टूटने का सुख कविता का सारांश भावनी प्रसाद मिश्र Tutane Ka Sukh By Bhawani Prasad Mishr

टूटने का सुख कविता का सारांश भावनी प्रसाद मिश्र Tutane Ka Sukh By Bhawani Prasad Mishr

टूटने का सुख कविता का सारांश भावनी प्रसाद मिश्र

टूटने का सुख कविता का सारांश भावनी प्रसाद मिश्र

*कविता*
बहुत प्यारे बन्धनों को आज झटका लग रहा है,
टूट जायेंगे कि मुझ को आज खटका लग रहा है,
आज आशाएं कभी भी चूर होने जा रही हैं,
और कलियाँ बिन खिले कुछ चूर होने जा रही हैं ,
बिना इच्छा, मन बिना,
आज हर बंधन बिना,
इस दिशा से उस दिशा तक छूटने का सुख!
टूटने का सुख|
शरद का बादल कि जैसे उड़ चले रसहीन कोई,
किसी को आशा नहीं जिससे कि सो यशहीन कोई,
नील नभ में सिर्फ उड़ कर बिखर जाना भाग जिसका,
अस्त होने के क्षणों में है कि हाय सुहाग जिस का,
बिना पानी, बिना वाणी,
है विरस जिसकी कहानी,
सूर्य कर से किन्तु किस्मत फूटने का सुख!
टूटने का सुख |
फूल श्लथ -बंधन हुआ, पीला पड़ा, टपका कि टूटा,
तीर चढ़ कर चाप पर, सीधा हुआ खिंच कर कि छूटा,
ये किसी निश्चित नियम, क्रम कि सरासर सीढियाँ हैं,
पाँव रख कर बढ़ रही जिस पर कि अपनी पीढियाँ हैं
बिना सीधी के बढ़ेंगे तीर के जैसे बढ़ेंगे,
इसलिए इन सीढियों के फूटने का सुख!
टूटने का सुख। 

टूटने का सुख कविता का सारांश भावनी प्रसाद मिश्र Tutane Ka Sukh By Bhawani Prasad Mishr

टूटने का सुख कविता का सारांश
प्रस्तुत कविता के रचनाकार भावनी प्रसाद मिश्र हैं। इस कविता में उन्होंने अत्याधिक आशावादी बनकर टूटने में भी सुख प्राप्त करते हैं। कवि ने कहा है कि टूटना और भी जुटना प्रकृति का नित्य नियम है। इसलिए प्रकृति परिवर्तनशील है। सारी सृष्टि अपना स्वरूप निरंतर बदली रहती है। अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति के जीवन में आशा-निराश, दुख:-सुख, और सम्पन्ता-विपन्नता निरंतर क्रमागत रूप से आते रहते हैं। इसलिए प्रकृति को थोड़ा झांककर हम देखें तो टूटने में भी सुख: प्राप्त होगा। जो व्यक्ति सृष्टि के रहस्यों से अवगत नहीं हैं वे टूटने में आस्था नहीं रखते। वे टूटकर बिखर जाते हैं जिस प्रकार मिट्ठी का ढ़ेला टूटकर आकारहीन हो जाता है। 

सागर का जलवाष्प बनकर सागर से तल से दूर आकाश मंडल पर छा जाता है, पुन: बरस कर सागर में सजीवता प्रदान करता है। सारी धरती में उर्वरा शक्ति प्रदान करता है, इसलिए सागर से टूटने से कहाँ विवाद उत्पन्न होता है। उसी प्रकार फूल खिलता है और मुरझाया गिर जाता है। उसके बीज नये अंकुरण को पुन: प्रदानकर नवीन पौधा उत्पन्न करता है। अत: परिवर्तन का नित्य नियम हमारे सुख को प्रदान करने के निमित घटित होता है। टूटने में हमें निराश नहीं पालना चाहिए, अपितु नवीनता और सजीवता का सुअवसर बनकर हमारे जीवन के लिए प्रेरक बनते हैं। वह कविता आशावादी विचारों को प्रदान कर सबल और उत्साही बनाने की प्रेरणा देती है। कवि ने जीवन्तता प्रदान की है। 

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