भारत के संविधान का निर्माण एवं उसके स्रोत (The making of India's Constitution and its Sources)
1.संविधान सभा:
संविधान-सभा स्वशासन अर्थात प्रजातंत्र की देन है। जनता अपने शासन-विधान का निर्माण स्वयं करे, यह प्रजातंत्र का मूलमंत्र है। जनता अपने इस अधिकार का प्रयोग एक विशिष्ट रूप से निर्वाचन या संगठित सभा द्वारा करती है, जिसे संविधान सभा कहते हैं। इनसायक्लोपोडिया ऑफ' सोसल साइन्सेज में इसकी परिभाषा देते हुए कहा गया है कि "यह एक ऐसी प्रतिनिध्यात्मक संस्था होती है जिसे नवीन संविधान पर विचार करने, अपनाने एवं मौजुदा संविधान-सभा के विचार का व्यावहारिक कियान्वयन 17 एवं 18 वीं सदी की प्रजातंत्रीय क्रांतियों के फलस्वरूप हुआ। इसका सर्वप्रथम क्रियान्वयन 1776 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। जबकि वहाँ के संविधान बनाने हेतु फिलाडेलफिया सम्मेलन में संविधान-सभा का गठन किया गया, जिसने 1776 ई. से 1787 ई. के बीच अमेरिका संविधान का निर्माण किया। फ्रांसीसी क्रांति के बाद वहाँ की राष्ट्रीय सभा ने 1789-91 ई. के बीच वहाँ के संविधान की रचना कर संविधान-सभा के विचार को परिपक्वता प्रदान की। तत्पश्चात् प्रजातंत्र के विकास के साथ प्राय: सभी प्रजातांत्रिक राज्यों के संविधान का निर्माण संविधान-सभा द्वारा किया गया। यह सही है कि ब्रिटिश संविधान के निर्माण के लिए कभी कोई संविधान परिषद् नहीं बैठी तथा वह विकास का एक प्रक्रम है, लेकिन उसके इस प्रक्रम में जनता की पूर्ण सहमति रही है।
2.भारत में संविधान-सभा की माँग:
भारत में संविधान-सभा का गठन यद्यपि 6 दिसंबर 1946 ई. में हुआ, लेकिन इसकी माँग बहुत पहले से की जा रही थी। भारत में जब से स्वाधीनता आंदोलन ने सक्रिय रूप धारण किया तभी से स्वशासन एवं स्वराज की माँग के पीछे यह विचार किसी-न-किसी रूप में अवश्य निहित था कि अपनी वैधानिक व्यवस्था के निर्माण का अधिकार भारतीयों को होना चाहिए तथा यह व्यवस्था वाह्या-शक्ति द्वारा आरोपित नहीं होनी चाहिए। प्रारंभ में यह विचार अस्पष्ट एवं असंगठित था, लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन की प्रगति के साथ यह विचार ठोस रूप लेने लगा तथा 1936 ई. में काँग्रेस ने स्पष्ट शब्दों में संविधान-सभा की माँग की। भारत में संविधान-सभा की माँग की अवधि को दो भागों में बाँट सकते हैं-
(i).प्रथम भाग (1922-1939 ई.): इस अवधि में पहले अस्पष्ट शब्दों में संविधान-सभा की माँग की गयी, लेकिन सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
(ii).द्वितीय भाग (1940-1946 ई.): इस अवधि में प्रारम्भ में सैध्दन्तिक रूप में तथा बाद में व्यावहारिक रूप में ब्रिटिश सरकार ने संविधान-सभा की माँग को स्वीकार किया तथा उसी के फलस्वरूप 1946 ई. में संविधान-सभा का गठन हुआ।
