History Class 12 chapter 2 राजा, किसान और नगर

History Class 12 chapter 2 राजा, किसान और नगर 

राजा, किसान और नगर

History Class 12 chapter 2 राजा, किसान और नगर 

उत्तर दिजीय (लगभग 100-150 शब्दों में) 

1.आरम्भिक ऐतिहाासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाणों की चर्चा कीजिए। हड़प्पा के नगरों के प्रमाण से ये प्रमाण कितने भिन्न हैं? 
Ans-आरम्भिक ऐतिहाासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाण तथा हड़प्पा के नगरों से भिन्न्ता-आरम्भिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाण के रूप में अभिलेख, ग्रंथ सिक्के तथा चित्र मिलते हैं। इस काल में मिट्टी के उत्तम श्रेणी के बर्तन बनाये जाते थे और इसलिए इसे उत्तरी काले पॉलिश मृदभांड (N.B.P.W) के नाम से जाना जाता हैं। इसके अलावे और बहुत सारे प्रमाण मिलते है जैसा कि नगरों में लोहे के उपकरण, सोने, चांदी के सामान, शीशे व शुध्द पक्की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाने का प्रमाण मिला है तथा नगरों में वस्त्र बनाने का कार्य बढ़ई का कार्य आभूषण बनाने का कार्य होने का प्रमाण मिलता है। 

2.महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षणों का वर्णन किजिए। 
Ans-आरंभिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई. पू. को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है। इस काल को प्राय: आरंभिक राज्यों नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है। इसी काल में बौद्ध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ। बौद्ध और जैन के आरंभिक ग्रन्थों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों का उल्लेख मिलता है।

(ii)उद्यपि महाजनपदों के नाम की सूची इन ग्रंथों में एकसमान नहीं है लेकिन वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार और अवन्ति जैसे नाम प्राय: मिलते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि उक्त महाजनपद सबसे महत्वपूर्ण महाजनपदों में गिने जाते होंगे। 

(iii)अधिकांश महाजनपदों राजा का शासन होता था लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिध्द राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था इस समूह का प्रत्येक वक्ति राजा कालता था। 

(iv)भगवान महावीर और भगवान बुध्द इन्हीं गणों से संबंधित थे। वज्जि संघ की ही भाँति कुछ राज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर राजा गण सामूहिक नियंत्रण रखते थे। यद्यपि स्रोतों के अभाव में इन राज्यों के इतिहास पूरी तरह लिखे नहीं जा सकते लेकिन ऐसे कई राज्य लगभग एक हजा़र साल तक बने रहे। 

(v)प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जिसे प्राय: किले से घेरा जाता था। किलेबंद राजधानी के रख-रखाव और प्रारंभी सेनाओं और नौकरशाही के लिए भारी आर्थिक स्रोत की आवश्यकता होती थी। 

(vi)लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से संस्कृत में ब्राह्मणों ने धर्मशास्त्र नामक ग्रन्थों की रचना शुरू की। इनमें शासक सहित अन्य के लिए नियमों का निर्धारण किया गया और यह अपेक्षा की जाती थी कि शासक क्षत्रिय वर्ण से ही होंगे शासकों का काम किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलना माना जाता था। 
  
3.सामान्य लोगों के जीवन का पुर्निर्मांण इतिहासकार कैसे करते हैं? 
Ans-सामान्य लोगों या नागरिकों के जीवन पुननिर्माण इतिहासकार भिन्न-भिन्न तरीकों से करते है:-

(i)खुदाई के द्वारा:-प्राचीन स्थलों की खुदाई करके वहाँ से मिले अवशेष, अनाज के साक्ष्य और विभिन्न प्रकार की अस्तुओं से सामान्य लोगों या नागरिकों के जीवन का  इतिहासाकर पुननिर्माण करते हैं। 

(ii)साहित्य के द्वारा:-साहित्य कई प्रकार के होते हैं जैसे वैदिक साहित्य चारों वेद, रामायण, महाभारत के साथ-साथ और बहुत सारे धार्मिक पुस्कते आती है। 

