वीर-वन्दना रामधारी सिंह दिनकर Veer Vandana by Ramdhari Singh Dinkar
वीर-वन्दना रामधारी सिंह दिनकर Veer Vandana by Ramdhari Singh Dinkar
वीर-वन्दना
वीर-वन्दना की वेला है, कहो, कहो क्या गाऊं ?
आँसू पातक बनें नींव की ईंट अगर दिखलाऊं ।
बहुत कीमती हीरे-मोती रावी लेकर भागी,
छोड़ गई जालियाँबाग की लेकिन, याद अभागी ।कई वर्ष उससें पहले, जब देश हुआ स्वाधीन,
लहू जवानों का पीती थी भारत में संगीन ।वीर-वन्दना की वेला है, कहो, कहो क्या गाऊं ?
भांति-भांति के चित्र टंगे हैं, किसको, कौन दिखाऊँ ?
यह बहादुरों की लाशों से पटा हुआ है खेत,
यह प्रयाग की इन्द्राणी पर टूट रहे हैं बेंत ।
कई वर्ष उससे पहले जब देश हुआ स्वाधीन,
भगत सिंह फांसी पर झूले, घुल-घुल मरे यतीन ।
वीर-वन्दना की वेला है, कहो, कहो क्या गाऊं ?
पन्ने पर पन्ने अनेक हैं, पहले किसे उठाऊँ ?
है कौंध गई बिजली-सी भारत में प्रताप की याद,
इम्फल में बन गया किरिच बापू का आशीर्वाद ।
कई मास उससे पहले जब देश हुआ स्वाधीन,
भूले हुए खड़ग से लिक्खा हमने पृष्ठ नवीन ।
अमर ज्योति वह कहाँ देश की जिसको शीश झुकाऊँ ?
दिखा नहीं दर्पण पातक का, अरे गांस मत मार,
अश्रु पोंछकर जीने को होने तो दे तैयार ।
काल-शिखर से बोल रहा यह किस ऋषि का बलिदान,
कमलपत्र पर लिखो, लिखो कवि ! भारत का जयगान ।
'वीर वंदना' कविता का भावर्थ
प्रस्तुत कविता में कवि ने स्वाधीनता के पूर्व शूली पर चढ़े उन शहीदों की याद दिलाता है जिसनें नीव की ईंट बनकर स्वतंत्र भारत का सपना देख। यह सच है कि नींव की ईंट किसी को नहीं दिखाई देती, बल्कि उसे लोग भूल जाते हैं। परंतु कवि के हृदय में उन शहीदों के प्रति श्रध्दा का भाव है और मन में प्राय: स्मृति कौंध जाती है। इन शहीदों ने जालियाँवाला बाग का वह चिन्ह छोड़ गये जो इनकी याद के लिए उत्प्रेरित करता है। संगिनों ने इन देशभक्तों के खून चूसकर उन्हें शूली पर चढ़ा दिया। कवि का हृदय श्रध्दा के भाव से ओत-प्रोत होकर गीतों को अर्पण करने हेतु उत्कंठित है।
कवि कहता है कि शहीदों यह वीर वन्दना की बेला। तुम्हीं कहा कि मैं तुम्हारी श्रध्दा के लिए क्या-क्या गाउँ। यह सब है कि भारत के खेत बहादुरों की लाशों से पटा हुआ है। प्रयाग के संगम स्थल पर संगीनों का निरन्तर प्रहार हो रहा है। स्वाधीनता के पश्चात भगत सिंह को फाँसी दी गई। इतिहास साक्षी है कि हमारे देश के बहादुर नौजवानों ने अपने जीवन को अर्पित कर दिया। मैं किस पन्ना को उलटकर उन्हें एक बाद फिर याद करूँ। मुझे वह अमर-ज्योति चाहिये जिसके प्रति अपनी श्रध्दांजली अर्पित करूँ। उन पातकों का दर्शन कराओ कटांक्ष नहीं करो। मैं कमल पक्षों पर तुम्हारी श्रध्दांजली लिखने के लिए तैयार हूँ। यही भारत का जयगान होगा। कवि की यह कविता राष्ट्रीवादी है। राष्ट्र के प्रति अपनी असीम श्रध्दा दिखाकर उसकी महत्ता और गरिमा की अभिव्यक्ति दर्शाता है। कवि ने इस कविता में भारतवासियों का ध्यान उन शहीदों की और आकृष्ट करना चाहा है जिन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए अपने जीवन की कुर्बानी दी है। आज का स्वतंत्र भारत उन्हें भूल रहा है जिसकी स्मृति उसे अचानक होती है। कवि की दृष्टि में वे शहीद अमर हैं और स्मरण करने योग्य हैं।
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