Essay on Gautam Buddha गौतम बुद्ध पर हिन्दी निबंध
Essay on Gautam Buddha गौतम बुद्ध पर हिन्दी निबंध:
परिचय:
गौतम बुद्ध एक महान आदर्श गुरु थे जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की। उनका जन्म कपिलवस्तु क्षेत्र में हुआ था लगभग 563 ईसा पूर्व। उनके पिता का नाम शुद्धोधना और माता का नाम महामाया था।
गौतम बुद्ध के जीवन का विशेष महत्वपूर्ण हिस्सा उनकी महाप्रवृत्ति है। वे शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपनी जीवन के साधारण रास्ते पर चल सकते थे, लेकिन उन्होंने संसार में से छोड़कर आध्यात्मिकता की खोज में जाने का निर्णय लिया।
उन्होंने वैराग्य के बादलों के नीचे 6 वर्षों तक तपस्या की। उन्होंने विभिन्न गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की और अनुभवों के माध्यम से सत्य की खोज की। अपने बोधिचित्त के प्राप्त होने के बाद, उन्होंने निर्वाण की प्राप्ति की और बुद्ध बन गए।
गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों के माध्यम से मानवता को धर्म और शांति का संदेश दिया। उनकी सिद्धांतों में मध्यम मार्ग (मध्यम रास्ता) और चतुरार्य सत्य (नीति, संयम, सच्चाई, और ध्यान) का महत्वपूर्ण स्थान था।
गौतम बुद्ध की महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व में हुई, जब उन्होंने पवापुरी में अंतिम साँस छोड़ी। उनका निधन अनंतता का प्रतीक है, लेकिन उनके उपदेश और उनकी धार्मिक विचारधारा आज भी मानवता के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। उनकी शिक्षाएँ सदैव हमें सत्य, सम्यक बुद्धि, और करुणा की ओर प्रेरित करती हैं।
गौतम बुद्ध का प्रारंभिक जीवन:
गौतम बुद्ध, जिन्हें बाद में भगवान बुद्ध के रूप में जाना जाता है, नामकरण से पहले बोधिसत्वा सिद्धार्थ नामक एक पुरुष के रूप में जन्मे थे। वे नेपाल देश के कपिलवस्तु नगरी में क्षत्रिय कुल में जन्मे थे। इतिहासकारों के अनुसार, उनका जन्म सन् 563 ईसा पूर्व के आस-पास हुआ था।
जीवन के प्रारंभिक दिनों में, सिद्धार्थ बुद्ध का जीवन बहुत समृद्ध और सुखमय था। उनके पिता शुद्धोधन और माता माया ने उन्हें संतुष्ट और सुखी जीवन दिया। वे एक सुंदर और सुखद राजमहल में बढ़े, जहां परिवार की अच्छी देखभाल की जाती थी। उन्हें शिक्षा में भी उच्च स्तर प्राप्त हुई और उन्हें विभिन्न विषयों में माहिर बनाया गया।
जीवन के एक दिन, जब सिद्धार्थ बुद्ध अपने पिता के साथ नगर में घूम रहे थे, उन्होंने अनुभव किया कि जीवन में दुख भी होता है। उन्होंने एक बूढ़े व्यक्ति, एक रोगी और एक मृत्युशायी को देखा, जिसने उन्हें अपनी आदित्य सुख जगत से बाहरी हकीकत के प्रतीत होने लगी। उन्होंने इस प्रतीति को देखकर उद्यम और आत्मचिंतन की ओर ध्यान दिया।
इसके बाद, सिद्धार्थ बुद्ध ने संघर्ष और संसारिक दुःख से निपटने की खोज में अपना जीवन समर्पित करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी सुखद और सुरम्य राजमहल को छोड़कर संन्यासी के रूप में जीने का निर्णय लिया। उन्होंने धन, सुख और साम्प्रदायिक बंधनों को त्याग दिया और ध्यान और मोक्ष की खोज में निर्वाण की ओर अपनी प्रवृत्ति बदल दी।