(iii)संगम साहित्य:-इसके साथ-साथ संगम साहित्य के द्वारा भी इतिहासकार सामान्य लोगों के जीवन के बारे में वर्णन करते है। उदाहरण के तोर पर तमिल महाकाव्य शिल्पादिकारम में वर्णन है जब वह वन की यात्रा पर थे तो लोग नाचते-गाते हुए पाहाड़ों से उतरे ठीक उसी तरह जैसे पराजित लोग विजय का आदर करते हैं। वे अपने साथ उपहार लाए जिनमें हाथी दाँत, सुगंधित लकड़ी, हिरणों के बाल से बने चँवर, मधु, चंदन, गेरू, सुरमा,हल्दी, इलायची मिर्च आदि अस्तुएं थी। 

(iv)सवधान से:-ईसा पूर्व पहली सहस्रब्दि के दौरान मध्य और दक्षिण भारत में शवों के अंतिम संस्कार के नए तरीके भी सामने आए, जिनमें महापाषाण के नाम से ख्यात पत्थरों के बड़े-बड़े ढाँचे मिले हैं। कई स्थानों पर पाया गया है कि शवों के साथ विभिन्न प्रकार के लोहे से बने उपकरणों और हथियारों को भी दफनाया गया था। 

4.पांड्य सरदार (स्रोत 3) को दी जानेवाली वस्तुओं की तुलना दंनगु गाँव (स्रोत 8) की वस्तुओं से कीजिए। आपको क्या समानताएं और असमानताएं दिखाई देती हैं? 
Ans-समानताएं-यह है कि दोनों जगह में दी गई सामग्रियों में फूल शामिल हैं। दोनों ही जगह दान में फूल दिया गया है। 

असमानताएं-पांड्य सरदारों को दी जाने वाली वस्तुओं दंगुन गाँव की अस्तुओं से अधिक हैं। हाथी दाँत, सुगंधित लकड़ी, हिरणों के बाल से बने चँवर, मधु, चंदन, गेरू, सुरमा, हल्दी, इलायची, मिर्च आदि अस्तुएं थी। वे अपने साथ नारियल, आम, जड़ी-बूटी, फल, प्याज, गन्ना, फूल, सुपारी, केला, बाघों के बच्चे, शेर, हाथी, बंदर, भालू, हिरण, कस्तूरी मृग, लोमड़ी, मोर, जंगली मुर्गे, बोलने वाले तोते आदि भी थे।पांड्य सरदारको को दी जानेवाली वस्तुओं में दैनिक जीवन के उपयोग की अधिक वस्तुएं शामिल थे।दंगुन गाँव में वस्तुओं की संख्या कम है।यहाँ प्रभावती गुप्त ने सम्पूर्ण गाँव की सम्पति और कारों को भी दान में दे दिया है। 

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5.अभिलेखशास्त्रियों की कुछ संस्याओं की सूची बनाइए। 
Ans-(i)कुछ अभिलेख ऐसे है जिनके अक्षरों को हल्के ढंग से खोदा गया है ओर समय के साथ वे अक्षर घिस भी गए है जिसके कारण उन अभिलेखों को पढ़ने में बहुत कठिनिइयों का सामना करना पड़ता है। 

(ii)कुछ अभिलेखों के अक्षर ही लुप्त हो गए है। इसलिए इन अभिलेखों के अक्षर  को अनेक प्रसंगों के माध्यम से जोड़कर पढ़ा जाता है। 

(iii)अभिलेखों के अक्षरों में वर्णित बातों का अर्थ निकालना एक दुष्कर कार्य है, ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ अर्थ किसी विशेष स्थान या समय से संबंधित होते हैं। 

(iv)अभिलेखों की संख्या हजारों में प्राप्त हुए है परंतु उनमें से कुछ ही अभिलेखों के अर्थ निकाले जा सके हैं और शेष सुरक्षित भी नहीं है। 

(v)प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं में लिखे जाते थे। प्राकृत उन भाषाओं को कहा जाता था जो जनसामान्य की भाषाएं होती थी। 

