दहेज प्रथा पर हिंदी में निबंध Dowry System Essay in Hindi
दहेज प्रथा पर हिंदी में निबंध Dowry System Essay in Hindi
प्रस्तावना-
शाप और अभिशाप दोनों समानार्थक होते हुए भी अपने में थोड़ा अंतर छिपाए हुए हैं। शाप वस्तु विशेष, समय विशेष और हानि विशेष के लिए होता है जब कि अभिशाप जीवन में, जीवन भर, गेहूं के घुन की भाँति लगा रहता है। विधि की विडम्बना है कि एक ही वृक्ष पर लगे दो पुष्पों में से एक को, जो अधिक सुरभित और सुरम्य होता है, उसे अभिशाप समझ लिया जाता है और दूसरों को कष्टमय होते हुए भी वरदान। एक के जन्म से घर पर मौत की छाया और माता-पिता के मुख पर मलीनता की छाया, मामा-मामियों के मन पर उदासीनता की काली घटा मँडराने लगती है और दूसरे के जन्म से तवे, ढोलक और नफीरी बजने लगती है। अजीब और आश्चर्यजनक वैषम्य है दो जीवात्माओं के जन्म ग्रहण करने में। विभेद और विषमता भरे ये दानों त्वत हैं—कन्या और पुत्र।
माँ की जिस कोख (कुक्षि) में पुत्र जन्म लेता है उसी कोख में से पुत्री जन्म लेती है। पर माँ स्वयं भी पुत्री के जन्म से दुखी हो उठती है।
कन्या को कष्टप्रद अनुभव करने के मनोवैज्ञानिक कारण-
जन्म से ही माँ लड़की को 'पराया धन' कहना प्रारम्भ कर देती है। उसके लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा आदि सभी क्षेत्रों में दृष्टि रखी जाती है। कन्या दबी और सहमी अनुभव करती है जबकि पुत्र उभरा और उछला हुआ। परिवार में कन्या के जन्म से ही इन उमड़ते-घुमड़ते बादलों के तीन कारण हैं—(1)पराया धन होने के कारण कन्या के भावी सुखमय जीवन की चिंतापूर्ण कल्पनाएँ, (2)दहेज, (3)मानव की स्वार्थी मनोवृति।
प्रथम कारण-
प्रथम कारण के विषय में तो महाकवि कालिदास ही 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' में बोल उठे हैं और लिख दिया कि कन्या का पिता होना ही कष्टकारक होता हैं।
दूसरा कारण-
दूसरा कारण है दहेज, जिसमे माता-पिता समाज में अपनी मान प्रतिष्ठा को बचाने के लिए तथा अपनी लकड़ी को सास-ननद एवं देवनारी-जिठानी के ताहिनों से बचाने के लिए अपना सर्वस्व झौंक देते हैं।
तीसरा कारण-
तीसरा कारण है मानव की स्वार्थी मनोवृत्ति, माता-पिता जन्म से कन्या को 'पराया धन' समझकर अर्थात इसे तो दूसरे के घर जाना है यह विचार करते हुए उसके साथ अपेक्षा पूर्ण व्यवहार करते हैं और पुत्र को 'बुढ़ापे का सहारा' समझकर जन्म से ही मान-सम्मान और लाड़ प्यार देना प्रारम्भ कर देते हैं। माता-पिता ये समझते हैं कि लड़का तो जीवन भर हमें कमा कर खिलायेगा, हमारे दु:ख के क्षणों का सहारा होगा और इससे हमारे वंश का नाम चलेगा। चाहे भले ही पुत्र इन भावनाओं के नितान्त प्रतिकूल निकले, पर फिर भी वह माता-पिता का स्नेह भाजन होता है यह सोचकर कि मरने के बाद मरघट तक तो पहुँच ही देगा।
दहेज प्रथा का प्रारम्भ एवम् प्राचीन स्वरूप—Dowry System Essay in Hindi
