कमल का फूल कविता का सारांश भवानी प्रसाद मिश्र kamal ka phool by Bhawani Prasad Mishr

कमल का फूल कविता का सारांश भवानी प्रसाद मिश्र 

कमल का फूल कविता का सारांश भवानी प्रसाद मिश्र

kamal ka phool by Bhawani Prasad Mishr

कविता
फूल लाया हूँ कमल के।
क्या करूँ' इनका,
पसारें आप आँचल,
छोड़ दूँ;
हो जाए जी हल्का!
किन्तु होगा क्या
कमल के फूल का?

कुछ नहीं होता
किसी की भूल का-
मेरी कि तेरी हो-
ये कमल के फूल केवल भूल हैं-
भूल से आँचल भरूँ ना
गोद में इनका सम्भाले
मैं वजन इनके मरूँ ना!

ये कमल के फूल
लेकिन मानसर के हैं,
इन्हें हूँ बीच से लाया,
न समझो तीर पर के हैं।
भूल भी यदि है
अछती भूल है!
मानसर वाले
कमल के फूल हैं।

कमल का फूल कविता का सारांश भवानी प्रसाद मिश्र 

प्रस्तुत कविता 'कलम के फूल' शीर्षक कविता में कवि ने कमल को भूल का प्रतिक माना है। दूसरी ओर उसकी अंतरात्मा से यह आवाज प्रतिध्वनित होती है कि ये कमल के फूल एक वजन है जिसकी ढ़ोना कष्टदायक है। कवि कहता है कि ये फूल मानस के बीच से लाया गया है। वह पवित्र है, श्रद्धा के प्रतिक है और सात्विक चेतना का भी। यदि उसे भूल माना जाय तो यह अछूती है। अर्थात् किसी ने उसे स्पर्स नहीं किया है। अत: वह स्वीकार करने योग्य है। 

कवि माँ से कहता है कि तुम अपना आँचल पसारो और कमल के फूल से इसे भर लो। हमारी हार्दिक कामना है कि मेरी श्रद्धा के फूल तुम स्वीकार कर लो। कमल का फूल आध्यात्मिक चेतना का प्रतिक है। इस फूल को किसी माँ के आँचल में भरने के पीछे सात्विक चेतना की याचना है। कवि को यह एहसास होता है कि वह अपनी भूलों के लिए क्षमा-याचना के हेतु इन फूलों को अर्पित कर रहा है, परंतु उसकी अन्तरात्मा से आवाज आती है-ये फूल मानसरोवर के बीच से लाये गये हैं। अत: इसे भूलों के लिए नहीं माना जाये। 

कवि कहता है कि किसी नदी के तीर से ये फूल नहीं लाये पाये हैं। देव सरोवर से फूल लाना सहज नहीं है अपितु उसके लिए साहस द्वारा लाया गया जहाँ क्प्टों को झेलना स्वाभाविक है। दुर्गम मार्गो को पार करने के पश्चात् ये फूल प्राप्त होते हैं। फूलों में सर्वश्रेष्ट कमल देवताओं के लिए प्रिय होता है। आदिशक्ति के लिए भी ये फूल, ग्रहण करने योग्य हैं। चेतना के विकास अर्थात ज्ञान के फूल पुष्पित होकर ही वन के स्वरूप को ऊँचे धरातल पर स्थापित करें। इसी उद्देश्य से कमल के फूल अर्पित किये जाते हैं। कवि ने माँ सरस्वती के प्रति अपनी आकांक्षा अर्पित की है। कवि की आकांक्षा के लिए 'कमल' प्रतिक रूप में प्रयुक्त हुआ है। 

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