6.मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की  चर्चा कीजिए। अशोक के अभिलेखों में इनमें से कौन-कौन से तत्वों के प्रमाण मिलते हैं? 
Ans-अशोक का शासन 272/ 268-231 ईसा पूर्व मगध के विकास के साथ-साथ मौर्य साम्राज्य राज्य का उदय हुआ।बौध्द ग्रन्थों के अनुसार अशोक सर्वाधिक प्रसिध्द शासकों में से एक था चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य वंश का संस्थापक था।मौर्य वंश का स्थापना 321 ईसा पूर्व में हुआ था। इसका शसान पश्चिममोत्तर में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था। इनके पौत्र अशोक जिन्हें आरंभिक भारत का सर्वप्रसिध्द शासक माना जा सकता है, कलिंग (आधुनिक उड़ीसा) पर विजय प्राप्त की ।एक बहुत बड़ा विशाल साम्राज्य था मौर्य वंश।मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षण इस प्रकार है:-

(i)राजनीतिक केंद्र:-मौर्य साम्राज्य के पांच प्रमुख राजनीतिक केंद्र थे-इसकी राजधानी पाटलिपुत्र और चार प्रांतीय केंद्र-तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि और स्वर्णगिरी।अभिलेखों में इन सबका उल्लेख किया गया हैं। यदि इन अभी अभिलेखों का परिक्षण करें करते है तो पता चलता है कि आधुनिक पाकिस्तान के पश्चिममोत्तर सीमा से लेकर आंध्रप्रदेश, उड़ीसा और उत्तराखंड तक हर स्थान पर एक जैसे संदेश उत्कीर्ण किए गए थे। 

(ii)असमान शासन व्यस्था:-साम्राज्य में शामील क्षेत्र बड़े विविध और भिन्न-भिन्न प्रकार के थे। यहाँ अफगानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र कहाँ उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र। 

(iii)प्रशासनिक केंद्र का चयन:-यह संभव है कि सबसे प्रबल प्रशासनिक नियंत्रण साम्राज्य की राजधानी तथा उसके आसपास के प्रांतीय केंद्र पर रहा हो इन केंद्र का चयन बड़े ध्यान से किया गया। तक्षशिला और उज्जयिनी दोनों बहुत ही लंबी दूरी वाले महत्वपूर्ण व्यापक मार्ग पर स्थित थे जबकि स्वर्ण गिरी अर्थात सोने के पहाड़ कर्नाटक में सोने की खदान के लिए उपयोगी था। 

(iv)मार्ग या परिवहन की व्यवस्था:-साम्राज्य संचालन के लिए भूमि और नदियां दोनों ही मार्गों से आवागमन बना कर रहना बहुत ही जरूरी था। राजधानी से प्रांतों तक जाने में कई या महिनों का समय लग जाता होगा। इसका अर्थ यह है कि यात्रियों के लिए खाने-पीने की चिजों की व्यवस्था के साथ-साथ उनकी सुरक्षा भी करनी पड़ती होगी। 

(v)सैनिक व्यवस्था:-मौर्य साम्राज्य में सैनिक व्यवस्था दो प्रकार के होते थे।पहला तो थल सेना और दूसरा जल सेना। 
 
7.यह बीसवीं शताब्दी के एक सुविख्यात अभिलेखशास्त्री डी. सी. सरकार का वक्तव्य है; भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों का ऐसा कोई पक्ष नहीं है जिसका प्रतिबंध अभिलेखों में नहीं है; चर्चा कीजिए। 
(i)भारतीय अभिलेख विज्ञान में एक उल्लेखनीय प्रगति 1830 के दशक में हुई,जब ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाला। इन लिपियों का उपयोग सबसे आरंभिक अभिलेखों और सिक्कों में किया गया है।प्रिंसेस को पता चला कि अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी, यानी मनोहर मुखाकृति वाले राजा का नाम लिखा है। कुछ अभिलेखों पर राजा का नाम अशोक भी है। अभिलेख इतिहास के लिखित साधन हैं और इतिहास की रचना में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। अशोक ने अभिलेखों का पर्याप्त विस्तार किया। यह अशोक के जीवन के बारे में अशोक के महान कार्यों को करने में, धर्म तथा उपाधियों के बारे में बताते है। यह सब स्रोत 'देवानांप्रिय' तथा 'पियदस्सी' के नाम से अंकित किए गए हैं। 

