दीपावली पर निबंध Dipawali Essay in Hindi

दीपावली पर निबंध Dipawali Essay in Hindi

प्रकाश एवं उल्लास का महापर्व दीपावली हमारे जीवन में नयी खुशियां लेकर आता है। इस पर्व पर चाहुंओर प्रकाश ही प्रकाश दिखाई देता है। उल्लास एवं प्रसन्नता से लोग परिपूर्ण होते हैं। जहां नजर पड़े वहां रंग-बिरंगे लाइटें और दीपक ही दिखाई देते हैं। दीपावली का पावन पर्व धन-प्राप्ति अनुष्ठान के सर्वोंत्तम माना गया है लेकिन यह पर्व अकेले नहीं आता इसके साथ ही आते हैं कई और पर्व। इन पांच पर्वों का हमारे हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व है।
दीपावली पर निबंध Dipawali Essay in Hindi


दीपावली हिंदुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। इसे दीपों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। दीपावली कार्तिक माह की अमावस्या के दिन मनायी जाती है। दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्दया के राजा श्री रामचन्द्र चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात् लौटे थे। आयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लासपूर्ण था। श्री राम के स्वागत में आयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की घनघोर काली अमावस्या की वह रात्रि दियों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। अधिकतर यह पर्व गिगोरियन कैलेंडर के अनुसार अक्टुबर या नवम्बर महीने में पड़ती है। दीपावली दीपों का त्यौहार है। इसे दिवाली या दीपावली कहते हैं। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दिवाली यही चरितार्थ करती है-

असतो मा सद्गमय, 
तमसो मा ज्योतिर्गमय।

दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियां आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ सुथरा कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झाड़ियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नजर आते हैं। 

पर्वों का समूह दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात् ही दीपावली की तैयारियों आरंभ हो जाती है। लोग एन-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाजारों में चारों तरफ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतएव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता हैं। 

नरक चर्तुदशी-धनतेरस के अगले दिन नरक चर्तुदशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाजारों में खील-बताशे, मिठाइयां, खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियां बिकने लगती है। स्थान-स्थान पर आतिशबाजियों और पटाखों की दुकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-सबंधियों के घर मिठाइयां व उपाहार बांटेने लगते हैं। दीपमाला दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियां जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाजार व गलियां जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाजियों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगे फुलझड़ियां, आतिशबाजियां व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अंधेरी रात पूर्णिमा से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। 

गोवर्धन पूजा-दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अंगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को श्री कृष्ण ने बचाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। 

भाई दूज-दीपावली के अगले दिन का पर्व होता है।दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बही खाते बदल देते हैं। वे दुकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। कृषक समाज अपनी समृध्दि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाते हैं। खरीफ की फसल पककर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृध्द हो जाते हैं। 

  • दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं। राम भक्तों के अनुसार दिवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध कर के अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने की खुशी में आज भी लोग यह पर्व मानते हैं। 
  • वही कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी की दीए जलाए। 
  • एक पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात् लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।
  • जैन धर्म के लोगों के लिए भी दीपावली एक महत्वपूर्ण त्यौहार हैं क्योंकि दीपावली के दिन ही जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है। 
  • सिक्खों के लिए भी दीपावली महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा 1619 में दिवाली के दिन सिक्खों के छ्ठे गुरु हरगोबिंद सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। 
  • नेपालियों के लिए यह त्योहार महान है क्योंकि इस दिन से (नेपाल सवंत में) नया वर्ष शुरू है। 
दीप की रोशनी से अंधेरे को दूर भगाने की कोशिश करती दिवाली रोशन का पर्व है, जिसकी धूम दशहरे के साथ ही शुरू हो जाती है। विभिन्न देशों में रह रहे भारतीय भी इस पर्व का आनंद लेते हैं। बरहाल, देश कोई भी हो, पर्व कोई भी हो, रोशनी के बिना उत्सव फिके-फिके ही महसूस होते हैं। 

