महात्मा गांधी Essay Mahatma Gandhi पर हिन्दी में निबंध

महात्मा गांधी पर निबंध Essay on  Mahatma Gandhi 

महात्मा गांधी Essay | Mahatma Gandhi पर हिन्दी में निबंध

1.भूमिका
अपनी कर्तव्यनिष्ठा एवं सत्यनिष्ठा के कारण जो साधारण मानव से महादेव बन गए, वे हैं मोहनदास करमचंद गांधी। आधुनिक युग में तुर्की के निर्माण में जो कमाल पाशा ने किया, रूस के निर्माण में जो भूमिका लेनिन ने निबाही, भारतमाता को परतंत्रता की लौह-श्रृंखला से मुक्त कराने का वह कठिन कार्य महात्मा गाँधी ने किया। 

2.बाल्यकाल
मोहनदास का जन्म 2 अक्टुबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। उस समय उनके पिता पोरबंदर के दीवान थे। अर्थाभाव न रहने के कारण गाँधीजी का लालन-पालन बड़ी शान-शौकत से हुआ। किसे मालूम था कि मखमल के गद्दों पर फिसलनेवाला बालक दुबली-सी लकुटिया लिये, दुष्टदलन तथा लोककल्याण के लिए विश्व के नगर-नगर, डगर-डगर की खाक छानेगा? 

3.राजनीति
गाँधी की शिक्षा का शुभारंभ पोरबंदर की पाठशाला में हुआ। इनका विवाह तेरह वर्ष की अवस्था में ही हो गया था। इनकी दृष्टि में वे बालक बड़े भाग्यवान हैं, जिनका विवाह इस कच्ची उम्र में नहीं होता। इंट्रेंस करने के बाद ये उच्च शिक्षा के लिए भावनगर के श्यामलदास कॉलेज में भेजे गए, किंतु वहाँ इनका मन रम न सका। बाद में इनके भाई लक्ष्मीदास ने इन्हें बैरिस्टरी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए विलायत भेज दिया। 1891 में इंगलैंड से बैरिस्टरी पास कर ये स्वदेश आये। बंबई में इन्होंने बैरिस्टरी आरंभ की। 

4.महत्ता
गाँधीजी के सामाजिक क्रांतिकारी जिवान का श्रीगणेश 1893 की अफ्रिका-यात्रा से होता है। अफ्रिका में गोरे भारतीयों के प्रति सदव्यवहार नहीं करते थे। वे उन्हें पग-पग पर अपमानित करते थे। गाँधीजी इसे सहन नहीं कर सके। इन्होंने अपना 'सत्यग्रह' वहीं से आरंभ किया। 

5.उपसंहार
गाँधीजी में सेवा-भाव कूट-कूटकर भरा था। ये शत्रुओं की भी सेवा तथा सहायता निस्संकोच करते थे। 1897 से 1899 तक ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध छिड़ जानेवाले बोअर-युध्द में इन्होंने घायलों और पीड़ितों की सेवा की और अपनी जान हथेली पर लेकर ये इसके लिए लड़ाई के मैदान तक गए। 1897 और 1899 में भारत में जब अकाल पड़ा तो इन्होंने अकाल-पीड़ितों के सहायतार्थ अफ्रिका में चंदा इकट्ठा किया। डरबन में प्लेग के मरीजों की सहायता के इनके कार्यों से प्रसन्न होकर अँगरेज सरकार ने इन्हें 'कैसर-ए-हिंद' की उपाधि दी।

घोर सत्याग्रह-संग्राम के अनंतर जब गाँधी अफ्रिका से भारत लौट तब राष्ट्र ने अपने इन महान नेता का भव्य स्वागत किया। श्री गोपालकृष्ण गोखले के सुझाव पर इन्होंने संपूर्ण राष्ट्र का पर्यटन किया तथा देश की और देश के लोगों की वस्ताविक स्थिति समझी। आगे चलकर इन्होंने अहमदाबाद मे, जो भारत का मैनचेस्टर कहलाता है, साबरमती नदी के किनारे अपने आश्रम की स्थापना की। साबरमती-आश्रम राष्ट्रीयता का मस्तिक-केंद्र था, जहाँ से समग्र राष्ट्रीय प्रेतित होता था। गाँधीजी देशसेवा के व्रत में हर क्षण तल्लीन रहते थे और इन्होंने अपना सर्वस्व देशसेवा के लिए सहर्ष उत्सर्ग कर दिया।