प्रथम भाग: संविधान सभा की सर्वप्रथम माँग अस्पष्ट शब्दों में 1922 ई. में महात्मा गाँधी द्वारा की गयी थी। उन्हों माँग की थी कि भारत के भविष्य का निर्णय जनता के निर्वाचन प्रतिनिधि द्वारा हो। तत्पश्चात् अस्पष्ट शब्दों में ही 1922-23 ई. में श्रीमती एनी बेसेंट द्वारा तथा 1924 ई. में पंडित मोतीलाल नेहरू द्वारा की गयी। 1928 ई. में सर्वदलीय सम्मेलन द्वारा गठित नेहरू समिति वस्तुत: संविधान-सभा का ही रूप था। 1930-32 ई. के बीच ब्रिटेन में हुए गोलमेज सम्मेलन में इसकी माँग हुई तथा 1934 ई. में स्वराज दल ने आत्मनिर्णय के सिध्दांत को कार्यान्वित करने हेतु एक संविधान सभा बुलाने की माँग की। काँग्रेस ने 1934 ई. में स्पष्ट: यह माँग कि की भारतीय प्रतिनिधियों की संविधान-सभा देश के संविधान का निर्माण करें। तत्पश्चात् काँग्रेस द्वारा यह माँग बार-बार दुहरायी गयी। 28 दिसम्बर, 1936 ई. को काँग्रेस ने फैजपुर सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित किया कि "भारतीय केवल ऐसे सांविधानिक ढाँचे को मान्यता दे सकते हैं जिसका निर्माण वे स्वयं करें......।" प्रस्ताव में यह कहा गया कि भारत में प्रजातंत्र की स्थापना "केवल ऐसे संविधान-सभा द्वारा सम्भव है, जिसका निर्माण मताधिकार के आधार पर हो और जिसे देश का संविधान बनाने का अधिकार हो।" 1939 ई. में महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में कहा कि 'कठोर सत्यों ने मुझे संविधान-सभा के विचार का जवाहरलाल से भी अधिक उत्साह समर्थक बना दिया है।" लेकिन, 1939 ई. के अंत तक ब्रिटिश सरकार का रुख संविधान-सभा के खिलाफ रहा। उस समय तक मुस्लिम लीग भी संविधान-सभा के निर्माण के खिलाफ थी।
द्वितीय भाग: संविधान-सभा की माँग का दूसरे चरण 1940 ई. से प्रारम्भ हुआ। युध्दजन्य परिस्थितियों ने 1940 ई. में सरकार को बाध्य किया कि वह संविधान सभा के संबंध में अपने दुराग्रह को छोड़े। उसने सर्वप्रथम 1940 ई. के अगस्त-प्रस्ताव में सैध्दन्तिक दृष्टि से इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। प्रस्ताव में कहा गया कि "सम्राट की सरकार युध्द-समाप्ति के बाद यथाशीघ्र एक ऐसी प्रतिनिध्यात्मक सभा के निर्माण की सहर्ष अनुमति देगी जिसमें भारत के राष्ट्रीय जीवन के प्रमुख तत्वों का प्रतिनिधित्व हो और जो नये संविधान का निर्माण कर सके। "इस वर्ष मुस्लिम लीग ने भी संविधान-सभा की माँग को स्वीकार किया, लेकिन दूसरे रूप में। उसने माँग की कि दो संविधान-सभा बने-एक, मुस्लिम बहुमत क्षेत्र के लिए तथा दूसरी, शेष भारत के लिए। इस माँग के पीछे अंग्रेजों की 'फूड डालो और राज्य कारों' की नीति कार्य कर रही थी। तत्पश्चात् मित्र-राष्ट्रों के दबाव के कारण ब्रिटिश सरकार ने क्रप्स योजना (1942 ई.) तथा बैवेल योजना (1945 ई.) द्वारा भी संविधान-सभा का प्रस्ताव स्वीकार किया। लेकिन इन योजनाओं की अंतर्निहित त्रुटियों तथा मुस्लिम लीग की भारतविरोधी नीति के कारण ये योजनाएं सफल न हो सकीं। युध्द-समाप्ति के बाद ब्रिटेन में हुए आम-चुनाव में मजदूर दल की विजय हुई, जो भारतीय स्वाधीनता का समर्थक था। उसने भारतीय समस्याओं के समाधान हेतु जो कैबिनेट मिशन भारत भेजा; उसी के प्रतिवेदन के आधार पर 1946 ई.में भारत में संविधान-सभा का गठन हुआ। द्वितीय विश्युध्द में भारतीयों का सहयोग, मित्र-राष्ट्रों के दबाव, सरकार की शक्ति में अप्रत्याशित हास, ब्रिटेन में मजदूर दल की विजय आदि तत्वों ने संविधान-सभा की माँग स्वीकार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