8.उत्तर-मौर्यकाल के विकसित राजत्व के विचारों की चर्चा कीजिए। 
Ans-उत्तर-मौर्यकाल विकसित राजत्व के विचार-भारत के दक्षिण क्षेत्रों में चोल चेर और पांड्या जैसी सरदारियों का उदय हुआ। सरदार का एक शक्तिशाली ग्रन्थों से जाकर मिलती है। व्यापार आदि से सरदारी को पर्याप्त आमदनी होती थी। इनमें मध्य एवं पश्चिम भारत के शासक सातवाहन और उपमहाद्विपीय के पश्चिमोत्तर और पश्चिम में शासन करनेवाले मध्य के शक शासक शामिल थे। प्राचीन भारतीय राजाओं उच्च स्थिति प्राप्त करने एक साधन विभिन्न देवी-देवताओं के साथ जुड़ना था। इससे अच्छे कुषाण शासक हैं उन्होंने अपने सिक्कों एवं मूर्तियों के माध्यम से राजधर्म प्रस्तुत किये। उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास माट के एक देवस्थान पर कुषाण शासकों की विशालकाय मूर्तियाँ लगाई गई थी। अफगानिस्तान के एक देवस्थान पर भी इसी प्रकार की मूर्तियाँ मिली है। प्रसिध्द कुषाण शासक कनिष्क ने अपने नाम के आगे 'देवपुत्र' जोड़ा था। इस प्रकार राजत्व के विचार में निरन्तर विकास हो रहा था। चोथी शताब्दी ईस्वी में गुप्त साम्राज्य सहित कई बड़े साम्राज्यों के साक्ष्य मिलते हैं। इनमें से कई साम्राज्य सामतों पर निर्भर थे। 

9.वर्णित काल में कृषि के तौर-तरीकों में किस हद तक परिवर्तन हुए? 
Ans-कृषि के तौर-तरीकों में परिवर्तन-उत्तर वैदिक काल में लोहे की खोज हो चुकी थी और सर्वप्रथम इसका प्रयोग हल के फाल और तीरों के फलक में शुरू किया गया। इससे कृषि के तौर- तरीकों में भारी परिवर्तन हुए। छठी शताब्दी ईसा पूर्व से ही गंगा और कावेरी की घाटियों के उर्वर कछारी क्षेत्र में फैल लगा था। जिन क्षेत्रों में भारी वर्षा होती थी वहाँ लोहे के फल वाले हलों के माध्यम से उर्वर भूमि की जुताई की जाने लगी। इसके अलावा गंगा घाटी में धान की रोपाई की वजह से उपज में भारी वृध्दि होने लगी। इससे किसानों को पर्याप्त मेहनत करनी पड़ती थी। यह उन क्षेत्रों में रूपाई की जाती थी जहाँ पानी बहुत मात्रा में होते थे। इसमें पहले धान के बीज अंकुरित करके पानी से भरे खेतों में पौधों की रूपाई की जाती है। चूँकि ज्यादा मात्रा में पौधे बच जाती है अत: इससे धान की उपज बढ़ जाती है। पंजाब और राजस्थान जैसी अर्ध्दशुष्क जमीन वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले का प्रयोग 20 वीं शताब्दी में शुरू हुआ। पूर्वोत्तर और मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले किसानों ने कुदाल का उपयोग किया। वस्तुत: ऐसे इलाकों के लिए यह अधिक उपयोगी था। 