इस प्रकार, बुद्ध का प्रारंभिक जीवन संसारिक सुख और समृद्धि से भरा था, लेकिन एक दिन उन्होंने दुःख और मरण की हकीकत को अनुभव कर देखा और इसके प्रभाव से जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों को लिया। यह निर्णय उनके जीवन को पूर्णता और मोक्ष की ओर अग्रसर कर दिया।
महात्मा गौतम बुद्ध के उपदेश:
महात्मा गौतम बुद्ध ने अपने जीवन के दौरान विभिन्न उपदेश दिए हैं, जिन्हें बुद्धधर्म के मूल सिद्धांतों के रूप में माना जाता है। ये उपदेश व्यापक रूप से चार मूल पिलर पर आधारित हैं, जिन्हें चारिया, सत्या, निर्मोही और समाधि के रूप में जाना जाता है। नीचे उपदेशों का संक्षेप में वर्णन किया गया है:
1.चारिया (Right Conduct): बुद्ध ने सही कार्यों और आचरण की महत्वपूर्णता को समझाया। वे संयमित और न्यायपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देते थे और श्रेष्ठ आचरण की सिख देते थे। यह शांति, सौहार्द, धर्मिकता और न्याय के साथ एक समरस और समृद्ध समाज के निर्माण का मार्ग है।
2.सत्या (Right Speech): बुद्ध ने सत्य और यथार्थ बोलने की महत्वपूर्णता को सिखाया। वे झूठ बोलने, अनैतिक भाषा का प्रयोग करने और अनावश्यक वक्तव्य करने से बचने की सलाह देते थे। सत्य कहने से हम अपने और दूसरों के जीवन में विश्वास, सम्मान और उच्चता को स्थापित करते हैं।
3.निर्मोही (Right Livelihood): बुद्ध ने उचित आजीविका के बारे में समझाया। उन्होंने अधिकारिक और अनैतिक व्यापार, हिंसक कार्य और मृत्युदंड से दूर रहने की सलाह दी। यह योग्य, न्यायपूर्ण और दानशील आजीविका चुनने का अभिप्रेत मार्ग है, जो समाज में समरसता, न्याय और शांति को स्थापित करता है।
4.समाधि (Right Mindfulness): बुद्ध ने मन के उच्चतम स्तर की प्राप्ति के लिए सतर्कता और ध्यान की अभ्यास की प्रशंसा की। वे मन की शांति, नियंत्रण और स्वाध्याय के माध्यम से मुक्ति और प्रबुद्धता को प्राप्त करने के लिए साधना करने की सिख देते थे। समाधि एक चित्तशांति और स्थिरता की स्थिति है, जिसमें हम अपनी मानसिक अवस्था को नियंत्रित करते हैं और सत्य को अनुभव करते हैं।
ये उपदेश गौतम बुद्ध के द्वारा संचालित धर्म के मूल आधार हैं, जो एक उदात्त और परम जीवन की प्राप्ति के मार्ग को प्रशस्त करते हैं। इन उपदेशों को अपनाकर मानवता में शांति, सहजता और प्रेम का प्रसार हो सकता है।
महात्मा गौतम बुद्ध की मृत्यु:
महात्मा गौतम बुद्ध की मृत्यु का विवरण निर्दिष्ट नहीं है, लेकिन इतिहासकारों के अनुसार, उनकी मृत्यु सन् 483 ईसा पूर्व के आस-पास हुई थी। वैदिक परंपरा के अनुसार, उनकी उम्र 80 वर्ष थी, जब उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।
गौतम बुद्ध की मृत्यु की जानकारी उनके निर्वाण के समय संग्रहीत नहीं हो सकी है। यह ज्ञात नहीं है कि उनकी मृत्यु कैसे हुई और कहां हुई। हालांकि, बुद्ध के निर्वाण के बाद, उनके शिष्यों ने उनकी अवशेषों को अलग-अलग स्थानों पर संग्रह किया और पूजा की। उनकी मृत्यु के बाद, उनके शिष्यों ने उनकी उपदेशों को संघटित किया और बुद्ध धर्म की प्रचार-प्रसार की शुरुआत की।
गौतम बुद्ध की मृत्यु के बावजूद, उनका धर्म विश्वभर में प्रभावी रूप से फैला और उनकी सिखायी हुई सिद्धांतों ने लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। वे आध्यात्मिकता, शांति और समृद्धि के लिए एक मार्गदर्शक बने रहे हैं।
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