जल्द-जल्द पैर बढ़ाओं, आओ, आओ कविता का सारांश सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

जल्द-जल्द पैर बढ़ाओं, आओ, आओ कविता का सारांश सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 

जल्द-जल्द पैर बढ़ाओं, आओ, आओ

जल्द-जल्द पैर बढ़ाओं, आओ, आओ कविता का सारांश सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 

कविता
जल्द-जल्द पैर बढ़ाओं, आओ, आओ 
आज अमीरों की हवेली 
किसानों की होगी पाठशाला, 
धोबी, पासी, चमार, तेली
खोलेंगे अंधेरे का ताला, 
एक पाठ पढ़ेंगे, टाट बिछाओ
यहाँ जहाँ सेठ जी बैठे थे
बनिये की आँख दिखाते हुए, 
उनके ऐंठाये ऐंठे थे। 
धोखे पर धोखा खाते हुए, 
बैंक किसानों का खुलवाओ। 
सारी संपति देश की हो, 
सारी आपत्ति देश की बने, 
जनता जातीय वेश की हो, 
वाद से विवाद यह ठने, 
कांटा काँटे से कढ़ाओ। 

जल्द-जल्द पैर बढ़ाओं, आओ, आओ कविता का सारांश सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 

प्रस्तुत कविता निराला द्वारा रचित है। कवि मार्क्सवादी विचारधा से प्रेरित होकर एक स्वस्थ समाज की कल्पना करता है। सदियों से यह देश शोषकों के अधिन होकर शोषित होता रहा है। हमारे समाज में दो वर्गों की व्यस्था बनी रही-शोषक और शामिल। कवि पूँजी वर्गों पर प्रहार करते हुये सम्पति का सरकारीकरण के पक्ष में अपना विचार प्रकट करता है। जातिवाद, धर्म और अर्थवाद के सिध्दांतों के प्रति उसकी आस्था नहीं है। एक मात्र सम्पति का निजीकरण ही समाज को दूषित करता है। कवि इस सामाजिक रोग को ध्वस्त करने के लिए कटिबध्द है। सेठ-साहुकारों की वर्चस्वता हमारे समाज को जर्जर बना रखी है। कवि को ऐसी आशा है कि उनकी आलिशन हवेली पाठशाला में परिणत होगी। किसानों की महत्ता बढ़ेगी तथा धोबी, पासी, चमार और तेली का भेद मिट जायेगी। इन उपेक्षित जातियों द्वारा ही अंधकार का ताला खोला जाएगा। उनकी जागृत्ति से मानवीय भावनाओं का परिष्कार होगा। देश की सारी सम्पति देश की ही बनी रहेगी। 

कवि के हृदय में एक आशा का दीप प्रज्ज्वलित हो रहा है कि आर्थिक न्याय से समाज में एक स्वस्थ विचारधारा व्याप्त होगी। मानव अधिकार के पक्ष में सामाजिक-न्याय युक्ति संगत सिध्द होगा। इसलिए कवि कहता है कि वह दिन आयेगा जब कि यह समाज अपने अन्याय संगत कर्मों के प्रति विरोधी-भाव की अभिव्यक्ति प्रदान करेगी। 

कवि के कथन में एक सच्चाई प्रकट होती है जो वर्तमान युग में सिध्द हो रहा है। हमारे समाज में पूँजीवादी वर्ग के लोगों ने जैसी अराजकता उत्पादन कर दी है उसका समापन निश्चित है। मानवीय भावनाओं का उत्कर्ष होना निश्चित है। न्याय और धर्म का उचित आकलन करना पड़ेगी। वही हमारा पथ-प्रदर्शक बना रहेगा। 

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