2.कैबिनेट मिशन योजना:
संविधान-सभा के गठन की और सर्वप्रथम कारगर कदम 1945 ई. में ब्रिटिश आम चुनाव में मजदूर दल की विजय के बाद उठाया गया। सत्तारूढ़ होने के बाद प्रधानमंत्री एटली ने 19 सितम्बर, 1945 ई. को घोषणा की कि "भारत के लिए भारतवासियों द्वारा ही एक संविधान-सभा का निर्माण किया जायगा।" फिर, 19 फरवरी, 1946 ई. को प्रधानमंत्री ने कॉमन सभा में घोषणा की कि भारतीय नेताओं में भारतीय स्वतंत्रता, संविधान-सभा की स्थापना....के संबंध में विचार-विमर्श करने के लिए सरकार भारत में ब्रिटिश कैबिनेट की एक मिशन भेजेगी, जिसमे भारत मंत्री लॉर्ड पैथिक लॉरेन्स, स्टैफर्ड क्रिप्स तथा ए.वी. अलेक्जेंडर शामिल होंगें। सरकार की योजना के अनुसार कैबिनेट मिशन 24 मार्च 1946 ई. को भारत पहुँचा। उसने भारतीय समस्या के समाधान के लिए जो योजना प्रस्तुत की उसमें भारत के लिए एक संविधान-सभा के निर्माण की भी योजना थी। उसी योजना की सिफ़ारिशों के आधार पर संविधान-सभा का गठन किया गया।
3.संविधान-सभा का गठन:
कैबिनेट मिशन की सिफारिश में संविधान-सभा की कुल संख्या 389 निर्धारित की गयी, जिसमें 292 ब्रिटिश प्रांतों 93 सदस्य देशी रियासतों तथा 4 चीफ कमिश्नर के प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते। उसके संगठन से सबंधित अन्य बातें निम्नलिखित थी-
(i)संविधान सभा में प्रत्येक प्रांत को उसकी जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व देने की सिफारिश की गयी। लगभग 10 लाख जनसंख्या पर एक सदस्य निर्वाचित होते। प्रांतों के लिए निर्धारित स्थान जनसंख्या के आधार पर उस प्रांत की विभिन्न जातियों में बाँटने थे। प्रांतों के प्रतिनिधित्व का चुनाव प्रांतीय विधान-सभा के सदस्य करते। प्रत्येक प्रांत से प्रत्येक सम्प्रदाय को जितने सदस्य संविधान-सभा में भेजने थे, उनका चुनाव विधान-सभा के संबंधित सम्प्रदायों के सदस्यों द्वारा किया जाता।
(ii)मतदाताओं को तीन वर्गों में बाँटने की व्यवस्था की गयी-साधारण, मुसलमान एवं सिख। बालिग मताधिकार को नहीं अपनाया गया।
(iii)देशी रियासतों के प्रतिनिधित्व का आधार भी जनसंख्या ही रही। लेकिन, उनके प्रतिनिधियों के निर्वाचन का ढंग ब्रिटिश प्रांतों से संविधान-सभा के लिए निर्वाचन प्रतिनिधि की समझौता समिति तथा देशी रियासत की समिति के बीच आपसी समझौता द्वारा तय किया जाता।
(iv)प्रांतों के लिए अलग संविधान सभा की योजना थी।
संविधान-सभा-389
ब्रिटिश प्रांत-292
देशी रियासत-93
चीफ कमिश्नर के प्रांत-4
सामान्य-210
मुस्लिम-78
सिख-4
कैबिनेट मिशन की सिफारिशों के आधार पर संविधान-सभा के गठन हेतु 1946 ई. में चुनाव हुए। चुनाव ब्रिटिश प्रांतों तथा चीफ कमिश्नर के प्रांतों हेतु निर्धारित 292+4=296 स्थान हेतु ही हुए, देशी रियासतों हेतु निर्धारित 93 स्थानों पर नहीं। चुनाव परिणाम इस प्रकार रहा:
- काँग्रेस 205
- मुस्लिम लीग 73
- स्वतंत्र व अन्य अम्मीदवार 18
कुल (296)
चुनाव में मुस्लिम लीग को सामान्य स्थानों पर एक भी जगह नहीं मिले। उसे सभी 73 स्थान मुस्लिम सीटों पर ही मिले। सामान्य 210 स्थानों पर काँग्रेस के 199 तथा अन्य उम्मीदवारों को 11 स्थान मिले। लिखों हेतु निर्धारित 4 स्थान पर अकाली दल को 3 तथा काँग्रेस को 1 स्थान मिला।
