सत्य और असत्य के संघर्ष में सत्य बिल्कुल अकेला और असहाय पड़ता हुआ दिखता है। धनबल से प्रभावित न्याय व्यवस्था बंशीधर के संदर्भ में यह टिप्पणी देती है कि, उद्दण्डता और अविचार के कारण एक भलेमानुस को नष्ट झेलना पड़ा।,...भविष्य में उसे होशियार रहना चाहिए। मुंशी बंशीधर का मन उन सभी लोगों के प्रति घृणा से भर जाता है जो न्याय और विध्दता का ढोंग करते हैं। धन के प्रति तिरस्कार और सत्य के प्रति अटुट निष्ठा की कीमत उन्हें अपनी नौकरी देकर चुकानी पड़ी हैं। नौकरी से मुक्त होने के बाद वे अपने पिता की क्रोधाग्नि के शिकार होते हैं। कथांत में नहीं चाहते हुए भी अपने सम्मुख नतमस्त खड़े पंडित आलोपीदीन की प्रार्थना के अनुरूप वे मैनेजारी के कागज पर दस्तखत कर आलोपीदीन के मैनेजर हो जाते हैं। ऐसे थे मुंशी बंशीधर जिन्होंने स्वयं को धन का गुलाम नहीं बनने दिया। धर्म के प्रति उनका समर्पण ही एक दिन पं० आलोपीदीन को उनसे क्षमा याचना करने को विवश करता है। अंततः असत् पर सत् की ही विजय हुई।
वंशीधर मुंशी प्रेमचंद का चरित्र चित्रण:-
वंशीधर मुंशी प्रेमचंद विरचित 'नमक का दरोगा' शीर्षक कहानी का एक महत्वपूर्ण पुरुष पात्र होने के साथ कथानायक है। उसका चरित्र सम्पूर्ण कहानी में व्यापकता को प्राप्त होता है। उसके चरित्र में कर्तव्यपरायणता, त्यागप्रियता, न्यायप्रियता, देश के प्रति सेवा-भावना, ईमानदार आदि सद्गुणों की विद्यमानता के साथ ही वह निलोभ और निस्वार्थ है। उनका चरित्र आदर्श बनकर उपस्थित होता है।
आलोपीदीन का चरित्र चित्रण:-
आलोपीदीन मुंशी प्रेमचंद विरचित 'नमक का दरोगा शीर्षक कहानी का एक महत्वपूर्ण पुरुष पात्र है जिसे लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास है जो धन-बल से प्रभावित न्याय-व्यवस्था से अपने पक्ष में फैसले करवाने में पूर्णतया सफल होता है। यह है पं० आलोपीदीन का चरित्र जिसमें अवसरवादिता, स्वार्थपरता आदि चरित्रिक दुर्बलताओं की विद्यमान के साथ ही वह खुशमदी है। पं० आलोपीदीन दारागंज के एक प्रतिष्ठित जमींदार हैं। उनका नमक का पूर्व का जमा-जमाया हुआ अच्छा खासा धंधा है इस धंधों में उन्हें अच्छा खासा धन हासिल हुआ है। वे अपने धन बल पर पूरा भरोसा करते थे। अबतक कोई-ऐसा अधिकारी नहीं आया था नमक विभाग में जिससे उनका धंधा कभी बाधित हुआ। पहली बार कानपुर जाने वाली नमक के ढेलों से भरी और उन्हें हथकड़ियाँ पहननी पड़ती है। फिर भी लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वाश रखने वाले पं० आलोपीदीन चिंतित नहीं होते हैं। आगे वही होता है जो वे चाहते हैं। कथांत में मैनेजर का प्रस्ताव लेकर मुक्त हुए मुंशी वंशीधर के सम्मुख उपस्थित होकर पं० आलोपीदीन उनकी खुशामद करने से भी बाज नहीं आते है। यहाँ उनके चरित्र की अवसरवादित और स्वार्थपरता ही प्रकट होती है। इस प्रकार संपूर्ण कहानी में पं० आलोपीदीन का चरित्र असत् पक्ष प्रतिनिधित्व करता है।
वंशीधर का चरित्र चित्रण:-
वंशीधर कहानी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुरुष पात्र और कथानायक हैं। वे नमक विभाग के दरोगा पद पर कार्यत रहते हुए अपनी ईमानदारी की रक्षा अपनी नौकरी गवाकर करते हैं। उनका चरित्र इस कहानी में एक आदर्श दरोगा के रूप में चित्रित हुआ है। वंशीधर एक अत्यंत ही साधारण परिवार से आते हैं। घर की आर्थिक स्थिति अत्यंत ही दयनीय है। घर में उनकी बहनें अविवाहित है जिनका विवाह करने के लिए पिता के पास पैसें नहीं हैं और वे अब वृध्द भी हो चुके हैं। वे ऋण-भार से दबे हैं। अपनी पढ़ाई वंशीधर किसी तरह पूरी कर नमक विभाग में दरोगा के पद पर नियुक्त होते हैं। एक ईमानदार दरोगा होने का परिचय वंशीधर नमक की कालाबाजारी करने वाले पं० आलोपीदीन को गिरफ्तार करके देते हैं। अदालत का निर्णय उनके विरुद्ध होता है और दरोगा की नौकरी छुट जाती है, अंत में पं० आलोपीदीन उनके आगे मैनेजरी का पद ग्रहण करने का आग्रह करते हैं। पहले वे स्वयं को आयोग्य बताकर पद-ग्रहण करने से इंकार करते हैं पर बाद में स्वीकार कर लेते हैं।
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