10.एक महीने के अखबार एकत्रित कीजिए। सरकार अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यों के बारे में दिये गये वक्तव्यों को काटकर एकत्रित कीजिए। समीक्षा कीजिए कि इन परियोजनाओं के लिए आवश्यक संसाधनों के बारे में खबरों में क्या लिखा है? संसाधनों को किस प्रकार से एकत्र किया जाता है और परिजनाओं का उद्देश्य क्या है? इन वक्तव्यों को कौन जारी रखता है और उन्हें क्यों और कैसे प्रसारित किया जाता है? इस अध्याय के चर्चित अभिलेखों के साक्ष्यों से इनकी तुलना कीजिए। आप इनमें क्या समानताएं और समानताएं पाते हैं? 
Ans-छात्रों को प्रतिदिन अखबार पढ़ने चाहिए और प्रश्न में इंगित कार्यों के अनुसार कार्य करने चाहिए। उदाहरण के लिए झारखंड सरकार समय-समय पर जल संग्रह पर जोर देती रहती है।अभिलेखों में भी इस प्रकार पेय जल या सिंचाई के रूप में प्रयोग किया जा सकता है तथा अभिलेखों में इस प्रकार के जलाशय का उल्लेख मिलता है। गुजरात के सुदर्शन झील में जल एकत्र होता था जिसका और इस जल का प्रयोग पीने के लिए या सिंचाई के किया करते थे।और इस जील का जिम्मेदारी शासकों को दी जाती थी। 

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11.आज प्रचलित पाँच विभिन्न नौओं और सिक्कों को इकट्ठा कीजिए। इनके दोनों ओर आप जो देखते हैं उनका वर्णन कीजिए। इन पर बने चित्रों, लिपियों और भाषाओं, माप, आकार या या अन्य समानताओं और असमानताओं के बारे में एक रिपोर्ट तैयार कीजिए। इस अध्याय में दर्शित सिक्कों में प्रयुक्त सामग्रीयों, तकनीकों, प्रतिकों, उनके महत्व और सिक्कों के सम्भवित कार्य की चर्चा करते हुए इनकी तुलना कीजिए। 
Ans-छात्र पाँच नोटों और सिक्कों को लेकर आसानी से अध्ययन कर सकते हैं। उदाहरण के लिए एक दस का नोट देखते है। अग्र भाग में हिंदी (देवनागरी) और अंग्रेज में भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्रीय सरकार द्वारा प्रत्याभूत लिखा है। स्पष्ट है कि इन दोनों के द्वारा यह नोट जारी किया गया। दायीं ओर नोट की संख्या लिखी है। हिंदी और अंग्रेजी में दस रुपये भी लिखा है। दायीं ओर महात्मा गाँधी का चित्र और खाली जगह में उनका छायाचित्र बना है। इस पर रिजर्व बैंक का प्रतिक चिन्ह है। साथ में गवर्नर का वचन भी है। पश्चात भाग में कई भषाओं में दस रुपये लिखा है साथ ही शेर का चित्र बना है। 

12.सम्राट के अधिकारी क्या-क्या करते थे? 
Ans-मेगास्थानीज के विवरण का एक अंश दिया गया है।साम्राज्य के महान अधिकारियों में से कुछ नदियों की देख-रेख और भूमि सापन का काम करते हैं जैसे कि मिस्र में होता था। कुछ प्रमुख नहरों से उपनहरों के लिए छोड़ जाने वाले पानी के मुखद्वार का निरीक्षण करते हैं ताकि हर स्थान पर पानी की समान पूर्ति हो सके। यही अधिकारी शिकारियों का संचालन करते हैं और शिकारियों के कृतियों के आधार पर उन्हें इनाम या दंड देते है। वे कर वसूली करते हैं और भूमि से जुड़े सभी व्यवसायों का निरीक्षण करते हैं साथ ही लकड़हारों, बढ़ई, लोहारों और खननकर्ताओं का भी निरीक्षण करते हैं। 

13.अभिलेख किसे कहते हैं? 
Ans-अभिलेख उन्हें कहते हैं जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते है।अभिलेखों में उन लोगों की उपल्ब्धियाँ, क्रियाकलाप तथा महिलाओं और पुरुषों द्वारा धार्मिक संस्थाओं को दिए गए दान का व्योरा होता है। यानी अभिलेख एक प्रकार से स्थायी प्रमाण होते हैं। कोई अभिलेखों में इनका निर्माण की तिथि भी खुदी होती है जिन पर तिथि नहीं मिलती है, उनका काल निर्धारण आमतौर पर पुरालिपि अथवा लेखन शैली के आधार पर काफी सुस्पष्टता से किया जा सकता हैं। 

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