छठ पूजा पर निबंध (Chhath puja Essay in Hindi)
छठ पूजा पर निबंध 110 शब्दों में (Essay on Chhath puja in Hindi)
छठ हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह पूजा बिहार झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अत्यंत लोकप्रिय है। छठ पूजा दीपावली पर्व के छ्ठे एवं सातवें दिन कार्तिक शुक्ल षष्टि एवं सप्तमी को की जाती है। वैसे तो भारत में सूर्य पूजा की परम्परा वैदिक काल से ही रही है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे यह पूजा की जाती है। छठ पूजा:-
छठ का पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है। इसे छठ से दो दिन पहले चौथ के दिन शुरू करते हैं जिसमें दो दिन तक व्रत रखा जाता है। इसे घर का कोई सदस्य रख सकता है। पर्व के लिए महिलाएं कई दिनों से तैयारी करती हैं इस अवसर पर घर के सभी सदस्य स्वच्छता का बहुत ध्यान रखते हैं जहां पूजा स्थल होता है वहां नहा धो कर ही जाते हैं यही नहीं तीन दिन तक घर के सभी सदस्य देवकारी के सामने जमीन पर ही सोते हैं।
छठ पर्व की पूजन सामग्री:-
पूजा में चढ़ावे के लिए सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के मौसम फल, केले की पूरी गौर, इस पर्व पर खासतौर पर बनाया जाने वाला पकवान ठेकुआ,नारियल, मिली, सुथनी, अखरोट, बादाम, नारियल, इस पर चढ़ने के लिए लाल/पीले रंग का कपड़ा, एक बड़ा घड़ा जिस पर बारह दीपक लगे हो गन्ने के बारह पेड़ आदि।
छठ पूजा के प्रथम दिन:-
पहले दिन महिलाएं अपने बाला धो कर चावल, लौकी और चने की दाल का भोजन करती हैं और देवकरी में पूजा का सारा समान रख कर दूसरे दिन आने वाले व्रत की तैयारी करती हैं।
छठ पूजा के द्वितीय दिन:-
छठ पर्व पर दूसरे दिन पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम को गन्ने के रस की खीर बनाकर देवकारी में पांच जगह कोशा में बखिर रखकर उसी से हवन किया जाता है। बाद में प्रसाद के रूप में खीर का ही भोजन किया जाता है।
छठ पूजा के तृतीय दिन:-
तीसरे दिन यानी छठ के दिन 24 घंटे का निर्जल व्रत रखा जाता है, सारे दिन पूजा की तैयारी की जाती है और पूजा के लिए एक बांस की बनी हुई बड़ी टोकरी, जिसे दौरी कहते हैं, में पूजा का सभी सामान डाल कर देवकारी में रख दिया जाता है। देवकारी में गन्ने के पेड़ से एक छत्र बनाकर और उसके नीचे मिट्टी का एक बड़ा बर्तन, दीपक, तथा मिट्टी के हाथी बना कर रखे जाते हैं और उसमें पूजा का सामान भर दिया जाता है। वहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप नारियल कपड़े में लिपटा हुआ नारियल, पांच प्रकार के फल, पूजा का अन्य सामान ले कर दौरी में रख कर घर का पुरुष इसे अपने हाथों से उठा कर नदी, समुद्र या पोखर पर ले जाता है। यह अपवित्र न हो जाए इसलिए इसे सिर के उपर की तरफ रखते हैं।
पूजा का पहला अध्र्य:-
पानी में जा कर खड़े होते हुए सूर्य देव की पूजा के लिए सूप में सारा सामान ले कर पानी से अध्र्य देते हैं और पांच बार परिक्रमा करते हैं। सूर्यास्त होने के बाद सारा सामान ले कर सोहर गाते हुए घर आ जाते और देवकारी में रख देते हैं। रात को पूजा करते हैं।
पूजा का दूसरा अध्र्य:-
कृष्ण पक्ष की रात जब कुछ भी दिखाई नहीं देता श्रध्दालु अलस्सुबह सूर्यदय से दो घंटे पहले सारा नया पूजा का सामान ले कर नदी किनारे जाते हैं। पूजा का सामान फिर उसी प्रकार नदी से मिट्टी निकाल कर चौकी बना कर उस पर रखा जाता है और पूजन शुरू होता है। सूर्य देव की प्रतिक्षा में महिलाएं हाथ में सामान से भरा सूप ले कर सूर्य देव की आराधना व पूजा नदी में खड़े हो कर करते हैं। जैसे ही सूर्य की पहली किरण दिखाई देती है सब लोगों के चेहरे पर एक खुशी दिखाई देती है और महिलाएं अध्र्य देना शुरू कर देती हैं। शाम को पानी से अर्घ देते हैं लेकिन सुबह दूध से अध्र्य दिया जाता है। इस समय सभी नदी में नहाते हैं तथा गीत गाते हुए पूजा का सामान ले कर घर आ जाते हैं। घर पहुंच कर देवकारी में पूजा का सामान रख दिया जाता है और महिलाएं प्रसाद ले कर अपना व्रत खोलती है तथा प्रसाद परिवार व सभी परिजनों में बांटा जाता है।
काशी भरने की मान्यता:-
छठ पूजा में कोशी भरने की मान्यता है कोई अपने किसी अभीष्ट के लिए छठ मां से मनौती करता है तो वह पूरी करने के लिए काशी भरी जाती है इसके लिए छठ पूजन के साथ-साथ गन्ने के बारह पेड़ से एक समूह बना कर उसके नीचे एक मिट्टी का बड़ा घड़ा जिस पर छ: दिए होते हैं देवकारी में रखे जाते हैं और बाद में इसी प्रक्रिया से नदी किनारे पूजा की जाती है। कोशी की इस अवसर पर काफी मान्यता है उसके बारे में एक गीत गाया जाता है जिसमें बताया गया है कि छठ मां को कोशी कितनी प्यारी है। देश के साथ-साथ अब विदेशों में रहने वाले अपने-अपने स्थान पर इस पर्व को धूम धाम से मनाते हैं।
छठ माता का एक लोकप्रिय गीत है:-
केरवा जे फरेला गवद से ओह पर सुगा मंडराय
उ जे खबरी जनइबो आदिक से सुगा देले जुठियाए
उजे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरझाय
उजे सुगनी जे रोबे ले वियोग से आदित होई ना सहाय
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