'कामना' कविता का सारांश हरिवंश राय बच्चन Kamna by Harivansh Rai Bachchan
'कामना'
जहाँ स्वतंत्र विचार न बदले मन में मुख में।
जहाँ न बाधक बनें सबल निबलों के सुख में।सब को जहाँ समान निजोन्नति का अवसर हो।
शांतिदायिनी निशा हर्ष सूचक वासर हो।
सब भाँति सुशासित हों जहाँ
समता के सुखकर नियम।
बस, उसी स्वतंत्र स्वदेश में
बस, उसी स्वतंत्र स्वदेश में
जागें हे जगदीश! हम॥
'कामना' कविता का सारांश Kamna by Harivansh Rai Bachchan
कवि हरिवंश राय 'बच्चन' ने प्रस्तुत कविता में प्रतिकुलता के बीच अनुकूलता, दुःख के बीच सुख, निराशा के बीच आशा, कुरुपता के बीच सुंदरता की अनुभूति की है। कवि ने कहा है कि जब पतझड़ आता है तब कोयल करुणा ममतामय स्वर में गाता है, समस्त वसुंधरा दीर्घ दिवस से पीड़ित हो जाती है, चिलचिलाती धूप से त्रस्त हो जाती है तब बादलों के शीतल बूंद बरसकर उसकी प्यास को दूर कर देती है, जब प्रलयांधकार से यह युग घिर जाता है तब मृत्यु की गोद में भी चेतना की प्रतिभा राग भाव से प्रेरित होकर मुझे चैतन्य बना डाले ऐसे सपने देखेने की कामाना करता हूँ।
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Poem