फसल कविता का सारांश Fasal by Nagarjun

'फसल' कविता का सारांश नागार्जुन Fasal by Nagarjun

फसल कविता का सारांश नागार्जुन
नागार्जुन

'फसल' कविता का सारांश नागार्जुन Fasal by Nagarjun

कविता

एक की नहीं,
दो की नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा:
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म:


फसल क्‍या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!

फसल' कविता का सारांश नागार्जुन Fasal by Nagarjun

फसल कविता का सारांश:
कवि ने 'फसल' शीर्षक कविता में फसलों के हरे-हरे होने के पीछे अनेक नदियों, लाखों हाथों का स्पर्श और उनका श्रम, हजारों खेतों की मिट्टीयों का गुणधर्म समाहित है। ये लहलहाते फसल हाथों के स्पर्श की महिमा है। हवा भी इन श्रमिकों के सहयोग और श्रम के समक्ष संकोची हो उठी है। 

मनुष्य ऊर्जावान होता है। कवि ने मनुष्य की आंतरिक शक्ति की व्यजंना फसल का अवलम्बन लेकर करता है। 

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