मुहर्रम पर निबंध Muharram par Nibandh Muharram Essay in Hindi

मुहर्रम पर निबंध Muharram par Nibandh Muharram Essay in Hindi


मुहर्रम पर निबंध Muharram par Nibandh Muharram Essay in Hindi

मुहर्रम एक महत्वपूर्ण इस्लामी धार्मिक त्योहार है जो मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा विशेष भक्ति और श्रद्धा से मनाया जाता है। यह त्योहार इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम में आता है, जो इस्लामी नया साल की शुरुआत के तौर पर भी जाना जाता है। मुहर्रम का अर्थ "विशेष मान्यतावादी विधि" होता है। यह अवसर मानवता, भाईचारा और सदभाव के मूल्यों को समझाता है।

मुहर्रम का पर्व कुरान में विशेष महत्व रखता है, जिसमें हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत के बारे में वर्णन है। मुहर्रम के दसवें दिन, यानी अशुरा के दिन, हुसैन इब्न अली के साथ उनके साथियों की शहादत की याद में लोग आपसी भाईचारे और सद्भाव का संदेश देते हैं। यह दिन इस्लामी कैलेंडर के सबसे पवित्र और दुखद दिनों में से एक माना जाता है।

मुहर्रम के दौरान, लोग मातम करते हैं और ताजियाँ निकालते हैं, जिन्हें लोग अपनी श्रद्धा और आदर के साथ लेकर भव्य जुलूसों के माध्यम से निकालते हैं। यह जुलूस शहर के अलग-अलग हिस्सों में आयोजित होते हैं और लाखों लोग इसमें भाग लेते हैं।

मुहर्रम पर्व एक मानवीय संदेश भी देता है कि अधर्म, न्यायहीनता और निर्ममता का सामना करने के लिए लड़ना सही है। हुसैन इब्न अली की शहादत के माध्यम से लोगों को यह सिखाया जाता है कि सत्य, न्याय और सच्चे मूल्यों के लिए अपने जीवन का बलिदान करना महत्वपूर्ण है।

इस प्रकार, मुहर्रम एक धार्मिक, सांस्कृतिक, और मानवीय उत्सव है जो सद्भाव, एकता, और आपसी समझ का संदेश देता है। यह एक ऐसा मौका है जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोग एक-दूसरे के साथ भाईचारे और सद्भाव के आदर्शों को याद करते हैं।

मुहर्रम पर निबंध Muharram par Nibandh Muharram Essay in Hindi

मुहर्रम क्या है:
मुहर्रम एक महत्वपूर्ण इस्लामी त्योहार है जो मुस्लिम समुदाय के द्वारा पूरे दुनिया में मनाया जाता है। इस त्योहार को इस्लामी वर्ष के पहले महीने, मुहर्रम में, मनाया जाता है। मुहर्रम का विशेष महत्व है, खासतौर से शीया मुस्लिम समुदाय में, क्योंकि इसमें हुसैन इब्न अली (Hazrat Imam Hussain), प्रोफ़ेट मोहम्मद के नाती और ईस्लाम के चौथे खलीफ़ा अली इब्न अबी तालिब के पोते थे, के शहादत की याद की जाती है।

मुहर्रम का पहला दिन ईस्लामी कैलेंडर के पहले महीने को चाँद देखकर तय किया जाता है और यह इस्लामी नए साल का दिन भी होता है। मुहर्रम के पांचवे और दसवें दिन को अशुरा कहा जाता है, जिसमें हुसैन इब्न अली के और उनके साथियों के शहादत का यादगार माहौल बनाने के लिए ताज़ा बाज़ारें और मेले लगाए जाते हैं।

शीया मुस्लिम समुदाय में, इस दिन को महात्मा हुसैन के शहीद होने की याद में रोज़े के साथ मनाया जाता है, जिसमें वे खाना खाने और पानी पीने से रोकते हैं और आपसी मोहब्बत और सदभावना का संदेश देने का प्रयास करते हैं। यह दिन भाईचारे, तोल-मोल और खैर-ख्वाहिश की भावना से गुजरता है।

इस्लामी तथा शीया मुस्लिम समुदाय के लोग इस त्योहार को विभिन्न रूपों में मनाते हैं, और विशेष भक्ति अनुष्ठान और मातम के द्वारा हुसैन इब्न अली की याद करते हैं। यह एक धार्मिक त्योहार होने के साथ-साथ इंसानियत और सद्भावना के मूल्यों को प्रोत्साहित करने का अवसर भी होता है।

मुहर्रम का इतिहास:
मुहर्रम, इस्लामी धर्म के एक महत्वपूर्ण त्योहार का नाम है जो इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने, यानी वारषिक इस्लामी व्रत कैलेंडर के मुताबिक, मुहर्रम महीने के पहले दस दिनों तक मनाया जाता है। मुहर्रम का त्योहार इस्लामी दरबारों और दरगाहों में खास रूप से मनाया जाता है जैसे कि ईराक़ में नज़रीया, ईरान में कर्बला, इंडिया में लखनऊ आदि।

मुहर्रम का इतिहास गौरी वंश के सल्तनत शासक यज्ञसेन के पुत्र शहजहाँ के वक्त हुआ था। 17वीं सदी में यह त्योहार प्रायः मुस्लिम समुदाय में ही मनाया जाता था।

मुहर्रम के पहले दस दिनों को "आशूरा" कहा जाता है और यह दस्तूर नववां इमाम मौला हुसैन के शहादत दिवस को याद करने के लिए है। मुहर्रम के आखिरी दिन यानी दसवां दिन "आशूरा" होता है, जिसे खास आंगन जैसे जगहों पर मनाया जाता है।