4.भारत में संविधान सभा के संगठन एवं कार्यकारण:-
Ans.भारतीय संविधान-सभा का गठन जुलाई 1946 ई. में कैबिनेट मिशन योजना के तहत प्रांतीय विधान-सभाओं द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों को सम्मिलित कर किया गया था। यह निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर परोक्ष रूप से हुआ था। इसमें कुल 389 सदस्य निर्धारित थे जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों से, 4 चीफ कामीश्नरी के प्रांतों से और शेष 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि सम्मिलित होने थे। किंतु निर्वाचन 296 सदस्यों का ही हुआ। इस निर्वाचन में काँग्रेश के 208 सदस्य, मुस्लिम लीग के 73 सदस्य और शेष अन्य दलों के एवं निर्दलीय सदस्य थे। अपनी स्थिति दुर्बल देखकर और पाकिस्तान निर्माण की संभवना को देखते हुए मुस्लिम लीग ने संविधान सभा के कार्यों का बहिष्कार किया था। इसने पाकिस्तान के लिए अलग संविधान-सभा की माँग शुरू कर दी थी। संविधान-सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 ई. को हुई जिसका अध्यक्ष सभा के व्योवृध्द सदस्य डॉ. सच्चिदान्द सिंहा को बनाया गया पर उनकी बीमारी के कारण 11 दिसम्बर, 1946 ई. डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सभा को स्थायी अध्यक्ष चुना गया। संविधान-सभा का कार्य भारत के विभाजन के बाद ही तेजी से आगे बढ़ा। मुस्लिम लीग द्वारा इसके बहिष्कार एवं अपनी सांप्रदायिक राजनीति, जिसके कारण पाकिस्तान का निर्माण हुआ था, इसके कार्य में अत्यन्त बाधा उपस्थित कर रहे थे।
5.संविधान-सभा की प्राकृत और भारत के भावी राज-व्यवस्था:-
Ans.भारत का संविधान लिखित और निर्मित है; ब्रिटेन की भाँति विकसित और अलिखित नहीं। इस संविधान का निर्माण एक निर्वाचित संविधान-निर्मात्री-सभा द्वारा किया गया था।
गठन:इस संविधान-सभा का गठन स्वाधीनता के पूर्व 'कैबिनेट मिशन योजना' के तहत परोक्ष निर्वाचन पध्दति के आधार पर हुए निर्वाचन से हुआ था। जुलाई 1946 ई. में प्रांतीय विधान-सभाओं द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर ही संविधान-सभा के सदस्यों का चुनाव किया गया था। संविधान-सभा में दलगत स्थिति इस प्रकार थी-कुल सदस्यों की संख्या 389 थी इसमें प्रान्तों से चुने गये सदस्यों की संख्या 292,चीफ कामीश्नरी के प्रान्तों से 42 और देशी रियासतों से 93 सदस्य थे किंतु 296 सदस्यों का ही विभिन्न प्रान्तों से निर्वाचन किया गया था।
काँग्रेस 208
मुस्लिम लीग 73
यूनियनस्ट पार्टी 1
यूनियनस्ट मुस्लिम 1
यूनियनस्ट शिड्यूल कास्ट 1
कृषक प्रजा संघ 1
अछूत जाती संघ सिख (काँग्रेस को छोड़कर) 1
साम्यवादी 1
स्वतंत्र 8
कुल 296
