मुंशी प्रेमचंद का गोदान उपन्यास हिंदी नॉवेल ऑफ प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद का गोदान उपन्यास हिंदी नॉवेल ऑफ प्रेमचंद Hindi Novel by Munshi Premchand




'गोदान' मुंशी प्रेमचंद का एक सर्वोत्तम कृति है। जिसमे झुनिया नामक एक विधुवा का चरित्र-चित्रण किया गया है। 

झुनिया भोली की विधवा बेटी है। गोबर जब भोला के घर पर भुसा का खोंचा लेकर पहुँचती है, वहीं झुनीय से उसकी मुलाकात होती है। पहली मुलाकात में गोबर झुनिया दोनों हँसी-मजाक करते हैं तो सहसा झुनिया को अपने वैधव्य की याद आ जाती है और वह सजग हो जाती है। झुनिया एक गृहस्थ की बालिका थी। लोग उससे और विधवा होना पर भी दही बेचने उसे बाहर जाना पड़ता है। इसी समय तरह-तरह के लोगों के साथ उसका काम पड़ता था। वे उससे परिहास करते थे, लेकिन वह जानती थी कि यह आनन्द मंगनी की चीज है। उसमें तिकाव नहीं है, समपर्ण नहीं हैं। अधिकार नहीं है। वह ऐसा प्रेम चाहती है जिसके लिए वह जिए और मेरे, जिस पर वह अपने आपको समर्पित कर दे। वह गोबर को इस योग्य मानती है इसलिए उससे कहती है कि तुम मुझे मोल ले सकते हो।झुनिया बहुत सरल है। चाहती है कि मैं जिसकी हो जाऊँगी, उसकी जन्मभर के लिए हो जाऊँगी; सुख में, दुःख में, संपत में, विपत में; उसके साथ रहूँगी। वह गोबर से कहती है-"न रुपयों की भूखी हूँ, न गहने-कपड़े की।बस भले आदमी का संग चाहती हूँ, जो मुझे अपना समझे और जिसे मैं अपना समझूँ" वह गोबर को बताती है कि कैसे लोग उसे भोग करने को तरसते हैं; कैसे एक पंडित ने पचास रुपये देकर उसका भोग करना चाहता था। उसने सभी को सबक सिखाया। उसे दूसरे मर्दों के साथ रूपए-गहनों के लिए किसी औरत का घूमना फिरना बिलकुल पसंद नहीं हैं।झुनिया का विचार है कि मर्द ही औरतों को बिगाड़ते हैं। जब मर्द इधर-उधर ताक-झांक करेगा तो औरत भी आँख लड़ाएगी। जब झुनिया पाँच माह की गर्भवती हो जाती है तो गोबर उसे अपने घर पर रात को छोड़कर शहर चल जाता है। एक विधवा को बहू बनाकर रखने से होरी का गाँव में हुक्का-पानी बंद हो जाता है। उसे पंचायत का जुर्माना भरना है। झुनिया होरी और धनिया के आश्रय में रहती है।भोला जब होरी को धमकाता है कि झुनिया को घर से निकाल दो, नहीं तो मैं तु।तुम्हारे बैल खोलकर ले जाऊँगी, तब होरी की रक्षा करने झुनिया गोद में बच्चे को लिए घर से निकाल आती है और बोलती है-"काका, लो, मैं इस घर से निकल जाती हूँ और जैसे तुम्हारी मनोकामना है, उसी तरह भीख मांगकर अपना और बच्चे का पेट पाऊँगी, और जब भीख भी न मिलेगी तो कहीं डूब मारुँगी" तब धनिया उसे बहू कहकर घर चलने को कहती है, तब कृतज्ञता से झुनिया रोती हुई बोलती है-"अम्मा! जब अपना बाप होकर मुझे धिक्कार रहा है, तो डूब ही मरने दो। मुझे अभागिन के कारण तो तुम्हें दुःख ही मिला। जब से आई तुम्हारा घर मिट्टी में मिल गया। तुमने इतने दिन मुझे जिस प्रेम से रखा, माँ भी न रखती।" लेकिन दूसरी परिस्थिति में वह कृतज्ञता भूलकर स्वार्थी बन जाती है। गोबर गाँव आ जाता है और झुनिया को अपने साथ ले जाना चाहता है। धनिया के आरोप लगाने पर झुनिया झल्लाकर कहती है-"अम्मा, जुलाहे का गुस्सा दाढ़ी पर न उतारो। कोई बच्चा नहीं है कि उन्हें फोड़ लूँगी। अपना भला-बुरा सब समझते हैं। आदमी इसलिए नहीं जन्म लेता है कि सारी उम्र तपस्या करता रहे और एक दिन खाली हाथ मर जाए। सब जिंदगी का कुछ जिंदगी का कुछ सुख चाहते हैं, सबकी लालसा होती कि हाथ में चार पैसा हों। लेकिन घर छोड़ते समय झुनिया सैजन्य नहीं भूलती। वह सास के पास जाकर उसके चरणों को आंचल से छूती है। शहर जाकर झुनिया कठिन परिस्थति का सामना करती है। गोबर का व्यवहार उसे खलता है। बच्चे के मरने पर झुनिया का मातृहृदय विलाप कर उठता है। गोबर को शराब का चस्का लग जाता है। वह कोई बहाना बनाकर झुनिया को गालियाँ देता है, मारता है, और घर से निकालने लगता है तो झुनिया को इस अपमान के लिए पश्चाताप होता है कि वह क्यों रखैली बनी? वह बब्याहता होती तों बिरादरी उसके प्रति न्याय करती। झुनिया के मन में गोबर की धलमनसाहत के प्रति शंका उत्पन्न हो जाती है। कपटी के साथ घर से निकल भागने को वह अपनी भूल मानती है। अब वह गोबर को अपना दुश्मन समझने लगती है। उसे लगता है गोबर यदि इसी तरह मारता-पिटता रहेगा तब उसका जीवन नरक हो जाएगा। गोबर के मारते समय वह गुस्सा हो उसका गला छुरे से रेत डालने का विचार करती है। झुनिया को लगता है कि गोबर पक्का मतलबी है। मुझे केवल भोग की वस्तु समझता है। अब दोनों में नहीं पटती थी। पर हड़ताल में घायल होकर जब गोबर को उसके घर पर पहुँचा दिया जाता है, झुनिया का हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह सारे अनर्थों की जड़ खुद को मानती है। वह जी-जान से गोबर की सेवा में लग जाती है। घर चलाने के लिए वह घास छिलने का काम करती है। बाद में वह गोबर और बेटे मंगल के साथ मालती की दी हुई कोठरी में रहने लगती है। मंगल को चेचक निकल आती है तो मालती उसकी खूब सेवा करती है। रूपा की शादी के समय वह फिर ससुराल में जाती है। उसका मन और शहर जाने को नहीं चाहता। कुछ दिन सास-ससुर के साथ रहना वह चाहती है। और वह रुक भी जाती है। फिर उससे जीवन में स्थिरता आ जाती है।  


