साजन लेंगे जोग, री' बालकृष्ण शर्मा नवीन का हिन्दी कविता का सारांश Sajan lenge jogri by Balkrishna Sharma Naveen
साजन लेंगे जोग, री' बालकृष्ण शर्मा नवीन का हिन्दी कविता का सारांश Sajan lenge jogri by Balkrishna Sharma Naveen
कविता
आज सुना है सखी, हमारे साजन लेंगे जोग, री,
हमें दान में दे जाएँगे वे विकराल वियोग, री।इस चौमासे के सावन में घन बरसें' दिन रात, री,
ऐसी ऋतु में भी क्या होती कहीं जोग की बात, री,
घन-धारा में टिक पाएगी कैसे अंग भभूत, री,
फल जाएगी इक छिन-भर में यह विराग की छूत, री,
अभी सुना है साजन गेरुए वस्त्र रंगेंगे आज, री,
और छोड़ देंगे वे अपनी रानी, अपना राज, री,
हिय-मंथन शीलअ रति में भी यदि न विराग-विचार, री,
तो फिर बाह्य आवरण भर में है क्या कुछ भी सार, री?
प्रेम नित्य संन्यास नहीं, तो अन्य योग है रोग, री,
सखी, कहो, ले रहे सजन क्यों व्यर्थ अटपटा जोग, री,
हमने उनके अर्थ रंग लिया निज मन गैरिक रंग, री,
और उन्हींके अर्थ सुगंधित किए सभी अंग-अंग, री,
सजन-लगन में हृदय हो चुका मूर्तिमंता संन्यासी, री,
अब जोगी बन छोड़ेंगे क्या वे यह हिय-आवास, री,
सजनि, रंच कह दो उनसे है यह बेतुका विचार, री,
उनके रमते-जोगीपन से होगा जीवन भार, री,
चौमासे में अनिकेतन भी करते कुटी-प्रवेश, री,
उनके क्या सूझी कि फिरेंगे वे सब देश-विदेश, री,
उनका अभिनव योग बनेगा इस जीवन का सोग, री,
सखी, नैन कैसे देखेंगे उनका वह सब जोग, री।
साजन लेंगे जोग, री' कविता का सारांश Sajan lenge jogri by Balkrishna Sharma Naveen
प्रस्तुत कविता 'साजन लेंगे जोग, री' शीर्षक कविता के रचनाकार बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' है। इस कविता के अंतर्गत नायिका अपनी सखी से उपालम्भ दर्शाती हुई कहती है कि इस संसार में प्रेम-भाव की अभिव्क्ति कभी वसंत में तो कभी श्रावण मास में होता रहता है, परंतु मेरे प्रेमी को कभी इसका एहसास नहीं होता कि 'योगी' बनकर इस अनुकूल बेला का अपमान करना है तथा मेरी उपेक्षा भी। नायिका अपनी ऐसी विकट सिति पर चिंता करती हुई उसे योग कहता है, जो उसकी अव्यवहारिकता है।
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Poem