संविधान सभा में अपनी निर्बल स्थिति और कैबिनेट योजना में ही पाकिस्तान निर्माण की संभावना को देखकर मुस्लिम लीग ने संविधान-सभा के कार्यों का व्हिष्कार किया था। 9 दिसम्बर 1946 ई. को संविधान-सभा के प्रथम अधिवेशन में मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि सम्मिलित नहीं हुए। इसी अधिवेशन में इसी दिन डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष निर्वाचित किया गया, पर उनकी बीमारी के कारण 11 दिसम्बर 1946 ई. को डॉ राजेंद्र प्रसाद को सभा का स्थायी अध्यक्ष चुना गया और वे अंत तक इसका अध्यक्ष बने रहे। संविधान-सभा का वास्ताविक कार्य भारत के विभाजन के उपरांत ही आरंभ हो सका।
6.संविधान सभा के प्रमुख अधिवेशन:-
पहाला संविधान-सभा का अधिवेशन 9 दिसंबर से 23 दिसंबर, 1946 ई. चला। इस बैठक में संविधान-सभा के अध्यक्ष के निर्वाचन के अतिरिक्त जो सर्वधिक महत्वपूर्ण कार्य हुआ, वह था-22 दिसंबर को उद्देश्य प्रस्ताव (Objective resolution) का पारित होना। इसे 13 दिसंबर को पंडित नेहरू ने संविधान-सभा में पेश किया था।
दूसरा संविधान-सभा की बैठक 20 जनवरी से 25 जनवरी, 1947 ई. तक चली। इसमें संविधान के विभिन्न पक्षों पर विचार करने के लिए अनेक समितियाँ नियुक्त हुई, यथा स्टीयरिंग समिति, कार्यक्रम समिति, संघ समिति, मूल अधिकार समिति, प्रांतीय समिति इत्यादि।
तिसरा संविधान-सभा का अधिवेशन 28 अप्रील से 2 मई, 1947 ई. तक चला इस अधिवेशनों में विभिन्न समितियों ने अपने प्रतिवेदन पेश किये तथा उन प्रतिवेदनों पर विचार हुआ।
चौथा संविधान-14 जिलाई से 31 जुलाई, 1947 ई. तक चला इस अधिवेशन में देशी रियासतों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए तथा इसी अधिवेशन में भारत के राष्ट्रिय ध्वज का प्रस्ताव 22 जिलाई 1947 ई. को पारित हुआ।
पाँचवा संविधान-यह अधिवेशन 14 अगस्त को शुरू हुआ था और 30 अगस्त को समाप्त हुआ था।
छठा संविधान-यह अधिवेशन 27 जनवरी 1948 को आयोजित हुआ था।
सातवां संविधान-यह अधिवेशन 4 नवंबर से 8 जनवरी के मध्य आयोजित हुआ।
आठवां संविधान-यह अधिवेशन 16 मई से लेकर 16 जून 1949 तक चला था।
नौवां संविधान-यह अधिवेशन 30 जुलाई से 18 सितंबर 1949 तक चली थी।
दसवां संविधान-यह अधिवेशन 6 अक्टुबर से 17 अक्टुबर 1949 के मध्य चला था।
ग्यारहवां संविधान-यह अधिवेशन 14 नवम्बर से लेकर 26 नवंबर 1949 तक आयोजित किया गया था।
बारहवां संविधान-यह अधिवेशन अंतिम अधिवेशन था जो कि 24 जनवरी 1950 को हुआ था।
7.भारतीय संविधान के स्रोत:-
भारतीय संविधान के आलोचकों ने इसे 'विदेशों से उधार ली हुई अस्तुओं का संग्रह', 'भानुमती का कुनवा' अथवा 'कैंची और गोंद' का कमाल कहा है। आलोचकों ने इसलिए कहा है कि भारतीय संविधान में मौलिक कुछ नहीं है। भारतीय संविधान के विभिन्न स्रोतों को देखकर ही इन आरोपों का परीक्षण हो सकता है। वास्तव में भारत के संविधान-निर्माता संविधान-निर्माण के लिए विभिन्न स्रोतों का भी उपयोग करना चाहते थे। इसलिए जुलाई 1946 ई. में ही कॉंग्रेस ने एक 'विशेष समिति' का गठन किया था जिसका काम संविधान-सभा के लिए निर्देश (Guide lines) तैयार करना था। साथ ही, संविधान सभा के परामर्शदाता बी. एन. राव ने विश्व की प्राय: सभी महत्वपूर्ण संविधान व्यवस्थाओं का अध्य्यन कर एक प्रतिवेदन तैयार किया था, जो संविधान-निर्माण कार्य में अधिक उपयोगी सिध्द हुआ।
8.स्रोत:-