धनतेरस पर निबंध Dhanteras Essay in Hindi

धनतेरस पर निबंध

आरोग्य प्राप्ति का पर्व नतेरस
:-
नतेरस हिंदु धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण पर्व है। धनतेरस को धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन भगवान धन्वन्तरी का युद्भव हुआ था। इस दिन सोना-चांदी आदि खरीदना काफी शुभ माना जाता है। यही कारण है कि धनतेरस के दिन बाजार लोगों के भीड़ से भरे होते हैं। धनत्रयोदशी दो प्रकार से मनाया जाता है। 

धन्वंतरी पूजा:-
प्रथम धन्वंतरी जयंती के रूप में तथा द्वितीय धनतेरस के रूप में। धनत्रयोदशी मनाने के लिए इस दिन दीघार्य की प्राप्ति एवं आरोग्यपूर्ण जीवन के लिए भगवान धन्वंतरी का ध्यान एवं पूजा करना चाहिए। सर्वप्रथम प्रात: काल भगवान धन्वंतरी जी का चित्र चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर स्थापित करना चाहिए। उसके बाद रौली, मौली, अक्षत, पुष्प एवं चंदन से पूजन करना चाहिए। उसके बाद निन्म मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान धन्वंतरी से आरोग्य की पार्थाना जरूर करनी चाहिए। 

अहं हि धन्वंतरीरादिदेवो जरारुजामृत्यु हरोडमराणाम्। 
शल्यङगङग गरपरैरुपेतं प्राप्तोस्मि गां भूय इहोपदेष्टुम।। 

अंत में धूप, दीपक दिखाकर भगवान धन्वंतरी की आरती उतारने से साधक को आरोग्य की प्राप्ति होती है। 

धनतेरस के रूप में धनत्रयोदशी कैसे मनाएं:-
धनत्रयोदशी के दिन कुबेर की भी पूजा की जाती है। कुबेर का पूजन दीपावली की रात्रि में तो लक्ष्मी पूजन के समय होता ही है परंतु शास्त्रों में धनत्रयोदशी के दिन भी कुबेर के ध्यान एवं पूजा को अनिवार्य ही नहीं अपरिहार्य बताया गया है कि कुबेर अथवा उनके यंत्र का पूजन इस दिन किये जाने से धन एवं सौभाग्य में वृध्दि होती है। धनत्रयोदशी के दिन किसी को उधार नहीं देना चाहिए तथा अपनी हस्तगत संपति की प्रायत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिए। सायंकाल घर के मुख्य द्वार के दोनो ओर मिट्टी एवं आटे के दीपक में घी या तेल भरकर उसमें स्वच्छ बत्ती डालकर उन्हें प्राज्जवलित करें। ऐसा करने से उस घर में अकाल मृत्यु, वाहन दुर्घटना, असाध्य बीमारियां तथा असफलता नहीं होती है। दीप जलाने के बाद यम का स्मरण करते हुए निम्न मंत्र का जाप करें। 

मृत्युनापाशहस्तेन कालेन मार्ययासह। 
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यज: प्रीयतामिति।। 

अर्थात हे सूर्यपुत्र यम, आज त्रयोदशी को हम अपनी प्रसन्नता के लिए दीपदान करते हैं। 

नरक चतुर्दशी पर निबंध Narak Chaturdashi Essay in Hindi

नरक चतुर्दशी

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली के नाम से जाना जाता है।इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता हैं। नरक चतुर्दशी एक हिंदू पर्व हैं। यह पर्व दीपावली के एक दिन पूर्व मनाया जाता है। यह पर्व हिंदु कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है।इस दिन मृत्यु के देवता-यमराज की उपासना की जाती है तथा यह पूजा स्वास्थय सुरक्षा और अकाल मृत्यु से बचाव के लिए की जाती है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रात: काल तेल लगाकर आपमार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं। शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। पौराणिक कथा है कि इसी दिन कृष्ण ने एक दैत्य नरकासुर का संहार किया था। सूर्योंदय से पूर्व उठकर, स्नानादि से निपट कर यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित करने का विधान है। संध्या के समय दीप जलाए जाते हैं। रूप चतुर्दशी के दिन संपूर्ण सौंदर्य की प्राप्ति हेतु सौंदर्य लक्ष्मी साधना भी अवश्य करनी चाहिए। 

