'अग्निबीज' नागाजुर्न की हिंदी कविता अग्निबीज कविता का सारांश Agni Bij by Nagarju
'अग्निबीज' नागाजुर्न की हिंदी कविता Agni Bij by Nagarjun
अग्निबीज
तुमने बोए थेरमे जूझते,
युग के बहु आयामी
सपनों में, प्रिय
खोए थे !
अग्निबीज
तुमने बोए थे
तब के वे साथी
क्या से क्या हो गए
कर दिया क्या से क्या तो,
देख–देख
प्रतिरूपी छवियाँ
पहले खीझे
फिर रोए थे
अग्निबीज
तुमने बोए थे
ऋषि की दृष्टि
मिली थी सचमुच
भारतीय आत्मा थे तुम तो
लाभ–लोभ की हीन भावना
पास न फटकी
अपनों की यह ओछी नीयत
प्रतिपल ही
काँटों–सी खटकी
स्वेच्छावश तुम
शरशैया पर लेट गए थे
लेकिन उन पतले होठों पर
मुस्कानों की आभा भी तो
कभी–कभी खेला करती थी !
यही फूल की अभिलाषा थी
निश्चय¸ तुम तो
इस 'जन–युग' के
बोधिसत्व थे;
पारमिता में त्याग तत्व थे।
'अग्निबीज' नागाजुर्न की हिंदी कविता Agni Bij by Nagarjun
अग्निबीज कविता का सारांश:
'अग्निबीज' शीर्षक कविता में कवि नागार्जुन ने महत्मा गाँधी को अग्निबीज कहकर सम्बोधित किया है। उनकी प्रेरणा से समस्त भारत उद्बोधित हआ था, अपने देश को पहचानता था, अपने अधिकार से परिचित हुआ था और अपने भाव को जाना था। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति के मन में अग्नि के बीच बो कर उसे शक्तिशाली बनाया था। बापू को ऋषि की दृष्टि मिली थी। इसी दृष्टि से स्वतंत्र भारत को देखा था। राम-राज्य की कल्पना की थी। भारतियों को सत्य अहिंसा के परमधर्म से अवगत कराया था। कवि ने मानव मन के उस धारातल की ओर संकेत करता है जहाँ समस्त अधर्म तथा कुव्यवस्था की ध्वस्त कर एक नवीन आयाम देने की क्षमता अग्निबीज में है।
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