हमारे संविधान-निर्माता किसी 'मौलिक संविधान' का निर्माण करना नहीं चाहते थे, वे एक व्यावहारिक संविधान का निर्माण करना चाहते थे और इसी कारण उनलोगों ने विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
- 1935 ई. का शासन अधिनियम: संविधान की विषय-सामग्री तथा भाषा प्राय: इसी अधिनियम की ही भाँति नहीं है, किंतु इस अधिनियम की प्राय: 200 धाराएं ऐसी हैं जो या तो ज्यों-का त्यों या वाक्य-रचना में कुछ हेर-फेर कर इसमें अपना ली गयी हैं। केंद्र सरकार को अधिक शक्तिशाली बनाने में इस अधिनियम का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
- ब्रिटेन का संविधान: ब्रिटिश संविधान को भारत के संविधान की एक प्रकार से आत्मा ही कहा जाता जा सकता है। ब्रिटिश संविधान से ही संसदीय शासन पध्दति, संसद की सर्वोच्चता, प्रधानमंत्री स्पीकर, ससदीय व्यवहार, प्रक्रिया, आदि व्यवस्थाएं अपनायी गयी हैं।
- अमेरिका का संविधान: अमेरिका के संविधान से प्रमुख रूप में नागरिकों के मौलिक अधिकार, सर्वोंच्च न्यायालय की व्यवस्थाएं, न्यायिक समीक्षा, उपराष्ट्रपति का पद आदि तथ्य अपनाये गए हैं।
- कनाडा का संविधान: भारत की संघीय-व्यवस्था, केंद्र तथा इकाई-राज्यों के बीच शक्ति-विभाजन आदि की व्यवस्था कनाडा के संविधान से अपनायी गयी है। भारतीय संघ को यूनियन भी इसी आधार पर कहा गया है।
- आस्ट्रेलिया का संविधान: सर्वोंच्च न्यायालय राष्ट्रपति को परामर्श लेने की जो व्यवस्था है वह आस्ट्रेलिया के संविधान से प्रभावित है। साथ ही समवर्ती सूची तथा इस सूची सम्बन्धी विषयों पर संघ तथा केंद्र के बीच विवादों को सुलझाने की व्यवस्था भी आस्ट्रेलिया के संविधान से ली गयी है।
- आयरलैंड का संविधान: भारतीय संविधान में नीति निर्देशक सिध्दांत की जो व्यवस्था है वह आयरलैंड के संविधान से ली गयी है। इसी प्रकार, राष्ट्रपति के निर्वाचन में निर्वाचन-मंडल की व्यवस्था तथा राज्य में कला, साहित्य सार्वजनिक क्षेत्र में प्रख्यात व्यक्तियों को संसद में मनोनीत किये जाने की व्यवस्था भी आयरलैंड के संविधान से ली गयी है।
- दक्षिण अफ्रिका का संविधान: संविधान में संशोधन की प्रणाली दक्षिण अफ्रिका के संविधान के संशोधन पध्दति से अपनायी गयी है।
- जापान का संविधान: भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार के अंतर्गत धारा 21 में उल्लिखित 'कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर शब्दावली जापान के संविधान से ली गयी है।
- साम्यवादी देशों के संविधान से: संविधान के 42 वें संशोधन द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकार में कर्ताव्यों का जोड़ा जाना भी सोवियत-संघ तथा साम्यवादी चीन के संविधान की व्यवस्थाओं से ही प्रभावित दिखायी पड़ता है। पर इसी आधार पर भारतीय संविधान को 'भानुमती का पिटारा' अथवा 'उधार ली हुई वस्तुओं का संग्रह कहना भी उचित नहीं है। कारण यह है कि संविधान-निर्माताओं ने इन स्रोतों की उन्हीं व्यवस्थाओं को अपनाया है जो भारतीय परिस्थितियों के लिए उपयोगी एवं अनुकूल थी। उनका एक प्रकार से भारतीय ही कर दिया गया है। इसी तथ्य को संविधान-सभा के प्रमुख परामर्शदाता डॉ. वी. एन. राव ने भी व्यक्त किया था।
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