रूपं देहि जयं देहि सौंदर्य लक्ष्मी। 
सौंदर्य लक्ष्मी मंत्र है-
।। ऊँ हीं सौंदर्य देहि कामेश्वराय ऊँ नम:।। 


गोवर्धन पूजा पर निबंध Govardhan puja Essay in Hindi

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आता है इस दिन लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा करते हैं। गोवर्धन पूजा कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई हैं। यह पूजा धनतेरस के बाद चतुर्थ दिवस जो होता है वह गोवर्धन पूजा का होता है। इसे पंच पर्व का चतुर्थ दिवस कह सकते हैं। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन की पूजा, गौ पूजा और अन्नकूट होता है। अन्नकूट को वह प्रतिपदा ली जाती है जिसमें शाम को द्वितीया न पड़ती हो। इस पर्व को भी लोग बड़ी धूमधाम व उत्साह से मनाते हैं। इस दिन गायों का विशेष पूजन किया जाता है। इस पर्व का भी बहुत धार्मिक महत्व है। गोवर्धन पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त में अपने आसन पर बैठ जाएं। गोवर्धन पर्वत के चारों ओर हल्दी एवं कुंकुंम का लेप बनाकर तीन गोल घेरे बनाएं। इस घेरे के बाहर आठ दिशाओं में आठ स्वाभिक बनाएं। प्रत्येक स्वस्तिक बनाएं। प्रत्येक स्वस्तिक एवं गोवर्धन पर एक-एक पुष्प निम्न मंत्र बोलते हुए अर्पित करें। 

ऊँ हीं हीं गोवर्धनाय भद्राय ऐं ऐं ऊँ नम:। 

इसके बाद गोवर्धन के सम्मुख एक दीपक प्राज्जवलित करें, धूप जला दें। फिर पर्वत को चारों ओर मौलि से उपरोक्त मंत्र बोलते हुए बांध दें तथा तीन गांठ लगाएं। फल, बताशा आदि नैवेध रूप में अर्पित करते हुए भगवान कृष्ण का स्मरण करें। उपरोक्त मंत्र का पांच मिनट तक जप करें और चढ़ाए हुए नैवेध को प्रसाद रूप में स्वीकार करें। 

भाईदूज पर निबंध Bhai Dooj Essay in Hindi

भाइदूज पर

भाई-बहन के स्नेह का प्रतिक भाईदूज:-
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाले इस पावन पर्व को यम द्वितीया भी कहते हैं। इस त्योहार के पीछे एक किंवदंती यह है कि यम देवता ने अपनी बहन यमी (यमुना) को इसी दिन दर्शन दिया था, जो बहुत समय से उससे मिलने के लिए व्याकुल थी। अपने घर में भाई यम के आगमन पर यमुना ने प्रफुल्लित मन से उसकी आवभगत की। यम ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि इस दिन यदि भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उनकी मुक्ति हो जाएग इस कारण इस दिन यमुना नदी में भाई-बहन के एक साथ स्नान करने का बड़ा महत्व है। इसके अलावा यमी ने अपनी भाई से यह भी वचन लिया कि जिस प्रकार आज के दिन उसका भाई यम उसके घर आया है, हर भाई अपनी बहन के घर जाए। तभी से भाईदूज मनाने की प्रथा चली आ रही है। जिनकी बहनें दूर रहती हैं, वे भाई अपनी बहनों से मिलने भाईदूज पर अवश्य जाते हैं और उनसे टिका कराकर उपहार आदि देते हैं। इसके अलावा कायस्थ समाज में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ण में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बही-खातों की पूजा भी करते हैं। उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में इसी दिन गोधन नामक पर्व मनाया जाता है जो भाईदूज की तरह होता है। 

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