डाल पर के मुरझाये फूल : सुभद्रा कुमारी चौहान Daal Par Ke murzaye Phool by subhadra kumari chauhan

डाल पर के मुरझाये फूल : सुभद्रा कुमारी चौहान Daal Par Ke murzaye Phool by subhadra kumari chauhan

Daal Par Ke murzaye Phool by subhadra kumari chauhan

डाल पर के मुरझाये फूल : सुभद्रा कुमारी चौहान Daal Par Ke murzaye Phool by subhadra kumari chauhan

डाल पर के मुरझाए फूल!
हृदय में मत कर वृथा गुमान.
नहीं है सुमन कुंज में अभी
इसी से है तेरा सम्मान.

मधुप जो करते अनुनय विनय
बने तेरे चरणों के दास.
नई कलियों को खिलती देख
नहीं आवेंगे तेरे पास.

सहेगा कैसे वह अपमान?
उठेगी वृथा हृदय में शूल.
भुलावा है, मत करना गर्व
डाल पर के मुरझाए फूल.

डाल पर के मुरझाये फूल कविता का सारांश:-

कावयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान मुरझाये हुये फूल के प्रति सहानुभूति और प्रेम दर्शाती हैं। मुरझाया हुआ फूल जीवन के अंतिम घड़ियों में श्वाँस लेता हुआ एक प्राणी है जिसे किसी प्रकार की प्रताड़ना देना उचित नहीं है, क्योंकि वह स्वयं कुछ ही पल में अपने अस्तित्व को मिट्टी में मिला देने की स्थिति में हैं। 

कावयित्री ने मानवीय धरातल पर एक करूणामयी भावनाओं से प्रेरित होकर फल के माध्यम से समस्त वैसे प्राणियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार देने के लिए प्रेरित करती है जो अपनी जीवन के अंतिम क्षणों में जी रहा है। समाज के वैसे प्राणियों के प्रति मानवीय भावनाओं को दर्शने को लिए वह भावुक हो उठती है। अन्य सामाजिकों को भी अपनी इस भावना से प्रेरित करने हेतु प्रेरणा प्रदान कर रही। यह छन्द मानवीय भावनाओं से ओत-प्रोत है। 

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