पुष्प की अभिलाषा Jharkhand Board class 8 Hindi Chapter 1 Ncert Solution
निम्नलिखित पद्यांशों का सप्रसंग आशय स्पष्ट करें—
1.चाह नहीं, मैं सुरबाला के, गाहनों में गुँ था जाऊँ। चाह नहीं, प्रेमी-माला में, बिंध प्यारी को ललचाऊँ।
Ans-प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक 'भाषा करने का प्रयास किया है। कवि का कहना है कि पुष्प की इच्छा न तो देवकन्या युवती, रूपसी के आभूषणों में गूँथे जाने की है और ना ही प्रेमी के हृदयस्थल पर सुशोभित होने वाले वरमाला में गुँथकर प्रेमिका को लालचाने की है।
2.चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि! डाला जाऊँ। चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर ईठलाऊँ।
Ans-व्याखाय-इस अंश में कवि कहना चाहता है कि पुष्प की चाह या इच्छा सम्राट के शव पर श्रध्दाजलि स्वरूप डाले जाने की नहीं है। पुष्प की अभिलाषा देवी-देवताओं के सिर पर चढ़कर गर्व करने की भी नहीं है। तात्पर्य यह है क पुष्प की चाह महान लोगों, देवी देवताओं को अर्पित होकर गर्व करने की भी नहीं होती।
3.मुझे तोड़ लेन वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक। मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक।
Ans-प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मातृभूमि की सेवा करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया है।
व्याख्या-कवि का आश्य है कि पुष्प की महान इच्छा यह होती है कि जब वह बगीचे में खिल उठे तो उसे तोड़कर मातृभाषा के उन सपूतों की राह में बिछा दिया जाए जो मातृभूमि के लिए अपना प्राणोत्सर्ग करने हेतु युध्द के मैदान में जा रहे हों।
पुष्प की अभिलाषा Jharkhand Board class 8 Hindi Chapter 1 Ncert Solution
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर लिखें-
1.'पुष्प की अभिलाषा' कविता में पुष्प के द्वारा क्या अभिलाषा व्यक्त की गई है?
Ans-प्रस्तुत कविता में पुष्प की अभिलाषा है कि उसे मातृभूमि के लिए प्राणोत्सर्ग करने वालों के पथ पर ही डाला जाए। उसे अपने अन्य उपयोग की कोई इच्छा नहीं है।
2.'मातृभूमि' से आप क्या समझते हैं?
Ans-मातृभूमि का अर्थ है-हमारी माता के समान ऐसी भूमि, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारा पालन-पोषण करे। माता के समान होने के कारण मातृभूमि हमें प्राणों से भी प्यारी होती है।
3.कविता में पुष्प किन-किन चीजों की चाह नहीं करता?
Ans-इस कविता में पुष्प को न तो रूपसी, अप्सराओं के गहनों में गुँथे जाने की चाह है और न ही प्रेम की माला बनाने की चाह है। पुष्प को महान सम्राट और महान लोगों के शव पर श्रध्दा-सुमन के रूप अर्पित किए जाने की भी चाह नहीं है और तो और उसे देवी-देवताओं के सरपर चढ़कर अपने भाग्य पर गर्व करने की भी चाह नहीं है।
4.'मुझे तोड़ लेना वनमाली' उस पथ पर देना तुम फेंक। मातृभूमि पर शिशु चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक।'-इन पंक्तियों को आशय स्पष्ट करें।
Ans-प्रस्तुत पँक्तियों का आशय यह है कि पुष्प जिसे प्यार, शृंगार और सम्मान के प्रतिक के रूप में मनुष्य द्वारा उपयोग किया जाता है, वह अपने अपाप को उन वीर सैनिकों की राहों में बिछा देने की कामना करता है जो मातृभूमि की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व बलिदान करने जा रहे हैं। आत्मोत्सर्स करने जा रहे मातृभूमि के सपूतों के कदमों से कुचले जाने पर उसे संतोष होगा कि उसकी कोमल पंखुड़ियों के कारण वीर सैनिकों की राह कुछ तो आसान होगी।
5.देवी के सिर पर चढ़कर अपने भाग्य पर इठलाने से पुष्प क्यों बचना चाहता है?
Ans-देवों के सिर पर चढ़कर अपने भाग्य पर इठलाने से पुष्प इसलिए बचना चाहता है क्योंकि वह गर्व करने के उपरांत होने वाले घमण्ड रूपी दुर्गुण से बचना चाहता है।
6.जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी किस प्रकार महान है?
Ans-जननी अर्थात माँ जिन्होंने हमें इस संसार में आने का अवसर दिया। माँ ने ही हमें संसार की सुंदरता से अवगत कराया। और स्वर्ग किसने देखा है। कौन जाने स्वर्ग का अस्तित्व है भी या नहीं। जननी के समान जन्मभूमि अर्थात जहाँ हमने जन्म लिया है, अत्यंत महान है। यह जन्मभूमि ही है जिसने हमारे जीवन की सारी आवश्यकताएँ पूरी की है। हमें अपने गर्भ में समाए बहुमूल्य संसाधनों से परिपूर्ण किय है। आवास और भोजन और जन्मभूमि कराया है।
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- अध्याय 2: छोटा जादूगर
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- अध्याय 4: पथ की पहचान
- अध्याय 5: बड़े भाई साहब
- अध्याय 6: अशोक का शस्त्र त्याग
- अध्याय 7: डायन एक अंधविश्वास
- अध्याय 8: अमरूद का पेड़
- अध्याय 9: क्या निराश हुआ जाए
- अध्याय 10: राम का भारत को संदेश
- अध्याय 11: झारखंड के दो सपूत
- अध्याय 12: बस की यात्रा
- अध्याय 13: हुंडरू का जल प्रपात
- अध्याय 14: बूढ़ी पृथ्वी का दुख
- अध्याय 15: गुरु शिष्य
- अध्याय 16: अपराजिता
- अध्याय 17: पन्ना पन्ना बोलता हैं
- अध्याय 18: तालाब बंधता धरम सुभाव
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