इतिहास के अनुसार, हजरत हुसैन एवं हजरत इमाम हसन कुरैशी वंश के दूसरे इमाम अली एवं हज़रत बीबी फातिमा के बेटे थे, जो इमाम हुसैन की तृतीय पत्नी थीं। हज़रत हुसैन का शहीदी दिवस "आशूरा" के रूप में जाना जाता है, जो इस्लामी इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण इवेंट में से एक माना जाता है। इस दिन पर, हज़रत हुसैन के चारों तरफ अनगिनत मुस्लिम भक्त उनकी याद में मातम करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

मुहर्रम के इस त्योहार के दौरान, मुस्लिम समुदाय विभिन्न रिती-रिवाज़, नुस्खे, और मार्गदर्शन के तहत एक-दूसरे के साथ मिलते हैं और यह एक एकजुटता का संकेत है। इसके अलावा, खास भोजन बनाना, दरबारी ज़नाज़े और रात को जुलूस निकालना इस त्योहार के महत्वपूर्ण रूप हैं। मुहर्रम के इस पावन अवसर पर, मुस्लिम समुदाय के सदस्य अपने संबंधियों के साथ प्रेम और समर्थन का संकेत भेजते हैं।

मुहर्रम पर निबंध Muharram par Nibandh Muharram Essay in Hindi

मुहर्रम का महत्व:
मुहर्रम इस्लामी धर्म के एक महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहारों में से एक है। यह त्योहार हिजरी कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम में मनाया जाता है और इसे इस्लामी समुदाय में गहरे श्रद्धा और सम्मान के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। मुहर्रम के महत्व के कुछ मुख्य पहलू हैं:

1.हुसैन इब्न अली की शहादत: मुहर्रम का मुख्य उद्देश्य इमाम हुसैन इब्न अली की शहादत को याद करना है। हुसैन इब्न अली, पैगंबर मुहम्मद के नाती और एल्यास के छोटे बेटे थे। वे कर्बला के युद्ध के दौरान अख़्बरी हथियारों के साथ लड़ने के लिए निकले थे और युद्ध के मैदान में शहीद हो गए थे। उनकी शहादत को इस्लामी समुदाय में विशेष रूप से शीया मुस्लिम समुदाय में बड़ा महत्व है और मुहर्रम उन्हें समर्पित होता है।

2.सज़ा और तौबा का समय: इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने में मुहर्रम आने से पहले, मुस्लिम समुदाय भगवान के सामने अपने गुनाहों की माफ़ी और तौबा के लिए तैयार होते हैं। वे इस अवसर को विशेष रूप से एक सज़ा और तौबा का समय मानते हैं, जिसमें वे अपने गलत कामों से बचने का प्रयास करते हैं।

3.रोज़ा: मुहर्रम के दसवें दिन अशूरा को रोज़ा रखना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। रोज़ा, यानी उपवास, मुस्लिम समुदाय में पाक, संयमी और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। इस दिन रोज़ा रखने से विशेष शुभकामनाएं और आशीर्वाद प्राप्त होने की मान्यता है।

4.ताज़िया प्रवेश: मुहर्रम के दसवें दिन, जिसे अशूरा कहते हैं, ताज़िया प्रवेश का आयोजन किया जाता है। ताज़िया प्रवेश एक प्रकार का परेड है जिसमें हुसैन इब्न अली की शहादत की याद में मुस्लिम समुदाय भाग लेता है। यह भावनात्मक और धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें भाग लेने से लोग मुहर्रम के महत्व को समझते हैं और हुसैन इब्न अली की बलिदानी शहादत को याद करते हैं।

ताज़िया क्या हैं:
ताज़िया एक प्रकार का धार्मिक प्रतीक है जो मुहर्रम त्योहार के दौरान मुस्लिम समुदाय में आयोजित किया जाता है। यह ताज़िया आयोजन, हुसैन इब्न अली और उनके छोटे बेटे अली अस्गर की शहादत की याद में होता है। हुसैन इब्न अली के कर्बला के युद्ध में शहीद होने के बाद उनके छोटे बेटे अली अस्गर भी बड़े संख्या में समर्थकों के साथ शहीद हो गए थे।

ताज़िया के रूप में एक नक्काशीदार और सजावटी असर होता है, जिसमें एक छोटी जुलूस या बाराती भी शामिल होती है। यह ताज़िया प्रवेश, अशूरा के दिन यानी मुहर्रम के दसवें दिन, आयोजित किया जाता है। ताज़िया भव्यता से सजाता है और उसमें अच्छी तरह से अलंकृत जंगह और अस्थायी मस्जिद भी होते हैं।

ताज़िया प्रवेश में विभिन्न समारोह और धार्मिक आयोजन होते हैं, जिनमें लोग दुख भावनाएं व्यक्त करते हैं और हुसैन इब्न अली और अली अस्गर की शहादत को याद करते हैं। इसमें लोग बैरगणी, अफसोस, और शोक भावनाएं व्यक्त करते हैं और इमाम हुसैन के वीरगाथाएं सुनाई जाती हैं।

ताज़िया प्रवेश का आयोजन विभिन्न इस्लामी देशों में विशेष धूमधाम से किया जाता है, जिसमें लोग समुदायिक रूप से भाग लेते हैं और हुसैन इब्न अली और अली अस्गर की शहादत की याद में श्रद्धा और सम्मान दिखाते हैं। यह एक प्रकार का धार्मिक समारोह होता है जो इस्लामी समुदाय में मुहर्रम त्योहार को गहरे भाव से जीवंत करता है।

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