होरी का चरित्र-चित्रण:- 
गोदान का होरी हिंदी-साहित्य का एक अमर पात्र है। प्रेमचंद ने इस साधारण किसान को अपनी कला से ऐसा जीवंत पात्र बना दिया है कि वह पाठकों के स्मृति-पटल पर अपनी छाप छोड़ जाता है। वह गहरे सांवले रंग का, पिचके हुए कपोलों और झुरियों से भरे चेहरे वाला, असमय ही वृध्द हो जाने वाला उत्तर प्रदेश के अवध प्रांत के एक गाँव बेलारी का सामान्य किसान है, जिसे पैतृक सम्पति के रूप में केवल पांच बीघा जमीन मिली है। आर्थिक स्थित संस्कारों, अपनी सोच, मांसिकता, मनोवृत्तयों में वह भारतीय किसान का प्रतिरूप है।वह परम्परागत जीवन-मूल्यों में अवस्था रखता है। उसे ईश्वर तथा ईश्वरीय न्याय में पूरा विश्वास है। वह मानता है कि बड़े-बड़े, अमीर-गरीब ईश्वर ही बनाकर भेजता है तथा यदि अमीर गुलछर्रे उड़ाता हैं और गरीब लोग दो जून भरपेट भोजन भी नहीं पाते, तो यह उनके पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम है। अपनी दुरावस्था के लिए न वह समाज को दोष देता है, न व्यक्तियों को और न ईश्वर को। वह अपने कर्मों का फल, दुर्भाग्य मानता है। अपनी इसी मानसिकता के कारण वह विद्रोही नहीं बन पाता, चुपचाप जिवनभर कष्ट सहता है और अपने से बड़ों-जमींदार, दातादीन आदि-की खुशामद करने तथा उनका कृपापात्र बनने में ही अपना भला समझता रहता है। 

