आनेवाला खतरा कविता का सारांश रघुवीर सहाय
*कविता*
इस लज्जित और पराजित युग में
कहीं से ले आओ वह दिमाग़जो खुशामद आदतन नहीं करता
कहीं से ले आओ निर्धनता
जो अपने बदले में कुछ नहीं माँगती
और उसे एक बार आँख से आँख मिलाने दो
जल्दी कर डालो कि पहलने-फूलनेवाले हैं लोग
औरतें पिएँगी आदमी खाएँगे–रमेश
एक दिन इसी तरह आएगा–रमेश
कि किसी की कोई राय न रह जाएगी–रमेश
क्रोध होगा पर विरोध न होगा
अर्जियों के सिवाय–रमेश
ख़तरा होगा ख़तरे की घण्टी होगी
और उसे बादशाह बजाएगा–रमेश
आनेवाला खतरा कविता का सारांश
प्रस्तुत कविता में कवि में वर्तमान युग के भ्रष्ट विचारों की व्यजना की है, जिससे समाज दूषित हो चुका है। आम व्यक्ति अपनी नैतिकता को भूल चुका है, फलस्वरूप समाज अवनति की ओर जा रहा है। अत: कविता का मूल भाव हमारी सामाजिक गिरावट का घृणित अवस्था की अभिव्यक्त है। कवि ने इन अवस्थाओं की चर्चा करता है। इस कविता में युग में जीवन के समस्याओं का संक्षेपित वर्णन किया गया है। कवि उम्मीद करते हैं कि लोग समस्याओं का सामना करते समय सम्मान और सहानुभूति रखें और एक-दूसरे के साथ मिलजुलकर समस्याओं का सामना करें। इसके जरिए, समृद्धि और समानता के साथ जीवन का सुखी अनुभव संभव होगा।
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