कजरी तीज पर निबंध Kajari Teej Par Nibandh Kajari Teej Essay in Hindi
कजरी तीज भारतीय उत्सवों में से एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो विशेष रूप से उत्तर भारतीय राज्यों में मनाया जाता है। यह त्योहार श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जो नारियल पूजन भी कहलाता है।
इस त्योहार में महिलाएं सुबह से ही व्रत रखती हैं और विशेष ध्यान देती हैं कि उनके पति और परिवार की सुरक्षा एवं समृद्धि के लिए प्रार्थना करें। वे गंगा घाट जाकर स्नान करती हैं और पर्वती माँ की पूजा अर्चना करती हैं।
इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है और उनके विवाह की कथा और महत्व का विशेष विचार किया जाता है। महिलाएं लाल चूड़ा, सिंदूर, और मेहँदी से सज कर त्योहार को खासा बनाती हैं।
कजरी तीज के दिन महिलाएं भजन गाती हैं और विशेष भोजन बनाती हैं। खासकर गहूं के आटे से बनी मीठी खीर (कजरी) तीज का प्रमुख प्रसाद है, जिसे सभी बांधुओं और मित्रों के साथ साझा किया जाता है।
इस त्योहार के माध्यम से महिलाएं अपने परिवार के सुख-दुखों में साझा करती हैं और समृद्धि और सम्पन्नता की कामना करती हैं। यह एक परंपरागत भारतीय त्योहार है, जो समृद्ध संस्कृति और परिवारिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करता है।
कजरी तीज का महत्व:
कजरी तीज भारतीय हिंदू महिलाओं के लिए एक प्रमुख व्रत त्योहार है जो भादों मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह त्योहार माता पार्वती की करुणा एवं पतिव्रता के प्रतीक रूप में माना जाता है। मुख्य रूप से उत्तर भारतीय राज्यों में यह त्योहार बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। कजरी तीज को महिलाएं अपने पति के लंबे और सुखी जीवन की कामना के साथ व्रत रखती हैं और धार्मिक अनुष्ठान, गीत और नृत्य से इसे खास बनाती हैं।
कजरी तीज व्रत कथा:
कजरी तीज व्रत कथा हिंदू धर्म में एक महिला व्रत है, जिसका पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य सुख सुखी पतियों के लिए दीर्घायु और सुंदर संतान की प्राप्ति होती है।
कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक साध्वी थी जिसका नाम कजरी था। उन्हें भगवान शिव का व्रत विशेष रूप से पसंद था। विशेष रूप से, भाद्रपद मास की तृतीया तिथि को व्रत करते हुए वह विशेष उत्साह से उनका आदर्श पाने की कोशिश करती थी।भाद्रपद महीने की कजरी तीज आई। ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत रखा। ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से कहा आज मेरा तीज माता का व्रत है। कही से चने का सातु लेकर आओ।ब्राह्मण की आर्थिक स्थित ठीक न होने के कारण उसने ब्राह्मणी से बोला, चने का सत्तू कहां से लाऊं। तो ब्राह्मणी ने कहा में कुछ नहीं जानती आज मेरा व्रत हैं और मुझे चने का सत्तू चाहिए तुम चोरी करो चाहे डाका डालो। लेकिन मेरे लिए सातु लेकर आओ।
चोरी की बात सुन कर ब्राह्मण रात के समय में घर से निकल पड़ता है और साहूकार की दुकान में घुस जाता है।ब्राह्मण वहां पर चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर सातु बना लिया और अपने घर की जाने लगता है इतने में आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग जाते है। और चोर-चोर चिल्लाने लगते हैं। तभी साहूकार आकर ब्राह्मण को पकड़ लेता हैं। ब्राह्मण बोला मैं चोर नहीं हूँ। मैं तो केवल एक गरीब ब्राह्मण हूँ। मेरी पत्नी ने आज तीज माता का व्रत रखा है। इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सातु बना कर ले जा रहा था।साहूकार का मन नही माना तो उसने ब्राह्मण की तलाशी ली।उसके पास सातु के अलावा कुछ नहीं मिला।तब साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा।चांद निकल आया था उधर ब्राह्मणी ब्राह्मण का इंतजार कर रही थी। साहूकार ने ब्राह्मण को सातु, के अलावे और बहुत सारी चीजे दे कर साहूकार ने ब्राह्मण को ठाठ से विदा किया। इस तरह से ब्राह्मणी की कजरी तीज पूजा संपन हुई।
कजरी तीज के दिन, ब्राह्मणी ने विशेष ध्यान देकर भगवान शिव की पूजा की और उनका व्रत विधिवत उपार्जित किया। उन्होंने संतान सुख और पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना की। उनके व्रत की सारी विधि विधाना पूरी होने पर, भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया।
ब्राह्मणी के धृढ़ विश्वास और पूर्ण भक्ति से, उन्हें एक सुंदर और समृद्ध पुत्र द्वारा आशीर्वाद मिला। इस तरह, ब्राह्मणी ने भगवान शिव के व्रत से अनेक आशीर्वाद प्राप्त किए और व्रत का पालन लंबे समय तक किया।
इस प्रकार, कजरी तीज का व्रत धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और साथ ही प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी है। यह व्रत समृद्धि, सुख, और सुंदर संतान की प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा मान्यता प्राप्त है।
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