धनिया का चरित्र-चित्रण:-
धनिया गतिशील पात्र है। जीवन के कटु अनुभव, संघर्ष, सामाजिक अन्याय तथा पारिवारिक झंझट उसे सामान्य से विशिष्ट बना देते हैं। वह सद्गृहिणी, परिवार के सभी सदस्यों के प्रति स्नेह की वर्षा करने वाली,पतिव्रता एवं सहिष्णु नारी से उग्र स्वभाव वाली दिद्रोहिणी नारी, रणचंडी बन जाती है। विहाह के बाद ससुराल आने पर वह अपने देवरों-हीरा तथा शोभा पर संतानवत् स्नेह लुटाती है, अपना तन-पेट काटकर उनका बहुओं की उतरन पहन कर गृहस्थी की डावांडोल नौका को खेती है, पर जब देवरानियों के बहकाने-भड़काने पर देवर अलगोझा कर डालते हैं और वे देवर जिन्हें उसने पुत्रवत् पाला-पोसा था, उसके साथ अपमानजनक व्यवहार करते हैं, आकरण विद्वेष करते हैं, तो उसके स्वभाव तथा चरित्र में भी परिवर्तन आने लगता है। पति की भीरुता, दब्बूपन, धर्म और बिरादरी का भय जहाँ एक ओर घर का सुख-चैन छीन लेता है, वहां उसके कारण धनिया भी उग्र होती जाती है। परिवार में पत्नी का जीवन पति के साथ इस कदर जुड़ा रहता है कि दोनों का जीवन एकरूप हो उठता है। अत: धनिया को भी होरी के साथ-साथ कष्ट सहने पड़ते हैं, संघर्ष करना पड़ता है, विषम परिस्थतियों से जूझते-जूझते अपना सुख-चैन गंवाना पड़ता है। धनिया की विशेषता यह है कि वह पति की तरह दब्बू, धर्मभीरु नहीं है तथा समाज के अन्याय और अत्याचार को ईश्वरीय न्याय या कर्मफल मानकर चुपचाप सहन नहीं करती। जितनी उसकी शक्ति है, सामर्थ्य है, विरोध करती है और इसी विरोध से उसका उग्र, कलहप्रिय, दबंग, साहसी व्यक्तित्व प्रकट होता है। 

गोबर का चरित्र-चित्रण:-
गोबर सोलह वर्ष का अल्हड़, सांवले रंग तथा इकहरे शरीर वाला नवयुवक है। उसकी खेती-बाड़ी के काम में तनिक भी रुचि नहीं है। वह गाँव में तनिक भी रुचि नहीं है। वह गांव में इधर-उधर घूमता रहता है। रिश्ते में भाभी लगने वाली स्त्रियों से हंसी-मजाक भी कर लेता है। वह स्वभाव से सरल तथा भोला है, झुनिया के प्रति आकर्षण तो अनुभव करता है, उसको देखते ही उसकी जवानी अंगड़ाई लेने लगती है, पर आरंभ में झुनिया की अर्थ भरी बातों का मतलब नहीं समझ पाता। जब झुनिया कहती है, "मैं ऐसे भिक्षुओं को मुँह नहीं लगाती। ऐसे तो गली-गली मिलते हैं। फिर भिक्षुक देता क्या है, असिस! से तो किसी का पेट नहीं भरता" तो गोबर उसका आशय नहीं समझ पाता और झुनीया सदय भाव से उसकी ओर देखकर सोचती है कि कितना भोला है, कुछ समझता ही नहीं। पर यही भोला, नासमझ किशोर धीरे-धीरे जीवन के कटु अनुभवों के कारण, जीवन की पाठशाला से बहुत-कुछ सिख कर आगे चलकर एक उद्दण्ड, विद्रहो, अक्खड़ तथा अहंकारी युवक बन जाता है। गाँव में गाँव के नवयुवक तथा शहर में मिल के मजदूर उसे अपना नेता मानकर उसके नेतृत्व में विद्रहो करते हैं। यौवन की देहली पर पैर रखने वाला गोबर झुनिया से प्रोत्साहन पाकर प्रेम की कंकरीली राह पर चल पड़ता है। विवाह से पूर्व ही दोनों का सारीरिक संबंध हो जाता है, झुनिया गर्भवती हो जाती है। यह पता लगते ही वह स्तब्ध हो जाता है पर धूर्त, विश्वासघाती छैल बने युवकों की तरह धोखा नहीं देता। वह भावुक, पर सच्चा प्रेमी है-जाति, धर्म, समाज, माता, पिता से भयभीत तो है, पर अंतत: उसे अपने घर ले जाने का निर्णय कर लेता है। उसमें इतना साहस तो नहीं है कि खुलकर माँ-बाप से कहे कि झुनिया को वह ब्याहता के रूप में लाया है वे उसे स्वीकार करें, पर उसे घर के पिछवाड़े छोड़ जाता है। उसे भरोसा है कि माता-पिता उसे अपना लेंगे। उसके गाँव का मातादीन इस दृष्टि से कायर, विश्वघाती तथा ढोंगी है। इस विरोध के कारण गोबर हमें और भी अधिक प्रभावित करता है।
 

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