जीवन विरह का जलजात कविता का सारांश महादेवी वर्मा
कविता
जीवन विरह का जलजात!
अश्रु से मधुकण लुटाता आ यहाँ मधुमास!
अश्रु से मधुकण लुटाता आ यहाँ मधुमास!
अश्रु ही की हाट बन आती करुण बरसात!
जीवन विरह का जलजात!
काल इसको दे गया पल-आँसुओं का हार;
पूछता इसकी कथा निश्वास ही में वात!
जीवन विरह का जलजात!
जो तुम्हारा हो सके लीलाकमल यह आज,
खिल उठे निरुपम तुम्हारी देख स्मित का प्रात!
जीवन विरह का जलजात!
जीवन विरह का जलजात कविता का सारांश महादेवी वर्मा
वेदना की देवी 'महादेवी वर्मा' की करुणा पुकार के रूप में उनकी कविता विरह को जलजात जीवन प्रस्फुटित हुई है।कवयित्री महादेवी वर्मा ने अपने जीवन में अधिकाधिक पीड़ा के पक्ष का ही सेवन किया है। उसने पीड़ा को अपना जीवन समझा और पीड़ा को अपने जीवन में ढूँढ़ाने का प्रयास किया। मतलब यह कि कवयित्री पीड़ा के बीच रहते-रहते पीड़ा से ही अपरिचित-सी हो गई। कवयित्री ने प्रस्तुत कविता में अपने जीवन में उपस्थित इसी पीड़ा का वर्णन किया है।
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