भारतवर्ष में भी अंग्रेजों का अत्याचार कम नहीं हो रहा था। जनता अपने आराध्यदेव के स्वागत के लिए पलक-पाँवड़े बिछाये बैठी थी। गाँधीजी जिधर चलते थे, इनके पीछे लाखों की भीड़ दौड़ पड़ती थी। कवि पं. सोहनलाल द्विवेदी ने ठीक ही कहा है-

चल पड़े जिधर दो पग डगमग
चल पड़े कोटि पग उसी ओर, 
पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि 
गड़ गये कोटि दृग उसी ओर। 

भारतवर्ष में गाँधीजी का प्रथम कर्मक्षेत्र था, बिहार का चम्पारण। वहाँ निलहे गोरे (नील की खेती के जमींदार और नील के कारखानेदार) किसानों बहुत जुल्म करते थे। 1917 में गाँधीजी के सत्याग्रह से किसानों का शोषण समाप्त हुआ। फिर तो इनके जीवन का क्षण-क्षण असंख्या क्रांतिकारी और निर्माणकारी घटनाओं से संकुल रहा। 26 जनवरी 1930 को इन्होंने स्वतंत्रता का मंत्रोच्चार किया। अगस्त 1942 में 'अँग्रेजों! भारत छोड़ो! ' का आह्नान किया और इन संघर्षों का शुभ परिणाम हुआ कि 15 अगस्त 1947 को हमारे देश में स्वतंत्रता-देवी का आगमन हुआ। गाँधीजी के भौतिक जीवन का पाटक्षेप 30 जनवरी 1948 को साम्प्रदायिकयता के काले हाथों हत्या के रूप में हुआ। 

गाँधीजी का संपूर्ण जीवन ही धर्मक्षेत्र था। ये दुर्नीति के दुर्योधन का सदा दर्पदलन करते रहे। ये आजीवन पूरी पृथ्वी पर प्रेम और शांति की अमिय-वृष्टि के लिए संघर्ष करते रहे। ये सत्य और अहिंसा के महान पुजारी थे। इन्होंने अच्छे साध्य के लिए कभी निकृष्ट साधन नहीं स्वीकार किया। इनके तीन प्रमुख कार्यसूत्र थे-(1)गुलामी या अत्याचारी के विरुद्ध अहिंसक प्रतिरोधक अर्थात सत्याग्रह, (2)राष्ट्र की आर्थिक आत्मनिर्भर के लिए ग्रामोद्योग और उसका विस्तार और (3)शिषितों, अल्पसंख्यकों, हरिजन और महिलाओं के अधिकारों के विषय में प्रथामिकता। ये हमारे बापू हैं-राष्ट्रपिता। इनका स्थान भारतीय जनता के ह्रदय में राम और कृष्ण की तरह परमपूज्य तथा अमिट है। ये सूर्य-स्तवन-श्लोक की तरह नित्य स्माणीय हैं। महाकाली दिनकर के शब्दों में-

तू कालोदधि का महास्तभ, आत्मा के नभ का तुंग केतु, 
बापू! तू मत्र्य, अमत्र्य, स्वर्ग, पृथ्वी, भू, नभ का महासेतु! 
तेरा विराट यह रूप कल्पना-पट पर नहीं समाता है, 
जितना कुछ कहूँ मगर कहने को शेष बहुत रह जाता है। 
लज्जित मेरे अंगार, तिलक-माला भी यदि ले आऊँ मैं, 
किस भाँति उठूँ इतना उपर? मस्तक कैसे छू पाऊँ मैं? 
ग्रीवा तक हाथ न जा सकते, उंगलियाँ न छू सकती ललाट, 
वामन की पूजा किस प्रकार, पहुंचे तुम तक मानव विराट्। 
 

Post a Comment

Previous Post Next Post

Offered

Offered