महात्मा गाँधी भारत की राजनैतिक स्वतन्त्रता के साथ-साथ देश की आर्थिक नैतिक और सामाजिक स्वतन्त्रता के भी पक्षपाती थे। गाँधी जी अपने जीवन काल में दैनिक प्रार्थना सभाओं और सामाजिक सभाओं में समय-समय पर देश की कुप्रभाओं की और संकेत करते और जनता से उन्हें त्याग देने का संकल्प कराते। दहेज प्रथा की क्रूरता और भयावहता से क्षुब्ध होकर सन् 1629 में गाँधी जी ने कहा था—
"दहेज की पातकी प्रथा के खिलाफ जबर्दस्त लोकमत बनाया जाना चाहिए और जो नवयुवक इस प्रकार गलत ढंग से लिए गए धन से अपने हाथों को अपवित्र करें उन्हें जाति से बहिष्कार कर देना चाहिए।•••••••••इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि यह हृदय बुराई है।"
राजा राम मोहन राय ने जिस प्रकार सती प्रथा को बन्द कराया था उसी प्रकार राष्ट्रीय चेतना के अभ्युदय के साथ-साथ सामाजिक चेतना एवं जाग्रति के लिए भी राष्ट्र नेताओं ने जन-जागरण प्रारम्भ किया। उधर आर्य-समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द आदि समाज सुधारकों ने भी इस राष्ट्रीय कलेंक की ओर जनता का ध्यान आकृष्ट किया। पं० नेहरू ने भी इस दहेज-दानव के विनाश के लिए जनता उद्बोधन प्रदान किया। परंतु अन्य महान् और विकराल समस्याओं के समक्ष इस समस्या ने गौण रूप धारण कर लिया।
वर्ग वैष्मय के साथ-साथ यह महान् रोग समाज में बढ़ता गया। केंद्रीय सरकार ने पं० नेहरू के प्रधानमन्त्रित्व काल में सन् 1661 में दहेज निरोधक अधिनियम बनाया गया, परंतु जनता के पूर्ण सहयोग के अभाव में यह कानून केवल कानून की पुस्तक तक ही सीमित रहा। इस अधिनियम की मुख्य-मुख्य धाराएँ निम्नवत् है—
(1)दहेज केवल उस धन राशि को माना जाएगा जिसे वर-पक्ष के लोग विवाह के समय किसी शर्तनामे के आधार पर निर्धारित करते हैं। इसके अन्तर्गत वह धन तथा वस्तुएँ शामिल नहीं है जिन्हें कन्या का पिता स्वेच्छा से देता है।
(2)इस अधिनियम के अन्तर्गत दहेज लेना अथवा देना या दहेज के लेन-देन में सहायता देना अपराध घोषित कर दिया गया। प्रत्येक अपराधी को 5001 रु० तक जुर्माना और 6 माह की कैद हो सकती है।
(3)कन्या के माता-पिता से प्रत्यक्ष रूप में भी दहेज माँगना अपराध है। ऐसे अपराधी को उत्क दण्ड की व्यवस्था है।
(4)अधिनियम की धारा 6 स्पष्ट रूप से लिख दिया गया है कि दहेज से प्राप्त होने वाली धनराशि पर कन्या का अधिकार होगा। यदि किसी प्रकार का दहेज परिवार के अन्य किसी सदस्य ने स्वीकार कर लिया है तो उसे एक वर्ष के अंदर वह धन कन्या को वापस करना होगा।आदि••••••••।
समस्त राज्य सरकारों ने 1661 के दहेज विरोधी कानून में संशोधन करके नए अध्यादेश जारी किए हैं। पंजाब, बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश आदि सभी राज्य सरकारों ने विवाह के व्यव का एक निश्चित मापदंड निर्धारित किया है। दहेज स्वरूप धनराशि अथवा उपहारों के रूप में 3000 से 5000 रु० तक निश्चित किए हैं। अनावश्यक साज सज्जा के खर्च में कमी लाने के लिए जनता को दिन में विवाह करने की सलाह दी गई है।
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