दुर्गा पूजा पर निबंध Durga Puja Essay in Hindi

दुर्गा पूजा पर निबंध Durga Puja Essay in Hindi

दुर्गा पूजा पर निबंध Durga Puja Essay in Hindi

आयोजन:-
दुर्गा पूजा पूरे भारत वर्ष में हिंदूओं के महत्वपूर्ण त्योहार में से एक हैं।दुर्गा पूजा को दुर्गोंतस्व या शरदोतस्व के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार प्रति वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है।इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक माना गया है।भारत में दुर्गा पूजा नारियों के मान-सम्मान और देवी के शक्ति को दर्शाता हैं। इस त्योहार को लोग पूरे भारत में हर्षोल्लास और पूरे उत्साह के साथ मनाते है। विशेष कर दुर्गा पूजा को मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, असम, दिल्ली,पूर्वी बंगाल,ओडिशा, पश्चिम बंगाल में इस त्योहार को बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता हैं।इन दिनों माँ दुर्गा के भव्या पंडाल सुसज्जित किया जाता है।लोग नए-नए कपड़े पहनते है बाजारों से ढेर सारी खरीदारी करते है और अपने सपरिवार के साथ मिलकर खुशियां मनाते हैं।इस पूजा में नृत्य का आयोजन भी होता है जैसे की गरबा, डांडिया इस नृत्य में स्त्री तथा पुरुष दोनों ही भाग लेते हैं। गरबा नृत्य गुजारत के लोग करते है,जो की इस नृत्य कों स्त्री तथा पुरुष हाथों से बिना किसी सहायता के इस नृत्य को करते हैं। जितने वाले को पुरष्कार भी दिया जाता है। 

माँ दुर्गा के नौ स्वरूप:-
इस नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। प्रथम दिन मां शैलपुत्री, द्वितीय मां ब्रह्मचारिणी, चतुर्थ मां चंद्रघंटा, पंचम स्कंद माता, षष्टम मां कात्यायनी, सप्तम मां कालरात्रि, अष्टम मां महागौरी,नवम मां सिद्धिदात्री इन देवीओं को प्रथम दिन से लेकर अंतिम दिन का  भिन्न-भिन्न प्रकार से पूजा जाता हैं। 

दशहरा/विजयादशमी क्यों मनाया जाता है:-
प्राचीन काल में जब असुरों का स्वामी महिषासुर भगवान इंद्र का सिंहासन और स्वर्णलोक पर अधिकार कर राज करने के लिए सभी देवताओं के साथ भयंकर युध्दा कर रहा था युद्ध के पश्चात् उसकी यह मनोवृत्ति पूर्ण हो जाती है, तब महिषासुर भगवान इंद्र,चंद्र ,सूर्य,वायु और सभी देवताओं का अधिकार छीन कर उन्हें बंधक बना लेता है और उन पर अत्याचार करता है।अत्याचार के कारन सभी देवता पृथ्वी पर विचरन करने लगते है क्योंकि स्वर्ग में उनका की स्थान नहीं रहा।यह देख ब्रह्मा विष्णु महेश बहुत क्रोधित होते है और क्रोध के कारण इन तीनो देवताओं के मुख से ऊर्जा उत्पन्न होती है और देवताओं के शरीर से निकले ऊर्जा मे जा कर मिल जाती है और दसों दिशा में व्यक्त होने लगती है तब देवी चंद्रघण्टा का स्वरूप उत्पन्न होता है और सभी देवता इनके अष्ट भुजा को अस्त्र-सस्त्र से सुशोभित करते है।तब माँ दुर्गा का यह तीसरा स्वरूप देवी चंद्रघण्टा महिषासुर से नौ दिन तक युध्द करती है।युध्द के पश्चात महिषासुर का वध कर विजय प्राप्त करती है। वही दूसरी और भगवान श्री राम रावण का वध करने से पूर्व देवी दुर्गा की पूजा करते है। भगवान श्री राम रावण से युध्द कर के रावण का वध करते है।इस तरह एक दिन में दो असुरों का अंत होता है और असत्य पर सत्य की विजय होती है।इसलिए इस दशमी को 'विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। 

पश्चिम बंगाल का दुर्गा पूजा:-
दुर्गा पूजा हम हिंदूओं का एक महत्वपूर्ण त्योहा है।विशेष रूप से इस त्योहा को पश्चिम बंगाल मे बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल के लोग इस पूजा की तैयारी पहले से ही शुरू कर देते है।जगह-जगह पर भव्या पंडालों का निर्माण किया जाने लगता है।मंदिरों मे पहले से ही देवी की प्रतिमा बनाई जाने लगती है।लोग बाजारों से खरीदारी करते है नए-नए कपड़े लेते हैं।पश्चिम बंगाल इस पूजा के लिए लोग नृत्य का आयोजन भी करते है तथा जितने वालो को पुरस्कार भी दिया जाता है इस इस नृत्य में स्त्री-पुरुष बच्चे,घर के बड़े, बुजुर्ग सभी भाग लेते है।दुर्गा पूजा के प्रथम दिन से लेकर कर देवी के नौ स्वरूपों की पूजा नौ अलग-अलग विधि से की जाती है जिसमे नौ रंगों के पुष्प, नौ प्रकार के भोग, देवी के नौ अति प्रिय रंग के वस्त्र चढ़ाएं जाते है।दसवें दिन सदीसदा महिलाएं सिंदूर से खेलती है जिसे सिंदूर खेला कहते है।इस पूजा को नारी के मान सम्मान का प्रतिक माना गया है। 

दुर्गा विसर्जन:-
पश्चिम बंगाल के लोग माँ दुर्गा के विसर्जन से पूर्व पारंपारिक रूप से देवी के प्रतिमा के समीप ढाक या ढोल के स्वर में  भक्त मंगन होकर अपने हाथ में मिट्टी के बर्तन थामे "धुनुची" नृत्य करते हैं,और विसर्जन से पहले देवी के चरण स्पर्श के अवसर के लिए उत्साहित होते हैं।अंत में शुभ 'मुहूर्त' के आधार पर देवी की प्रतिमा को तालाब या नदियों के जल में विसर्जित किया जाता है। 

माँ दुर्गा की आरती:-

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी। 
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।

जय अम्बे गौरी,…।

मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।।

जय अम्बे गौरी,…।

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। 
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।।

जय अम्बे गौरी,…।

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।।

जय अम्बे गौरी,…।

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।।

जय अम्बे गौरी,…।

शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।।

जय अम्बे गौरी,…।

चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।

जय अम्बे गौरी,…।

ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।

जय अम्बे गौरी,…।

चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू। 
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।।

जय अम्बे गौरी,…।

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता। 
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।।

जय अम्बे गौरी,…।

भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी। 
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।

जय अम्बे गौरी,…।

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। 
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।।

जय अम्बे गौरी,…।

अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै। 
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।।

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।

देवी दुर्गा के स्तुति मंत्र:-

या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थितः। 
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थितः।। 
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण संस्थितः। 
नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमो नमः।। 
ॐ अम्बायै नमः। 

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